धर्म के नाम पर अधर्म कब तक?
Shah Nawaz
धमाचौकड़ी झूमना, शोर-शराबा खेल |
आज धर्म के नाम पर, साधु रहे हैं झेल | साधु रहे हैं झेल, शहादत में भी रौनक | नहिं कोई कानून, दिखाते शानो-शौकत | हुडदंगी चहुँओर, नहीं कुछ लेना देना | समझे ये शैतान, धर्म को चना-चबेना || |
कविता कर-कर के करे, कवि-कुल आत्मोत्थान ।
जैसे योगी तन्मयी, करे ईश का ध्यान ।
करे ईश का ध्यान, शान में पढ़े कसीदे ।
भावों में ले ढाल, ढाल से सौ उम्मीदें ।
रोके छुरी कटार, व्यंग वाणों को रविकर ।
कायम रखे इमान, हमेशा कविता कर कर ।।
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पोखरा की यात्रा-2
देवेन्द्र पाण्डेय
मनभावन परिदृश्य यह, कोई भी खो जाय ।
ओशोवाणी टहलना, योग ध्यान मस्ताय ।
योग ध्यान मस्ताय, बड़ी बढ़िया दिनचर्या ।
आप रहे सुस्ताय, मस्त जीवन आचार्या ।
सादर उन्हें प्रणाम, हिमालय पाप नशावन ।
दर्शनीय सब चित्र, लगे रविकर मनभावन ।।
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"सोच-समझकर बोलो..बाबा..!" (कार्टूनिस्ट-मयंक)
घूमे पहले दिवस से, पिच बाम्बे में मांग ।
धोनी गड्ढे खोद के, फंसा बैठते टांग ।
फंसा बैठते टांग, टांग बल्ला खूँटी पर ।
नामी बल्लेबाज, बाज नहिं आते रविकर ।
बेहतर हैं अंग्रेज, जीत का मैडल चूमें ।
दो दिन धोनी टीम, मुंबई पूरा घूमे ।।
"नानकमत्ता साहिब का दिवाली मेला” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
मेले में सबसे अधिक, बिके चाट मिष्ठान ।
गुरूद्वारे की शरण में, करें सभी उत्थान ।
करें सभी उत्थान, मौज मस्ती का खेला ।
घंटे बीते चार, छूट सब जाय झमेला ।
ठोकर लग ना जाय, नहीं पब्लिक को ठेलें ।
घुटने में है चोट, घूमते क्यूँकर मेले ??
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दावा कंगरसिया करे, साथ आदमी आम ।
कैसे रखते केजरी, पार्टी का यह नाम ।
पार्टी का यह नाम, हमारा हित ही साधे।
करें परस्पर रार, राष्ट्रवादी भी आधे ।
सारे सेक्युलर साथ, मुलायम माया पावा ।
साथ आदमी आम, गलत केजरि का दावा ।।
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नारी के अकेलेपन से पुरुष का अकेलापन ज्यादा घातक
शालिनी कौशिक
बिन नारी के घर लगे, भूतों का संभाग । भूतों का संभाग, नारि से भूत भागते । संस्कार आदर्श, सत्य कर्तव्य जागते । नारी अगर अकेल, कभी नहिं होय सवेरा । दुनिया बड़ी अजीब, लफंगे डालें डेरा । |
सेहतनामा
Virendra Kumar Sharma
*नारिकेर जल दुग्ध में, कॉपर है भरपूर |
भरा विटामिन ए यहाँ, दूर खड़ा मत घूर | दूर खड़ा मत घूर , करे जो नियमित सेवन | चमड़ी हो नहिं रुक्ष, लचीलापन भी एवन | है प्रस्तुति यह मस्त, डंक गर मारे कीड़ा | सिरका रगडो वहां, हरे झट पट यह पीड़ा |||
*नारियल
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sundra
ReplyDeleteबढिया लिंक्स
ReplyDeleteआभार कविवर।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब!
ReplyDeleteमेरी ब्लॉग-पोस्ट पर आपकी बेहतरीन टिप्पणी के लिए आभार!
Nice post.
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