कविवर डी तन्गवेलन की हिन्दी कविता --मातृत्व की महक ... डा श्याम गुप्त
गमला पौधा सुमन खुश, आँगन भी अन्यान्य |
संतानों के सृजन से, माँ का जीवन धन्य |
संतानों के सृजन से, माँ का जीवन धन्य |
माँ का जीवन धन्य, किया बढ़िया विश्लेषण |
तंगवेलन कविराज, मस्त भावों का प्रेषण |
बहुत बहुत आभार, डाक्टर श्याम पुरौधा |
प्रस्तुत रचना पाठ, खिला मन-गमला-पौधा ||
अकेली स्त्री -- समाज और असहिष्णुता
ZEAL at ZEAL
दुर्घटना के गर्भ में, गफलत के ही बीज |
कठिनाई में व्यर्थ ही, रहे स्वयं पर खीज |
कठिनाई में व्यर्थ ही, रहे स्वयं पर खीज |
रहे स्वयं पर खीज, कठिन नारी का जीवन |
मौका लेते ताड़, दोस्ती करते दुर्जन |
कर रविकर नुक्सान, क्लेश देकर के हटना |
इनसे रहो सचेत, टाल कर रख दुर्घटना ||
चुपड़ी ललचाती रहे, रुखा- सूखा खाव |
दरकिनार नैतिक वचन, बेशक नहीं मुटाव |
दरकिनार नैतिक वचन, बेशक नहीं मुटाव |
बेशक नहीं मुटाव, चढ़ी चर्बी है भारी |
डूब रही है नाव, ढेर काया बीमारी |
यह प्रस्तुत सन्देश, घुसा के रखियो खुपड़ी |
लगे हृदय पर ठेस, बुरी है भैया चुपड़ी ||
किशोरों में बढ़ती अपराध प्रवृति
Kailash Sharma at Kashish - My Poetry
इन से भी ज्यादा महत्त्व, मात-पिता व्यवहार |
मात-पिता व्यवहार, पुत्र को मिले बढ़ावा |
पति-पत्नी तो व्यस्त, बाल मन बनता लावा |
खेल वीडिओ गेम, रहे एकाकी घर पर |
मारो काटो घेर, चढ़े फिर उसके सर पर ||
मत पूछ मेरे हौसलों की हदों के बारे में
रश्मि प्रभा... at वटवृक्ष
ख्वाहिश है आकाश सरीखी, बाधा लेती रही बलैया |
दर्द दवा से रहे चुराते, तकलीफें ताकत बनती -
देख हौसले मेरे ऊंचे, तक़दीर कहे दैया रे दैया ||
"कार्टून और लंगोट "
Sushil at "उल्लूक टाईम्स "कार्टून के भूत से, लक्ष्मण है हैरान |
दलित प्रेम के प्रेत ने, ले ली उनकी जान |
ले ली उनकी जान, बड़ी चुड़ैल भी गुस्सा |
गिने "चुने" ये लोग, भरा गोबर या भुस्सा ||
भागे रविकर भूत, लंगोटी खूब संभाली |
रही भली मजबूत, ढील होवे ना साली ||
बेहतरीन और उम्दा
ReplyDeleteतरीका आपका है जुदा जुदा ।
आपकी टिप्पणियाँ लिखने का सम्बल प्रदान करती हैं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteयह प्रस्तुत सन्देश, घुसा के रखियो खुपड़ी |
ReplyDeleteलगे हृदय पर ठेस, बुरी है भैया चुपड़ी ||
बढ़िया सीख देती अणु -टिप्पणी .