रोजगार गहरे जुड़े, हिन्दी का व्यवहार |
जार जार बेजार हो, हिंदी बिन बाजार |
जार जार बेजार हो, हिंदी बिन बाजार |
हिंदी बिन बाजार, अर्थ भी जब जुड़ जाता |
रहा विरोधी घोर, शीश खुद चला नवाता |
हिंदी तन मन प्राण, राष्ट्र की मंगल-रेखा |
तुलसी सूर कबीर, प्रेम जय देवी देखा ।।
"छँट जाएगा, दलाली का आवरण" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) at उच्चारण - 1 hour ago
शोक काल की ग्रह-दशा, हो हलचल दरबार |
भ्रष्ट आचरण ले बना, ड्राफ्ट लाभ अनुसार |
भ्रष्ट आचरण ले बना, ड्राफ्ट लाभ अनुसार |
ड्राफ्ट लाभ अनुसार, लोक न लोक-तंत्र में |
तंत्र ऊर्जा-हीन, शक्ति न बची मन्त्र में |
खाल खींचता पाल, बकरियाँ लोकपाल की |
मने खैर कब तलक, खबर है शोक-काल की ||
ब्लॉग जगत का चुनाव आयोग फ़र्ज़ी है ?
करें यहाँ गम गलत सब, सच्ची दुनिया छोड़ |
ढोंगी दुर्जन स्वार्थी, देखे वहाँ करोड़ |
देखे वहाँ करोड़, होड़ अब यहाँ देखता |
तुलसी स्वांत-सुखाय, यज्ञ लहलहा देखता |
पुरस्कार का लोभ, क्षोभ ना होता भैया |
(प्रवीण पाण्डेय) at न दैन्यं न पलायनम्
पटरंगा आर एस पता, डिस्ट्रिक्ट फ़ैजाबाद |
पास होम-सिग्नल खड़ा, होम वहीँ आबाद |
पास होम-सिग्नल खड़ा, होम वहीँ आबाद |
होम वहीँ आबाद, बगल विद्यालय साजे |
घंटा तो था व्यर्थ, रेल की छुक छुक बाजे |
जम्मू देहरादून, करे तेजी मनचंगा |
मिलता रहा सुकून, बड़ा प्यारा पटरंगा ||
बदले ज़माने देखो - कविता
जुबाँ काटे गला काटे, कलेजा काट कर फेंके |
जले श्मशान में काँटा, वहां भी हाथ वो सेंके ||
रही थी दोस्ती उनसे, गुजारे थे हंसीं-लम्हे
उन्हें हरदम बुरा लगता, वही जो रास्ता छेंके ||
कभी निर्द्वंद घूमें वे, खुला था आसमां सर पर
धरा पर पैर न पड़ते, मिले आखिर छुरा लेके ||
मुहब्बत को सितम समझे, जरा गंतव्य जो पूंछा-
गंवारा यह नहीं उनको, गए मुक्ती मुझे देके ।।
'हिंदी तन मन प्राण, राष्ट्र की मंगल-रेखा
ReplyDelete' - कितना सुन्दर सूत्र-वाक्य !
Nice post.
ReplyDeleteजान के बदले जान तो पोस्ट के बदले पोस्ट,
पढ़िए-
http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/05/blog-post_16.html
करें यहाँ गम गलत सब, सच्ची दुनिया छोड़ |
ReplyDeleteढोंगी दुर्जन स्वार्थी, देखे वहाँ करोड़ |
वाह जी वाह....................
ReplyDeleteसादर.
मज़ा आ गया जी ...
ReplyDeleteहिंदी तन मन प्राण, राष्ट्र की मंगल-रेखा |
ReplyDeleteतुलसी सूर कबीर, प्रेम जय देवी देखा ।।
बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति
आखिर असली जरुरतमंद कौन है
ReplyDeleteभगवन जो खा नही सकते या वो जिनके पास खाने को नही है
एक नज़र हमारे ब्लॉग पर भी
http://blondmedia.blogspot.in/2012/05/blog-post_16.html
वाह: क्या बात है ? ..बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteसुंदर टीप... सुंदर लिंक्स....
ReplyDeleteसादर आभार।
रविकर जब काटे तो ऎसा काटे
ReplyDeleteकाटने वाला भूल जाये कैसे काटे।
वाह जी वाह क्या काटा है ।