डा. अरुणा कपूर. at मेरी माला,मेरे मोती
हुवे कलम घिस्सू कई, सबकी बढ़िया शान |
थी लक्ष्मी रूठी सदा, था शारद-वरदान |
था शारद-वरदान , झमाझम लक्ष्मी बरसी |
भावों का अवसान, कलम विषयों में हरसी |
कर रविकर विषपान, विषय-नव पाए कैसे |
घिसे-पिटे सब्जेक्ट, लिखाए जैसे तैसे ||
थी लक्ष्मी रूठी सदा, था शारद-वरदान |
था शारद-वरदान , झमाझम लक्ष्मी बरसी |
भावों का अवसान, कलम विषयों में हरसी |
कर रविकर विषपान, विषय-नव पाए कैसे |
घिसे-पिटे सब्जेक्ट, लिखाए जैसे तैसे ||
अंतिम गांठ...
रश्मि at रूप-अरूप
जोड़-गाँठ में अति निपुण, मन की गांठें खोल |
गाँठ स्वयं तू खोल नत, खोले दुनिया पोल |
खोले दुनिया पोल, गाँठ का पूरा बन्दा |
कर देगा मुंह बंद, खिलाकर सबको चन्दा |
पर चन्दा बदनाम, होय इस सांठ-गाँठ में |
मत होने दे शाम, भुलाया जोड़-गाँठ में ||
अंतर-मन से बतकही, होती रहती मौन ।
सिंहावलोकन कर सके, हो अतीत न गौण ।
हो अतीत न गौण, जांच करते नित रहिये ।
चले सदा सद्मार्ग, निरंतर बढ़ते रहिये ।
परखो हर बदलाव, मुहब्बत अपनेपन से ।
रहे अबाध बहाव, प्रेम-सर अंतर्मन से |
बंधन काटे ना कटे, कट जाए दिन-रैन ।
विकट निराशा से भरे, आशा दीदी बैन ।
आशा दीदी बैन, चैन मन को ना आये ।
बंधन
Asha Saxena at Akanksha -
बंधन काटे ना कटे, कट जाए दिन-रैन ।
विकट निराशा से भरे, आशा दीदी बैन ।
आशा दीदी बैन, चैन मन को ना आये ।
न्योछावर सर्वस्व, बड़ी बगिया महकाए ।
फूलों को अवलोक, लोक में खुशबू तेरी ।
नारी मत कर शोक, मान ले मैया मेरी ।।
पिला रहे जा'पानी ।
खोवे व्यर्थ जवानी ।
प्राकृतिक संरचना खोती, अति रोग घेरते दुष्ट ।।
(2)
आनंदम आनंदम आनंदम, ढूंढ रहे सब सुख संगम ।
मिथ्या जीत की आदत ऐसी, सहना कठिन होता है गम ।
दारू चरस या ड्रग गांजा ।
चचा भतीजा मामा भांजा ।
मद-मस्ती की हेरोइन माता, हुक्का चिलम बाप का दम ।।
स्कूल में चरस और गांजा ,भुगतोगे भाई, खामियाजा
veerubhai at ram ram bhai
(1)
शुभ लक्षण त्रि-लघु समझ, गला जांघ अंगुष्ठ ।
ये छोटे गुणवान के, तन-मन उनके पुष्ट ।पिला रहे जा'पानी ।
खोवे व्यर्थ जवानी ।
प्राकृतिक संरचना खोती, अति रोग घेरते दुष्ट ।।
(2)
आनंदम आनंदम आनंदम, ढूंढ रहे सब सुख संगम ।
मिथ्या जीत की आदत ऐसी, सहना कठिन होता है गम ।
दारू चरस या ड्रग गांजा ।
चचा भतीजा मामा भांजा ।
मद-मस्ती की हेरोइन माता, हुक्का चिलम बाप का दम ।।
पाल बाबा का प्रेयर पैकेज
कमल कुमार सिंह (नारद ) at नारद
चार तरह की चल रही, दुनिया में सरकार |
नेता बाबा माफिया, हाथों में तलवार |
हाथों में तलवार, अलग साम्राज्य बना लें |
ताल मेल अंदाज, हाथ दो रक्त सना ले |
निर्मल अदना जीव, बहुत से घाघ बिराजें |
गोली बोली वोट, चोट से कोरट साजे ||
टिप्पणियां दे कर चले, खले दले संताप |
मित्र अगर सहमत नहीं, निकल चलें चुपचाप |
निकल चलें चुपचाप, क्लेश क्यों विकट बढ़ाना |
दूजा रस्ता नाप, ढूँढ़ ले और ठिकाना |
जीवन के दिन चार, यार कुछ कर ले बढ़िया |
शब्दों का व्यापार, मत कर तल्ख़ टिप्पणियाँ ||
dineshkidillagi.blogspot.com
बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteबहुत खूब.................
ReplyDeleteबंधन काटे ना कटे, कट जाए दिन-रैन ।
ReplyDeleteविकट निराशा से भरे, आशा दीदी बैन ।
बहुत बेहतरीन//
MY RECENT POST ....काव्यान्जलि ....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
bahut hi sundar .. .......
ReplyDeleteटिप्प्णी से हुवा हो अगर कोई संताप
ReplyDeleteमहोदय कर देना उल्लूक को माफ ।