गंग-चन्द्र तन भस्म है, गले में डाला नाग |
गले में डाला नाग, हुए कैलाश निवासी |
मना रहे आनंद,बने है घट घट वासी |
पर शंकर परिवार, ठंड से कांप रहा है |
पड़ी जलानी आग, गणेशा ताप रहा है ||
महत्वपूर्ण है जिंदगी, घर के दर-दीवार |
छत्तीस से विछुड़े मगर, अब तिरसठ सट प्यार |
अब तिरसठ सट प्यार, शिला पर लिखी कहानी |
वह खिडकी संसार,दिखाए डगर जवानी |
आठ साल की ज्येष्ठ, मगर पहला था चक्कर |
चल नाले में डाल, सुझाता है यह रविकर ||
आए तुम याद मुझे --जिंदगी के ३६ साल बाद --
महत्वपूर्ण है जिंदगी, घर के दर-दीवार |
छत्तीस से विछुड़े मगर, अब तिरसठ सट प्यार |
अब तिरसठ सट प्यार, शिला पर लिखी कहानी |
वह खिडकी संसार,दिखाए डगर जवानी |
आठ साल की ज्येष्ठ, मगर पहला था चक्कर |
चल नाले में डाल, सुझाता है यह रविकर ||
बहुत बढि़या।
ReplyDeleteबहुत आभार रविकर जी !
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
बहुत बढ़िया.........
ReplyDeleteबहुत बढ़िया छंद साझा कियो हैं आपने।
ReplyDeleteक्या बात है
ReplyDeleteयात्रा में भी
पूरा कारोबार है।