दोहे
अरुण निगम जी साथ हैं, पुत्र भी आया साथ ।
एम् टेक एडमीशन यहाँ, दिखा रहा हूँ पाथ ।
तीन दिनों का है यहाँ, उनका सकल प्रवास ।
इसीलिए ना आ रहा, मित्र तुम्हारे पास ।।
कुंडली
शुक्रवार की रात में, आई छुक छुक रेल ।
तीन घंटे थी लेट पर, कर दी गड़बड़ खेल ।
कर दी गड़बड़ खेल , कवर दो घंटा कर ली ।
पहली यह अनुभूति, रात आशंका भर दी ।
बीस मिनट में किन्तु, हुआ सब सही नियंत्रित ।
हों टेशन के पास, बिना टेंशन एकत्रित ।।
वाह ,,,, बहुत सुंदर अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteRECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
वाह !
ReplyDeleteक्या बात है!!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 21-05-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-886 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
अरुण निगम जी राम राम, आपको शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत खूब..
ReplyDeleteअरुण भईया ल राम राम... लईका ल गाड़ा भर बधई...
ReplyDeleteअरे वाह: बहुत सुन्दर प्रस्तुति..अरुण जी...
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