Sunday, 6 May 2012

मस्त माल-मधु चाभ, वकालत प्रवचन भाषण -

मदारी बुद्धि -सतीश सक्सेना

सतीश सक्सेना at मेरे गीत !  

वाणी के व्यवसाय में, सदा लाभ ही लाभ ।
न हर्रे न फिटकरी, मस्त माल-मधु चाभ ।

मस्त माल-मधु चाभ, वकालत प्रवचन भाषण ।
कोई नहीं *प्रमाथ, धनिक खुद करे समर्पण ।

गुंडे गंडा बाँध, *सांध पर मारे धावा । 
पाले पोषे फ़ौज, चढ़े नित चारु चढ़ावा ।

*बलपूर्वक हरण ।
*लक्ष्य

चाँद का दाग...

डॉ. जेन्नी शबनम at लम्हों का सफ़र
बैठ खेलती रही गिट्टियां, संध्या पक्के फर्श पर |
खेल खेल में बढ़ा अँधेरा,  खेल परम उत्कर्ष पर |

चंदा मामा पीपल पीछे, छुपे चांदनी को लेकर -
मैं नन्हीं नादान बालिका, फेंकी गिट्टी अर्श पर ||  



सजीव कविता ...

  (दिगम्बर नासवा) at स्वप्न मेरे. 
अपने पर कविता लिखे, जाँय तनिक सा दूर |
इससे अच्छा है जियें, वर्तमान भरपूर ||


4 comments:

  1. वाह: बहुत बढ़िया..

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  2. बैठ खेलती रही गिट्टियां, संध्या पक्के फर्श पर |
    खेल खेल में बढ़ा अँधेरा, खेल परम उत्कर्ष पर |

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  3. वाह ...बेहतरीन।

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