जनता खड़ी निहारती, चाचा चाबुक तान |
हैं घोंघे को ठेलते, लें बाबा संज्ञान |
लें बाबा संज्ञान, रोल हम सभी सराहें |
संविधान निर्माण , भरे संसद क्यूँ आहें |
न कोई अपमान, विमोचन इस पुस्तक का |
ईस्वी सन उनचास, किये खुद नेहरु कब का ||
ईस्वी सन उनचास, किये खुद नेहरु कब का ||
बीमा एक करोड़ का, करने से क्या लाभ |
कर जुगाड़ मालिक बड़ा, बनकर नौकर चाभ |
बनकर नौकर चाभ, लाभ का सौदा प्यारे |
अवमूल्यन का दौर, किश्त भर बीमा मारे |
आँखे रक्खो खोल, पोल बड़ खोलो भाई |
भरे पड़े हैं चोर, करो इस तरह कमाई ||
कर जुगाड़ मालिक बड़ा, बनकर नौकर चाभ |
बनकर नौकर चाभ, लाभ का सौदा प्यारे |
अवमूल्यन का दौर, किश्त भर बीमा मारे |
आँखे रक्खो खोल, पोल बड़ खोलो भाई |
भरे पड़े हैं चोर, करो इस तरह कमाई ||
वाह: बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteचलिये अगली बार पोल उठाते हैं ।
ReplyDeleteवाह !!!! क्या बात है ,
ReplyDeletesundar rachna !
ReplyDeleteइंस्टैंट कॉफ़ी , इंस्टेंट गीज़र , इंस्टैंट पराठे तो सुने देखे थे, लेकिन आलेखों पर , कविताओं के रूप में लिखी गयी आपकी "हाजिरजवाब टिप्पणियां" तो यकीनन मन मोह लेने वाली होती हैं। आभार।
ReplyDeleteजनता खड़ी निहारती, चाचा चाबुक तान |
ReplyDeleteहैं घोंघे को ठेलते, लें बाबा संज्ञान |
badhiyaaa hai bhaai saahab sateek .,nishaane par .