चल मन ....लौट चलें अपने गाँव .....!!
छुट्टी का हक़ है सखी, चौबिस घंटा काम |
बच्चे पती बुजुर्ग की, सेवा में हो शाम |
बच्चे पती बुजुर्ग की, सेवा में हो शाम |
सेवा में हो शाम, नहीं सी. एल. ना इ. एल. |
जब केवल सिक लीव, जाय ना जीवन जीयल |
रविकर मइके जाय, पिए जो माँ की घुट्टी |
ढूँढ़ सके अस्तित्व, बिता के दस दिन छुट्टी ||
हँसना तो बनता है !!
वाणी गीत at गीत मेरे
मूंगफली भरपेट खा, मुफ्तखोर की खीज |
खांसी जकड़ी गले को, बड़ी बुरी यह चीज |
बुरा लगे भाई |
चापे गुड़ की रेवड़ी, चारबाग़ में बैठ |
बाढ़े गर मधुमेह तो, जाए मुझसे ऐंठ |
मेरी क्या खता ?
पानी की तरह धन बहाना, ना चलेगा यह बहाना |
धन की तरह पानी बहाना, आया यही अब ज़माना ||
पानी के बुलबुले सा मिटे, चाहता है क्या नादान-
बंद कर सूखे में डूब के, पानी में आग लगाना ||
खांसी जकड़ी गले को, बड़ी बुरी यह चीज |
बुरा लगे भाई |
चापे गुड़ की रेवड़ी, चारबाग़ में बैठ |
बाढ़े गर मधुमेह तो, जाए मुझसे ऐंठ |
मेरी क्या खता ?
पानी का इतिहास
न दैन्यं न पलायनम्पानी की तरह धन बहाना, ना चलेगा यह बहाना |
धन की तरह पानी बहाना, आया यही अब ज़माना ||
पानी के बुलबुले सा मिटे, चाहता है क्या नादान-
बंद कर सूखे में डूब के, पानी में आग लगाना ||
Roshi: देखा आज एक पूर्ण पल्लवित पलाश का एक वृक्ष अपने पूर...
Roshiमनभावन यह सीनरी, देख सीन री देख |
नख शिख तक सज्जा किये, प्रेम मयी आलेख |
प्रेम मयी आलेख, बुलाया भी प्रेयसी को |
लेकिन तूफाँ-शेख, रिझाए वह बहशी को |
पेट्रो-डालर थाम, छोड़ कर प्यारा सावन |
चुका प्रेम का दाम, गई दे गम-मनभावन ||
यह किसी मुहावरे का वाक्य प्रयोग नहीं है प्रिय
sidheshwer at कर्मनाशा -
लगा आलता पैर में, बना महावर लाख |
मार आलथी पालथी, सेंके आशिक आँख |
सेंके आशिक आँख, पाख पूरा यह बीता |
शादी की यह भीड़, पाय ना सका सुबीता |
बिगड़े हैं हालात, प्रिये पद-चाप सालता |
आओ फिर चुपचाप, तनिक दूँ लगा आलता ||
"उल्लूक टाईम्स "
http://ulooktimes.blogspot.in/2012/05/blog-post_22.html
होते तनिक सवेर, बड़ी चिंता चप्पल की |
होय सर्जरी हर्ट, हास्य की देके झलकी |
जाए अन्दर जूझ, गया दर्शन समझा के |
है पूरा विश्वास, पहनना चप्पल आके ||
चप्पल चोरी हो गई, इसीलिए कुछ देर |
शाम का भूला आ गया, होते तनिक सवेर |
शाम का भूला आ गया, होते तनिक सवेर |
होते तनिक सवेर, बड़ी चिंता चप्पल की |
होय सर्जरी हर्ट, हास्य की देके झलकी |
जाए अन्दर जूझ, गया दर्शन समझा के |
है पूरा विश्वास, पहनना चप्पल आके ||
वाह.............
ReplyDeleteबहुत सुंदर रविकर जी....
सादर.
वाह ... बहुत ही बढिया प्रस्तुति ...आभार ।
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति
ReplyDeleteनीरज
वाह ,,,, बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteपानी के बुलबुले सा मिटे, चाहता है क्या नादान-
ReplyDeleteबंद कर सूखे में डूब के, पानी में आग लगाना ||
बहुत गहरा अर्थ लिए है ये कुंडली .जलखोरों को आइना दिखाती .