Wednesday, 16 May 2012

लाश रहे दफ़नाय, काट के बोटी-बोटी-

माँ के दूध का कर्ज़

Maheshwari kaneri at अभिव्यंजना  

तीर्थ-यात्रा का बना, मनभावन प्रोग्राम |
दादी सुमिरन में रमी,  जय राधे घनश्याम |

जय राधे घनश्याम, चले मथुरा से काशी |
दादी गई भुलाय, बाल-मन परम उदासी |

पढ़ी दुर्दशा आज, भजन से मिलती रोटी |
लाश रहे दफ़नाय, काट के बोटी-बोटी ||


मरणोपरांत

Mridula Harshvardhan at Naaz

मात्र कल्पना से सिहर, जाती भावुक देह |
अब मसान की आग भी, जला सके ना नेह |


जला सके ना नेह, गेह अब खाली खाली |
तनिक नहीं संदेह, मोक्ष रविकर ने पाली |


लेकिन एक सवाल, तुम्हारा मुझको ठगना |
कैसे जाते छोड़, किया क्या कभी कल्पना ?? 


बदले ज़माने देखो - कविता



जुबाँ काटे गला काटे, कलेजा काट कर फेंके |
जले श्मशान में काँटा, वहां भी हाथ वो सेंके ||

रही थी दोस्ती उनसे, गुजारे थे  हंसीं-लम्हे
उन्हें हरदम बुरा लगता, वही जो रास्ता छेंके ||

कभी निर्द्वंद घूमें वे, खुला था आसमां सर पर
धरा पर पैर न पड़ते, मिले आखिर छुरा लेके ||


मुहब्बत को सितम समझे, जरा गंतव्य जो पूंछा-
 गंवारा यह नहीं उनको, गए मुक्ती मुझे देके ।।

9 comments:

  1. बहुत बढ़िया।
    अच्छी कुण्डलियाँ!

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  2. दोनों गहन, मर्मस्पर्शी रचनाओं पर आपकी सटीक टिप्पणी.....
    शुक्रिया रविकर जी.

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  3. मार्मिक प्रसंग कारुणिक टिपण्णी .

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  4. very appealing counter comments.

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  5. रविकर जी की टिप्पणी से निखर जाती है
    श्रंगार कर के जैसे ब्यूटी पार्लर से आती है।

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  6. बहुत बढ़िया, रविकर जी कि टिप्पड़ी रविकर जी कविताओ के समानुपात होती है ...

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  7. रचना पढ़कर तो मजा आता ही है परन्तु रविकर जी की टिपण्णी से उसमे चार चाँद लग जाते हैं तीनो टिपण्णी (कुंडलियाँ ,ग़ज़ल )बेहतरीन हैं

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  8. बहुत सुन्दर.. मेरी रचना को मान दिया आभार रविकर जी..

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