बड़ा कबाड़ी है खुदा, कितना जमा कबाड़ |
जिसकी कृपा से यहाँ, कचडा ढेर पहाड़ |
जिसकी कृपा से यहाँ, कचडा ढेर पहाड़ |
कचडा ढेर पहाड़, नहीं निपटाना चाहे |
खाय खेत को बाड़, बाड़ को बड़ा सराहे |
करता सज्जन मुक्त, कबाड़ी बड़ा अनाड़ी |
दुर्जन पुनुरुत्पत्ति, करे हर बार कबाड़ी ||
गिद्ध की तरह क्या नजर पायी है
ReplyDeleteकबाड़ी और कबाड़ दोनो को ले आई है
रविकर तेरी नजर में मुझे हजार नजर
इस बार नजर आई हैं ।
कबाडी तेरी महिमा न्यारी...
ReplyDeleteअदभुत काव्य लेखन,......
ReplyDeletebahut sundar rachna --------
ReplyDeleteकचडा ढेर पहाड़, नहीं निपटाना चाहे |
ReplyDeleteखाय खेत को बाड़, बाड़ को बड़ा सराहे |
बढ़िया प्रस्तुति बाढ़ के खाने का भी तो एक अंदाज़ होता है .
वाह क्या बात है!! आपने बहुत उम्दा लिखा है...बधाई
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