दशक का ब्लॉगर, एक और गड़बड़झाला
Blog ki khabren at Blog News - 14 minutes ago
चर्राया है शौक पुराना, महिमा मंडित करने का |
इसकी टोपी उसके सर पर, उसकी अपने धरने का |
टुकड़े टुकड़े में है दुनिया, इसको और कुतरने का |
आधा सच कह देता रविकर, डाट-डैश में भरने का ||
रहन-सहन संजीव कबड्डी, तीज और त्योहारों का-
जीव-जंतु मजदूर किसानों, पर लिखते हैं भले अरुण ||
इसकी टोपी उसके सर पर, उसकी अपने धरने का |
टुकड़े टुकड़े में है दुनिया, इसको और कुतरने का |
आधा सच कह देता रविकर, डाट-डैश में भरने का ||
गाँव
अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)
गाँव-राँव की बारीकी से, वर्णन करते चले अरुण |
बाराहमासों के अलबेले, रंग ब्लॉग पर मले अरुण |
बाराहमासों के अलबेले, रंग ब्लॉग पर मले अरुण |
रहन-सहन संजीव कबड्डी, तीज और त्योहारों का-
जीव-जंतु मजदूर किसानों, पर लिखते हैं भले अरुण ||
कार्टून तो आप हैं जिन्हें कार्टून समझने की बुद्धि ही नहीं...
ZEAL - 3 minutes ago
कार्टून में हैं रखे, नोट वोट के थाक |
जर-जमीन लाकर पड़े, है जमीर पर लाक |
जर-जमीन लाकर पड़े, है जमीर पर लाक |
है जमीर पर लाक , नाक हर जगह घुसेंड़ें |
बड़े बड़े चालाक, चलें लेकिन बन भेड़ें |
रविकर रक्षक कौन, जहर जब भरा खून में |
कार्टून नासमझ, भिड़े इक कार्टून में ||
होती क्या है टीके की दवा वैक्सीन ?
veerubhai at ram ram bhai - 47 minutes ago
टीका पर करते सटीक, टीका टिप्पण आप |
लोहा लोहे से कटे, कटे विकट संताप |
कटे विकट संताप, सूक्ष्म विश्लेषण करते |
नकारात्मक पक्ष, सावधानी भी धरते |
टीका पर रख ध्यान, करे ना जीवन फीका |
रविकर करे सचेत, समझ कर लेना टीका ||
लोहा लोहे से कटे, कटे विकट संताप |
कटे विकट संताप, सूक्ष्म विश्लेषण करते |
नकारात्मक पक्ष, सावधानी भी धरते |
टीका पर रख ध्यान, करे ना जीवन फीका |
रविकर करे सचेत, समझ कर लेना टीका ||
"बन्दीघर में पाला जायेगा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
उच्चारण - 7 minutes ago
वही गुसाईं है भाई |
जब कसाब साहब बन जाए,
होती सब बेकार दुहाई ||
आधा सच भी नहीं दिखाते -
सच कैसे मीडिया बताई |
चांदी के जूते खा-करके,
होती गुरुवर आज छपाई ||
Hindi Topics
मां के साथ हुए गैंग रेप का एकमात्र गवाह था, जिंदा जला डाला
चिंटू जैसे केस नित, सहता रहा बिहार ।होय दबंगों के घरे, हर रिश्ते की हार ।
हर रिश्ते की हार, बहन बेटी पर आफत ।
केवल सेक्स विचार, छोड़ते रहे शराफत ।
ऊपर से छह इंच, नहीं अब बीच काट दो ।
बहुत बड़े यह मर्द, नपुंसक बीच बाँट दो ।।
सिर्फ नाम बदला है
बिल्ला चुहिया को खा जाये, चूहे बिल में छुपे दुबकते |
कहीं कभी भी वो आ जाये, चूहे केवल रहे सुबकते |
इन रंगा-बिल्लों को आखिर, सजा दिलाना होगा हमको -
घंटी नहीं बांधनी अबतो, गर्दन फंदा डाल निबटते ||
कहीं कभी भी वो आ जाये, चूहे केवल रहे सुबकते |
इन रंगा-बिल्लों को आखिर, सजा दिलाना होगा हमको -
घंटी नहीं बांधनी अबतो, गर्दन फंदा डाल निबटते ||
कमाल का कमेंट है।
ReplyDeleteहमारी रिपोर्टिंग पूरी तरह निर्भीक और बेलालच है।
क्यों ?
बहुत बढि़या।
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteबहुत खूब..............................
सादर.
उम्दा सधी हुवी !!
ReplyDeleteबढ़िया है ,....रविकर जी
ReplyDeleteबढ़िया है .
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