लेखकीय स्वाभिमान के निहितार्थ
(1)
दम्भी ज्ञानी हर सके, साधुवेश में नार |
नीति नियम ना सुन सके, झटक लात दे मार |
झटक लात दे मार, चाहता लल्लो-चप्पो |
झूठी शान दिखाय, रखे नित हाई टम्पो |
जाने ना पुरुषार्थ, करे पर बात सयानी |
नहीं शमन अभिमान, करे ये दम्भी-ज्ञानी ||
(2)
एम् टेक एड्मिसन लई, अरुण निगम सह पूत |
मेजबान मेरे बने, पाया स्नेह अकूत |
पाया स्नेह अकूत, बिदाई हुई आज है |
था पहला कर्तव्य, हुआ संपन्न काज है |
रविकर है निश्चिन्त, करेगा नियमित दर्शन |
सादर सुज्ञ प्रणाम, करूं टिप्पण का सृजन ||
मेजबान मेरे बने, पाया स्नेह अकूत |
पाया स्नेह अकूत, बिदाई हुई आज है |
था पहला कर्तव्य, हुआ संपन्न काज है |
रविकर है निश्चिन्त, करेगा नियमित दर्शन |
सादर सुज्ञ प्रणाम, करूं टिप्पण का सृजन ||
जाने ना पुरुषार्थ, करे पर बात सयानी |
ReplyDeleteनहीं शमन अभिमान, करे ये दम्भी-ज्ञानी ||
मनभावन सृजन के क्षण हैं ये ज़नाबे आला आना आपके ब्लॉग पर आरती की टेक है .
सुपुत्र निगम को बधाई हमारी भी .
कृपया यहाँ भी पधारें -
सोमवार, 21 मई 2012
यह बोम्बे मेरी जान (चौथा भाग )
http://veerubhai1947.blogspot.in/
तेरी आँखों की रिचाओं को पढ़ा है -
उसने ,
यकीन कर ,न कर .
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteवाह ,,,, बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteसिम्पली ब्रिलिएंट!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteतो यहाँ भी सजाया है? आभार!!
ReplyDeleteअर्थ समर्थ काव्य!!