मदारी बुद्धि -सतीश सक्सेना
सतीश सक्सेना at मेरे गीत !
वाणी के व्यवसाय में, सदा लाभ ही लाभ ।
न हर्रे न फिटकरी, मस्त माल-मधु चाभ ।
मस्त माल-मधु चाभ, वकालत प्रवचन भाषण ।
कोई नहीं *प्रमाथ, धनिक खुद करे समर्पण ।
कोई नहीं *प्रमाथ, धनिक खुद करे समर्पण ।
गुंडे गंडा बाँध, *सांध पर मारे धावा ।
पाले पोषे फ़ौज, चढ़े नित चारु चढ़ावा ।
*बलपूर्वक हरण ।
*लक्ष्य
चाँद का दाग...
डॉ. जेन्नी शबनम at लम्हों का सफ़रबैठ खेलती रही गिट्टियां, संध्या पक्के फर्श पर |
खेल खेल में बढ़ा अँधेरा, खेल परम उत्कर्ष पर |
चंदा मामा पीपल पीछे, छुपे चांदनी को लेकर -
मैं नन्हीं नादान बालिका, फेंकी गिट्टी अर्श पर ||
सजीव कविता ...
(दिगम्बर नासवा) at स्वप्न मेरे.
अपने पर कविता लिखे, जाँय तनिक सा दूर |
इससे अच्छा है जियें, वर्तमान भरपूर ||
इससे अच्छा है जियें, वर्तमान भरपूर ||
वाह...बहुत अच्छी प्रस्तुति,....
ReplyDeleteRECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
वाह: बहुत बढ़िया..
ReplyDeleteबैठ खेलती रही गिट्टियां, संध्या पक्के फर्श पर |
ReplyDeleteखेल खेल में बढ़ा अँधेरा, खेल परम उत्कर्ष पर |
वाह ...बेहतरीन।
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