dheerendra bhadauriya
सागर से क्या बात करें, उनके नयनों सी गहराई ।
डूब डूब उतराते हरदिन, नाप नहीं पाता भाई ।।
सागर के क्या पास चलें, आंसू से भी खारा ज्यादा।
छूछे वापस लेकर लौटा, प्रेम-गगरिया नहीं डुबाई ।।
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मच्छर नहिं कमजोर जो, मार सके अखबार ।
मार सकोगे तभी जब, हो दोतरफा वार ।
हो दोतरफा वार , प्यार है अघ-कसाब से ।
डेंगू जैसा वार, मारता बेहिसाब ये ।
आई-क्यु की कर बात, गडकरी जैसे लगते ।
बढ़िया मौका पाय, दनादन मुंह से हगते ।
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DINESH PAREEK
जाना है तो एक दिन, दनदनाय दिन बीत | समय सतत गतिमान है, यही जगत की रीत | यही जगत की रीत, तकाजा जिम्मा बंधन | अनुभव बढ़ता जाय, सीखता जाता जीवन | पर आ जाता काल, व्यर्थ हो गया मनाना | बचुवा इसे संभाल, छोड़ कर चला खजाना ||
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सच से हरदम भागते, भारी विकट गुनाह | कहीं बदल कर रखी तो, आह आह ही आह | आह आह ही आह, राह बाधित हो जाए | खैरख्वाह शैतान, नहीं फिर पास बुलाये | खुराफात में लीन, अगर यह नहीं रहेगा | इस दुनिया से जाय, भला क्या वहाँ कहेगा || इसीलिए करता रहे, बन्दा यहाँ कुकर्म | छोड़ छाड़ के शर्म को, छेड़-छाड़ का धर्म ||
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Saleem akhter Siddiqui
उसका एफ़ डी आय है, बना आय का स्रोत्र ।
सुखा दिया जल-स्रोत्र को, रुपियों का हो होत्र ।।
रुपियों का हो होत्र, गोत्र से शॉप विदेशी ।
पैदल बनता ऊँट , चले टेढा वह वेशी ।
नदी नहर नल कूप, मिटाता मानव मुस्का ।
कुदरत कहीं वजूद, मिटा नहिं देवे उसका ।।
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भाजी पी-नट की सड़ी, गंध-करी में आय ।
है नरेंद्र उपवास पर, दाउद खाये जाय ।
दाउद खाये जाय, गधे के माफिक आई-क्यू ।
करे बरोबर बात, वाह रे कुक्कुर का व्यू ।
वह भी तो ना खाय, कहो क्या कहते काजी ।
हाँ जी हाँ जी सत्य, सड़ी निकली यह भाजी ।।
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छूछ आग से 'के-जरी', जे 'गुट-करी' जनाब | 'सोनी-या' रोनी शकल, करती काम खराब | करती काम खराब, बड़ा डेंगू है फैला | सुबह कपाली काँख, फाँक ले सूखा मैला | मत घबराना किन्तु, वोट तो मिलें भाग से | नाती पुत्र दमाद, डरें नहीं छूछ आग से ||
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Rahul Singh
आरे के उपयोग को, वर्जित कर इतिहास | वन रक्षा में दे रहा, योगदान है ख़ास ||
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(Arvind Mishra)
क्वचिदन्यतोSपि...
चार दिनों से झेलता, झारखण्ड बरसात | नीलम का यह असर है, चलता झंझावात | चलता झंझावात, उपग्रह है प्राकृतिक | दर्पण सा अवलोक, गगन से घटना हर इक | हुवे घाघ अति श्रेष्ठ, पढ़ें संकेत अनोखे | करे आकलन शुद्ध, मिलें फल हरदम चोखे ||
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(1)
(2)
भली बहस का अंत कर, रविकर कह कर जोर | खुद में करूँ सुधार अब, छमहुं गलतियाँ मोर | छमहुं गलतियाँ मोर, खीर पूरी है खाना | पत्नी रही बुलाय, प्रेम से रविकर जाना | रही जलेबी छान, काम सब उसके बस का | रब की मेहर रहे, अंत अब भली बहस का ||
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गाँधी के बंदरों पर, नारे ये उत्कृष्ट ।
असर डाल पाते नहीं, दुष्ट कलेजे कृष्ण ।
दुष्ट कलेजे कृष्ण , कर्म रत रहिये हरदम ।
भूलो निज अधिकार, चलो चित्कारो भरदम ।
जूँ नहिं रेंगे कान, चले नारों की आँधी ।
आँख कान मुँह बंद, जमे अलबेले गाँधी ।।
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मेरा बेटा
नादिर ख़ान
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होली में झटपट मले, चेहरे पे मुस्कान | लाल हरे के भेद से, बच्चा है अनजान | बच्चा है अनजान, दिवाली दीप बटोरे | क्रिसमस ईद मनाय, खिलौने से भर झोले | रहता खुद में मस्त, सजाता रहे रंगोली | बच्चा बच्चा रहे, मनाये यूँ ही होली ||
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मनोज कुमार
भीष्म कुँवारे की शपथ, सरिस वचन यह श्रेष्ठ । परतंत्री कलिकाल में, यही लग रही ज्येष्ठ ।
यही लग रही ज्येष्ठ, आप इन्द्रिय सुख छोड़ा ।
धन्य धन्य हे वैद्य, सुधरता रोगी थोडा ।
त्याग तपस्या कर्म, अहिंसा सदगुण सारे ।
गाँधी दिखते श्रेष्ठ, पिछड़ते भीष्म कुंवारे ।।
(विवेकानंद-दाउद जैसा मत समझ लेना विद्वानों )
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lokendra singh
मोहन केशव सा लगे, बड़ा सुदर्शन चित्र | टोपी मामा ने पिन्हा, दिया छिड़क के इत्र | दिया छिड़क के इत्र, मित्र यह प्यार मुबारक | बना देश का यही, समझिये सच्चा तारक | विजयादशमी मने, जलेंगे दुष्टों के शव | लगा रखो उम्मीद, करेंगे मोहन केशव ||
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भले बहस का अन्तकर,ले चाहे कर जोर,
ReplyDeleteबीस पड़े है अरुणजी,रविकर तुम कमजोर,,,,,,
रविकर अनुभवहीन है, सुनिए मेरे मीत |
Deleteभैया का अनुभव अधिक, जाँय तभी तो जीत |
जाँय तभी तो जीत, हकीकत सदा जीतती |
बनावटी अंदाज, कहाँ बकवाद खींचती |
जीत सत्य की होय, झूठ क्या देगा टक्कर |
अरुण शब्द ही मूल, निकलते उससे रविकर ||
जोरदार लिंक्स पर धारदार कुंडली जड़ि आये कविराज।
ReplyDeleteबहुत उम्दा!
ReplyDeleteआपकी उम्दा पोस्ट बुधवार (07-11-12) को चर्चा मंच पर | जरूर पधारें |
ReplyDeleteसूचनार्थ |
बहुत बढ़िया..
ReplyDelete
ReplyDelete.....और मैं हतप्रभ सा देखता रह गया!
(Arvind Mishra)
क्वचिदन्यतोSपि...
चार दिनों से झेलता, झारखण्ड बरसात |
नीलम का यह असर है, चलता झंझावात |
चलता झंझावात, उपग्रह है प्राकृतिक |
दर्पण सा अवलोक, गगन से घटना हर इक |
हुवे घाघ अति श्रेष्ठ, पढ़ें संकेत अनोखे |
करे आकलन शुद्ध, मिलें फल हरदम चोखे ||
जोरदार लिंक्स पर धारदार कुंडली जड़ि आये कविराज।din din aaye nikhaar .
अपसंस्कृति व्यवहार, आज मानव ना मानव ||---अति सुन्दर ...धन्यवाद रविकर
ReplyDelete--- कुंडलियों की पंचायत भी बहुत सुन्दर है....