"शिव का डमरू बन जाऊँगा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शीर्ष कैबिनेट ब्रह्म का, पञ्च मुखी हैं माथ ।
चार देवता पक्ष के, नहीं पांचवा साथ ।
नहीं पांचवा साथ, सदा पूंजी-पति राक्षस ।
देता टांग अड़ाय, होय अच्छा बिल वापस ।
शंकर से फिर बोल, छुडाओ मारक राकेट ।
कटे गधे का शीश, ठीक हो शीर्ष कैबिनेट ।।
बड़ा कठिन यह काम है , फिर भी साधूवाद |
करे जो अपना आकलन , वही बड़ा उस्ताद |
खुद को बांधा है शब्दों के दायरे में - - संजय भास्कर
संजय भास्कर at आदत...मुस्कुराने की -
बड़ा कठिन यह काम है , फिर भी साधूवाद |
करे जो अपना आकलन , वही बड़ा उस्ताद |
वही बड़ा उस्ताद, दाद देता है रविकर |
रच ले तू विंदास, कुशल से चले सफ़र पर |
मात-पिता आशीष, आपकी सुधी कामना |
हो जावे परिपूर्ण, सत्य का करो सामना ||
"उल्लूक टाईम्स "
डाला सेल या दिल दिया, बीच घडी के डाल |
टाइम से आकर करे, इकदम नया बवाल |
टाइम से आकर करे, इकदम नया बवाल |
इकदम नया बवाल, पती सब खेले खाए |
पा पत्नी से काम, काम में मगन सिधाए |
रविकर नेक सलाह, डाल जा हेरिसन-ताला |
कर ले यार विवाह, साज के भेजो डाला ||
अन्नाबाबा बोल गए
अन्ना बाबा बोलते, हुए धरा से गोल |
पैग सिद्ध अंतिम हुआ, क्या षड्यंत्री रोल |
क्या षड्यंत्री रोल, बरस सौ उनको जीना |
टैक्स दिया न टोल, छोड़ क्यूँ गए काबीना |
अब अंतिम सन्देश, सुनाते लास्ट तमन्ना |
परिकल्पना में फर्स्ट, जरा रुक जाते अन्ना ||
भाभियाँ
Anita at मन पाए विश्राम जहाँभाभी माँ के हाथ की, पूरी साग अचार |
स्नेहसिक्त पा भोग को, खाय मार चटकार |
खाय मार चटकार, बड़ी बढ़िया है भाभी |
बनी मूल आधार, सभी भैया की चाभी |
मइके का यह प्रेम, पाइए हरदम जाके |
माँ का स्वास्थ्य शिथिल, जाइए भाभी माँ के ||
मेरा मन
sangita at panchnama
मनहर यह रचना लगी, इच्छा बोध विचार |
सहे वेदना मन सभी, बढ़िया ये उदगार |
बढ़िया ये उदगार, बोझ मन भर मन धरते |
यह जीवन संसार, कभी न पार उतरते |
उत्सव का एहसास, कराये हरदम रविकर |
मन ही सच्चा दोस्त, भरोसा मन का मनहर ||
"गॄहकाज"
निवेदिता श्रीवास्तव at संकलनमन्त्र-मुग्ध पढता गया, शब्द-अब्द नि:शब्द |
काम घरेलू छोड़ दो, गिरा गिरा मन गद्द |
गिरा गिरा मन गद्द , भला सुनने में लागे |
लेकिन पति श्री पन्त, काम जब बाकी आगे |
कैसे कोई नार, करे सपनों में विचरण |
ख़तम करूंगी काम, काम का देखूं दर्पण ||
आपका यह प्रयास बेहद सराहनीय है ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह..इतनी त्वरित सेवा।
ReplyDeleteकाश हमारे राजनेताओं और सरकारी विभागों की भी ऐसी ही होती!
बड़ा कठिन यह काम है , फिर भी साधूवाद |
ReplyDeleteकरे जो अपना आकलन , वही बड़ा उस्ताद |
बहुत बढ़िया है रविकर जी सभी अनु -टिपण्णी जो सदैव ही एक स्वतंत्र रचना की हैसियत लिए आतीं हैं .आभार .
हा हा !!
ReplyDeleteरविकर कैसे इस बाबा के चक्कर में आया
बिना पिये जो पैगों की माला चिपकाया ।
जबरदस्त प्रस्तुति
ReplyDeleteभाई साहब यहाँ तो मुद्दा सिर्फ घड़ियों के सेल बदलवाने तक महदूद है .हम तो एक मर्तबा अपने और भी दांत निकल वाने को तैयार हो गए थे स्मोकिंग(निकोटिन ) हमारे जबड़े हजम कर चुकी है .कोई न कोई दांत निकलवाना ही पड़ा है गत दशक में .खोखले जो हो चुके हैं .रूट केनाल थिरेपी सबको बचा नहीं सकी है .किस्सा डेंटल कोलिज रोहतक का है .बला की खूबसूरत थी वह हसीना ,पास लाके सीना बड़े करीने से नेह स्पर्श से अपना काम करती थी .वह छूअन जादुई थी जब तक किसी और दांत ने मुंह का साथ छोड़ने की दस्तक दी वह जा चुकी थी .बढ़िया और सूक्ष्म व्यंग्य विनोद मानसिक कुन्हासा आपने उकेरा है .बधाई . कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
मंगलवार, 22 मई 2012
:रेड मीट और मख्खन डट के खाओ अल्जाइ -मर्स का जोखिम बढ़ाओ
http://veerubhai1947.blogspot.in/
और यहाँ भी -
स्वागत बिधान बरुआ :आमंत्रित करता है लोकमान्य तिलक महापालिका सर्व -साधारण रुग्णालय शीयन ,मुंबई ,बिधान बरुआ साहब को जो अपनी सेक्स चेंज सर्जरी के लिए पैसे की तंगी से जूझ रहें हैं .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
दिखाओ खुलके खुद को आइना ,डटके करो सच का सामना ,बड़े भाई दिल संभालना ,दिमाग को खंगालना और ...पूरी करो संजय भाई ... कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
मंगलवार, 22 मई 2012
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भाई साहब टिपण्णी हमारी स्पैम में जा रही है .कृपया स्पैम बोक्स से निकालें .दो मर्तबा गायब हो चुकी है .यहाँ मामला सेल तक सीमित है हम तो बत्तीसी निकलवाने पहुँच गए थे लेकिन साहब वह सौन्दर्य कथा (रिचा )जा चुकी थी बदली होके डेंटल कोलिज से .जिसका हाथ का स्पर्श दन्त पीड़ा हर लेता था .जम्हूर(ज़म्भूर ,दांत को पुल करने वाला औज़ार ) गुलाब हो जाता था . कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
मंगलवार, 22 मई 2012
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ReplyDeleteभाई साहब टिपण्णी हमारी स्पैम में जा रही है .कृपया स्पैम बोक्स से निकालें .दो मर्तबा गायब हो चुकी है .यहाँ मामला सेल तक सीमित है हम तो बत्तीसी निकलवाने पहुँच गए थे लेकिन साहब वह सौन्दर्य कथा (रिचा )जा चुकी थी बदली होके डेंटल कोलिज से .जिसका हाथ का स्पर्श दन्त पीड़ा हर लेता था .जम्हूर(ज़म्भूर ,दांत को पुल करने वाला औज़ार ) गुलाब हो जाता था . कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
मंगलवार, 22 मई 2012
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बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
सुंदर टीप... सुंदर लिंक्स...
ReplyDeleteसादर आभार।