चिर प्रतीक्षित रह गया एकांत
ऋता शेखर मधु at मधुर गुंजनलगे मनोरम अति-प्रिये, खिन्न मनस्थिति शांत |
रमे *कांत-एकांत में, अब भावे ना **कांत |
अब भावे ना कांत, ***कांती-कष्ट-कांदना |
छोड़ चलूं यह प्रांत, करूँगी कृष्ण-साधना |
मन में रही ना भ्रांत, छला जो तुमने हरदम |
कृष्णा छलिया श्रेष्ठ, भजूँ वो लगे मनोरम ||
*मनोरम
**पति
***बिच्छू का दंश
**पति
***बिच्छू का दंश
धन्य-धन्य भाग्य तेरे यदुरानी ,तुझको मेरा शत-शत नमन
यदुरानी तू धन्य है, धन्य हुआ गोपाल ।
दही-मथानी से रही, माखन प्रेम निकाल ।
माखन प्रेम निकाल, खाय के गया सकाले ।
ग्वालिन खड़ी निढाल, श्याम माखन जब खाले ।
जकड कृष्ण को लाय, पड़े दो दही मथानी ।
बस नितम्ब सहलाय, हँसे गोपी यदुरानी ।।
मासिक वेतन पा रहे, अभी रईसी व्याप्त |
अभी रईसी व्याप्त, पकडुआ व्याह रचाए |
पाया नहीं दहेज़, किन्तु किडनेप हो जाए |
दो रविकर दस लाख, शुरू टीचर की बारी
किस्मत जाए जाग, बढ़ा रूतबा संसारी ||
"चोरवा विवाह और मास्टर"
Sushil at "उल्लूक टाईम्स "
शनै: शनै: शनीचरा, गुरुवर हुआ समाप्त |मासिक वेतन पा रहे, अभी रईसी व्याप्त |
अभी रईसी व्याप्त, पकडुआ व्याह रचाए |
पाया नहीं दहेज़, किन्तु किडनेप हो जाए |
दो रविकर दस लाख, शुरू टीचर की बारी
किस्मत जाए जाग, बढ़ा रूतबा संसारी ||
वाह...अद्भुत रचना...बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteवाह ...बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteतुरत फुरत ऊठाता है
ReplyDeleteरविकर मिनट में कुछ
कलाकारी कर दिखाता हृ
छा जाता है ।
आभार !!
वाह ,,,,
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,
आभार...
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