"कड़वी चीनी"
Sushil
"उल्लूक टाईम्स "
"उल्लूक टाईम्स "
नमक खाय के भी करें, लुच्चे हमें हलाल ।
घूस खाय के ख़ास-जन, खूब बजावें गाल ।
खूब बजावें गाल, चाल टेढ़ी ही चलते।
आम रसीले चूस, भद्र-जनता को छलते ।
कडुआहट भरपूर, भरें जीवन में भैया ।
चीनी कडुवी होय, कहाँ अब प्रेम-सेवइयां ।।
"देश में हम जहर उगलते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गिरगिटान ने गिलट से, गिला किया है दूर |
गिरहबाज गोते लगा, मजा करे भरपूर |
मजा करे भरपूर, चूर कलई करवा कर |
पद-मद चढ़ा शुरूर, चना थोथा बजवाकर |
पर कलई जिस रोज, खुलेगी रविकर तेरी |
*गिलगिल मार भगाय, नहीं किंचित भी देरी |
*घड़ियाल / मगरमच्छ
रोजगार गहरे जुड़े, हिन्दी का व्यवहार |
जार जार बेजार हो, हिंदी बिन बाजार |
जार जार बेजार हो, हिंदी बिन बाजार |
हिंदी बिन बाजार, अर्थ भी जब जुड़ जाता |
रहा विरोधी घोर, शीश खुद चला नवाता |
हिंदी तन मन प्राण, राष्ट्र की मंगल-रेखा |
तुलसी सूर कबीर, प्रेम जय देवी देखा ।।
बहुत बढ़िया कुण्डलियाँ...!
ReplyDeleteहिंदी तन मन प्राण, राष्ट्र की मंगल-रेखा |
ReplyDeleteतुलसी सूर कबीर, प्रेम जय देवी देखा ।।
बहुत सुंदर कुंडलियाँ ,..अच्छी प्रस्तुति
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
कडुआहट भरपूर, भरें जीवन में भैया ।
ReplyDeleteचीनी कडुवी होय, कहाँ अब प्रेम-सेवइयां ।।टिपण्णी खूब लिखें अपने ये रविकर भैया
हिंदी तन मन प्राण, राष्ट्र की मंगल-रेखा |
तुलसी सूर कबीर, प्रेम जय देवी देखा ।।
बहुत उत्तम कुण्डलियाँ
ReplyDeleteअभार जी !
ReplyDelete.चर्चा मंच पर फिर अच्छी लगी यह रचना .
ReplyDelete