Monday, 14 May 2012

दादा दादी देव, दुआ दे दुर्लभ दृष्टी-

टूटते परिवार, बिखरता समाज – विश्व परिवार दिवस पर कुछ विचार

मनोज कुमार at विचार - 58 minutes ago

संसाधन सा जानिये, संयुत कुल परिवार |
गाढ़े में ठाढ़े मिलें, बिना लिए आभार |

बिना लिए आभार, कृपा की करते वृष्टी |
दादा दादी देव, दुआ दे दुर्लभ दृष्टी |

सच्चे रिश्ते मुफ्त, हमेशा भला इरादा |
रखे सकल परिवार, सदा अक्षुण मर्यादा |

जीवन ...

  (दिगम्बर नासवा) at स्वप्न मेरे................ - 16 minutes ago

परिभाषित जीवन किया,  दृष्टिकोण में दर्द ।
प्रेम तमन्ना कर्म पर,  मजबूरी का गर्द ।

मजबूरी का गर्द , हुआ जीवन पर हावी ।
बंधी सांस की डोर, खींचता जीवन भावी ।

 हुए दिगंबर राम,  फिरें भटकें वन-वासित ।
मजबूरी का दंश, करे जीवन परिभाषित ।।

कौन सही है मैं या मेरा नक्चढ़ा दिल...

अभिषेक प्रसाद 'अवि' at खामोशी... - 58 minutes ago

 दिल तो लल्लू है सखे, सगी हैं दोनों आँख |
चले फिसलता हर घरी, बुद्धि सिखाये लाख |


बुद्धि सिखाये लाख, फफोले दिल के फोड़े |
बाहर करे गुबार, किन्तु ना उनको छोड़े |


रविकर कर विश्वास, हुआ है बड़ा निठल्लू |
पल्लू की ले आस, घुमाता दिल तो लल्लू ||

4 comments:

  1. सच्चे रिश्ते मुफ्त, हमेशा भला इरादा |
    रखे सकल परिवार, सदा अक्षुण मर्यादा |
    :)

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  2. ओह! सो क्विक!!
    मेरे विचार विचार पर हैं।

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  3. बहुत सटीक..लाजवाब...रविकर जी..

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  4. Shandaar comments...ravikar jee..sadar badhayee ke sath

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