टूटते परिवार, बिखरता समाज – विश्व परिवार दिवस पर कुछ विचार
मनोज कुमार at विचार - 58 minutes ago
संसाधन सा जानिये, संयुत कुल परिवार |
गाढ़े में ठाढ़े मिलें, बिना लिए आभार |
गाढ़े में ठाढ़े मिलें, बिना लिए आभार |
बिना लिए आभार, कृपा की करते वृष्टी |
दादा दादी देव, दुआ दे दुर्लभ दृष्टी |
सच्चे रिश्ते मुफ्त, हमेशा भला इरादा |
रखे सकल परिवार, सदा अक्षुण मर्यादा |
जीवन ...
(दिगम्बर नासवा) at स्वप्न मेरे................ - 16 minutes ago
परिभाषित जीवन किया, दृष्टिकोण में दर्द ।
प्रेम तमन्ना कर्म पर, मजबूरी का गर्द ।
मजबूरी का गर्द , हुआ जीवन पर हावी ।
बंधी सांस की डोर, खींचता जीवन भावी ।
हुए दिगंबर राम, फिरें भटकें वन-वासित ।
मजबूरी का दंश, करे जीवन परिभाषित ।।
दिल तो लल्लू है सखे, सगी हैं दोनों आँख |
चले फिसलता हर घरी, बुद्धि सिखाये लाख |
बुद्धि सिखाये लाख, फफोले दिल के फोड़े |
बाहर करे गुबार, किन्तु ना उनको छोड़े |
रविकर कर विश्वास, हुआ है बड़ा निठल्लू |
पल्लू की ले आस, घुमाता दिल तो लल्लू ||
कौन सही है मैं या मेरा नक्चढ़ा दिल...
अभिषेक प्रसाद 'अवि' at खामोशी... - 58 minutes ago
दिल तो लल्लू है सखे, सगी हैं दोनों आँख |
चले फिसलता हर घरी, बुद्धि सिखाये लाख |
बुद्धि सिखाये लाख, फफोले दिल के फोड़े |
बाहर करे गुबार, किन्तु ना उनको छोड़े |
रविकर कर विश्वास, हुआ है बड़ा निठल्लू |
पल्लू की ले आस, घुमाता दिल तो लल्लू ||
सच्चे रिश्ते मुफ्त, हमेशा भला इरादा |
ReplyDeleteरखे सकल परिवार, सदा अक्षुण मर्यादा |
:)
ओह! सो क्विक!!
ReplyDeleteमेरे विचार विचार पर हैं।
बहुत सटीक..लाजवाब...रविकर जी..
ReplyDeleteShandaar comments...ravikar jee..sadar badhayee ke sath
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