Wednesday, 10 October 2012

बाल-श्रम पर विवाद : निगम-धीर-उमा / संगीता दी और रश्मिप्रभा जी भी


बाल श्रमिक
अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)
बालश्रमिक को देखकर ,मन को लागे ठेस
बचपन  बँधुआ  हो गया , देहरी  भइ  बिदेस
देहरी  भइ  बिदेस ,  भूलता  खेल –खिलौने
छोटा -  सा मजदूर  ,  दाम  भी  औने – पौने
भेजे शाला कौन ?  दुलारे कर्म–पथिक को
मन को लागे ठेस, देखकर बालश्रमिक को ||
  1. कल रोटी पाया नहीं, केवल मिड-डे मील ।
    बापू-दारुबाज को, दारु लेती लील ।
    दारु लेती लील, नोचते माँ को बच्चे ।
    समझदार यह एक, शेष तो बेहद कच्चे ।
    छोड़ मदरसा भाग, प्लेट धोवे इक होटल ।
    जान बचा ले आज, सँवारे तब ना वह कल । 






    1. कवित्त 
      अपराध नहीं बाल श्रम है ये शिक्षा भाई
      संवेदनशीलता किसने जतलाई है|
      राजनितिक आह ने विपदा में डाल दिया
      घर के चिराग यहाँ रौशनी जलाई है||
      राम जी के श्रम बल ताड़का का बध हुआ
      संघर्ष की शुरुवात हमें दिखलाई है|
      श्रम एक बल है अनुभव से भरने का
      बालपन के श्रम ने महानता पाई है||
  1. हालत अति चिंताजनक,दिशा दिखाए कौन
    प्रश्न बड़ा खुलकर खड़ा,दसों दिशायें मौन
    दसों दिशायें मौन , यही वो नौनिहाल हैं
    जिसके काँधे रखा,सुनहरा कल विशाल है
    व्यर्थ बिखर ना जाय,कीमती है यह दौलत
    मिलजुल करें विचार ,सुधारें कैसे हालत ||







    1. बाल श्रमिक को देखकर, न हो भाई उदास
      बैठा है इस श्रमिक में,छुप कर हिंदुस्थान  ।

      1. भूख कराती काम है ,कैसे जाएँ स्कूल
        सबसे पहले उदर है , कैसे जाएँ भूल ? 







        1. बाल श्रमिक से हि निकले,लिंकन जैसे मान
          देगा अनुभव श्रम काज, सीखे बालक ज्ञान    ।

          नाता रोटी-भूख का , क्या-क्या ना करवाय
          शाला पोथी बालपन, पल-पल फिसला जाय
          पल-पल फिसला जाय,लौटकर फिर ना आए
          दो पाटन के बीच , उमरिया पिसती जाए
          बाट जोहते आय ,कहीं से भाग्य - विधाता
          शाला - पोथी संग , जोड़ दे अपना नाता ||


          नाता रोटी भूख का,जटिल किया है प्रश्न
          बालक श्रम करता हुवा, मना रहा है जश्न
          मना रहा है जश्न,खुशी उसके गालों पर
          घर की भूख मिटाय,खुशी महिनो सालों की
          यह भी है बलिदान,खुशी इसमें वह पाता
          नन्हे का यह रूप,भूख का श्रम से नाता

          1. प्रथम पूरती पेट की, बिन इसके पगलाय|
            हाथ पैर मारे बिना, कैसे जीव अघाय |
            कैसे जीव अघाय, भजन भी हो नहिं पावे |
            भूखा बच्चा विकल, मदरसा कैसे जावे |
            बिना किये कुछ काम, करोड़ों खाय मूरती
            किन्तु करोड़ों बाल, होय ना प्रथम पूरती ||







            1. क्षुधा पूर्ति क्या सिर्फ है ,जीवन का उद्देश्य
              फिर तो देश समाज का ,गठन है निरुद्देश्य
              गठन है निरुद्देश्य, सबल के मन है दुविधा
              समझें यदि दायित्व,मिलेगी सबको सुविधा
              नहीं असम्भव काज , करें समवेत प्रतिज्ञा
              जीवन का उद्देश्य ,सिर्फ है क्षुधा पूर्ति क्या ?



            पेट बिन जब नर बना,सोता था दिन रात
            ब्रम्हा जी भी डर गए,क्यों ये कृति अनाथ
            क्यों ये कृति अनाथ,डरे ब्रम्हा निरमाता
            डाला उसमें पेट ,भूख से जब हो नाता
            भागा करने काम ,ये ज्वाला भूख समेट
            बनी सृष्टि सार्थक,उद्देश्य जीवन का पेट


            1. खाने को रोटी नहीं
              ना तन पे कपडा - फिर कैसा स्वास्थ्य दिवस !
              श्रम करे नन्हीं उम्र
              2 पैसे की प्रत्याशा में - कैसी समानता !








            1. खाने को रोटी नहीं ,ना तन पर परिधान
              बाल श्रमिक के वास्ते ,कोई नहीं मकान
              कोई नहीं मकान, स्वास्थ्य है राम भरोसे
              नन्हीं कोमल उम्र,भला किसको अब कोसे
              हुई योजना ध्वस्त , कागजी कोरी खोटी
              ना तन पर परिधान,न ही खाने को रोटी |

          1. सारी प्लेटें थालियाँ, करता बढ़िया साफ़ |
            बाल श्रमिक के नियंता, करना हमको माफ़ |
            करना हमको माफ़, सुबह में चाय समोसे |
            फिर दुपहर में भात, रात में राम भरोसे |
            छोटे छोटे हाथ, माथ पर बोझा भारी |
            रूपये रहा कमाय, खरीदू साड़ी सारी ||








            1. चाय समोसे भात तक,ना सिमटी है बात
              घिर जाते दुर्व्यसन में , गहरी सोचें तात्
              गहरी सोचें तात् , तँबाखू दारू बीड़ी
              लील रही है आज , देश की भावी पीढ़ी
              धरे हाथ में हाथ , न बैठें राम भरोसे
              महँगे ना पड़ जायँ ,कहीं ये चाय समोसे |

          1. शिक्षा के अधिकार की, उड़ी धज्जियां मान |
            कान्वेंट में इण्डिया, शाला हिन्दुस्तान |
            शाला हिन्दुस्तान, नक्सली रहे ठहरते |
            या तो गुरु-घंटाल, बैठ बेगारी करते |
            केवल मिड डे मील, समझकर लेते भिक्षा |
            विश्व संगठन आज, गिने बच्चों की शिक्षा ||






            1. अपने जीवन में हुई , दोहरायें ना भूल
              बच्चों को तो भेजिये , पढ़ने को स्कूल
              पढ़ने को स्कूल, हुई क्यों मन में दुविधा
              सहिये थोड़ी आप,इनकी खातिर असुविधा
              निश्चित मानें बात ,पूर्ण होंगे सब सपने
              दोहरायें ना भूल , हुई जीवन में अपने |

          1. कहीं चूड़ियाँ लाख की, कहीं बगीचे जाय |
            कहीं कारपेट बन रहे, बीड़ी कहीं बनाय |
            बीड़ी कहीं बनाय, आय में करे इजाफा |
            सत्ता का सब स्वांग, देखकर भांप लिफाफा |
            होमवर्क को भूल, घरों में तले पूड़ियाँ |
            चौका बर्तन करे, टूटती नहीं चूड़ियाँ ||






            1. सारी उम्र श्रम के लिये,बचपन को तो बख्स
              पढ़ा लिखा बलवान हो ,हर समाज हर शख्स
              हर समाज हर शख्स , तभी तो देश बढ़ेगा
              नये - नये आयाम , विश्व में तभी गढ़ेगा
              बाल - श्रमिक ना बने , करें ऐसी तैयारी
              बचपन को तो बख्स,उम्र श्रम के लिये सारी |

        1. बालश्रमिक मिल जायगें,गली गली चहु ओर
          मजबूरी है भूख की, नही उन्हें कहि ठौर
          नही उन्हें कहि ठौर,होटल में बर्तन धोते
          नही मिला यदि काम,मिलेगे कार पोछते
          देख धीर ये हाल,मिलता क्या पारिश्रामिक
          कैसे हो ये दूर हिन्दुता से बाल श्रमिक,,,,, 
          1. बाल श्रम का कारुणिक मानवीकरण .


            बालश्रमिक को देखकर ,मन को लागे ठेस
            बचपन बँधुआ हो गया , देहरी भइ बिदेस
            देहरी भइ बिदेस , भूलता खेल –खिलौने
            छोटा - सा मजदूर , दाम भी औने – पौने
            भेजे शाला कौन ? दुलारे कर्म–पथिक को
            मन को लागे ठेस, देखकर बालश्रमिक को ||

            कहीं चूड़ियाँ लाख की, कहीं बगीचे जाय |
            कहीं कारपेट बन रहे, बीड़ी कहीं बनाय |
            बीड़ी कहीं बनाय, आय में करे इजाफा |
            सत्ता का सब स्वांग, देखकर भांप लिफाफा |
            होमवर्क को भूल, घरों में तले पूड़ियाँ |
            चौका बर्तन करे, टूटती नहीं चूड़ियाँ ||

            इन दोनों महारथियों ने (रविकर जी ,अरुण निगम जी ने )बाल श्रम के पूरे विस्तृत क्षेत्र की पूर्ण पड़ताल की है इस विमर्श में .

            छोटी सी गाड़ी लुढ़कती जाए ,

            यही बाल श्रमिक कहलाए .

            घरु रामू मल्टीटासकर है ,

            कहीं पर है रामू ,कहीं बहादुर .

            भाई साहब बाल श्रम पर एक सार्थक विमर्श चलाया है आप महानुभावों ने

            1. बचपन बंधुआ हो गया देहरी भई कता है ।विदेस । सटीक वर्णन ।
              कूडा बीनते । चाय की दुकान पर कप धोते, चूडियां बनाते, खेतों में काम करते बाजारों में सामान उठवाने की मनुहार करते ये बाल श्रमिक आपको जगह जगह मिल जायेंगे । अनिवार्य शिक्षा और वह भी कम लागत पर कुछ हल निकाल सकता है ।

स्वतंत्र राष्ट्र के परतंत्र बच्चे

बाल श्रम
वर्तमान का दरवाजा खोल
निकलता है भविष्य सुनहरा
कैसे निकल पाए भविष्य
लगा हो जब वर्तमान पर पहरा|
जिस बचपन को होना था
ममता की धार से सिंचित
क्यों वह हो रहा है
प्यार की बौछार से वंचित|
उत्साह उमंगों सपनों का
जीवित पुँज है बालक
मजदूरी की बेदी पर क्यों
होम कर देते उनके पालक|
बालकों में निहित होती
सफल राष्ट्र की संभावना
बाल श्रम से यह मिट जाती
कैसी है यह विडम्बना|
असमय छिन जाता है बचपन
बालश्रम है मानवाधिकारों का हनन|
ऐसा हर वो कार्य
बालश्रम की परिधि में आते हैं,
जो बच्चों के बौद्धिक मानसिक
शैक्षिक नैतिक विकास में
बाधक बन जाते हैं|
कहीं लालच कहीं है मजबूरी
करना पड़ता बालकों को मजदूरी|

जिस उम्र को करनी थी पढ़ाई
कारखानों में बुनते कालीन चटाई|
बचपन उनका झुलस जाता
ईंट  के  भट्टों  में
श्वास जहरीली हो जाती
बारूद के पटाख़ों में|
जिन मासूमों का होना था पोषण
खरीद उन्हें होता है शोषण|
होना था जिस पीठ पर बस्ता
कूड़े के ढेर से वह
काँच लोहे प्लास्टिक बीनता|
छोटे कंधों पर बड़े बोझ हैं
घरेलू कामों में लगे रोज हैं|

बाल मन है बड़ा ही कोमल
वह भी सपने संजोता है
सुन मालिकों की लानत झिड़की
मन ही मन वह रोता है|
अक्ल बुद्धि उम्र के कच्चे
स्वतंत्र राष्ट्र के परतंत्र बच्चे
जहाँ होती उनकी दुर्गति
वह राष्ट्र करे कैसे प्रगति|
बाल श्रम उन्मूलन दिवस
वर्ष में एक दिन आता है
हर दिन का जो बने प्रयास
दूर हो यह सामाजिक अभिशाप|

11 comments:

  1. बहुत ही सार्थक व सशक्‍त प्रस्‍तुति।

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  2. सुन्दर एक से बढ़कर एक दोहे किन्तु सत्य

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  3. सुन्दर प्रस्तुति....!
    टिप्पणी के रूप में प्रसाद बहुत स्वादिष्ट लगा!
    शुभसंध्या!

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  4. नौनिहाल मजबूरी में काम करें,
    न जाने कितनी यातनाएं भोगी|
    जिस देश का बचपन भूखा हो.
    फिर उसकी जवानी क्या होगी|

    काश सभी के पोस्टो पर पाठक गण ऐसी चर्चा करे,तो आनंद आजाये,,,,,चलिए शुरुआत तो हुई,अरुण जी की पोस्ट से,

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  5. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति

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  6. एक से बढ़कर एक रचनाएँ...टिप्पणियाँ लाजवाब!!
    बहुत बहुत आभार!!

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  7. हमेशा पढ़ती हूँ आपको...खुद को आपकी कलम के आईने में देखकर ख़ुशी हुई. यह एक अनोखा और सराहनीय ढंग है

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  8. बहुत बढ़िया एक से बढ़कर एक रचनाये

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  9. बाल श्रमिक पर अच्च्ची और कई रचनाएँ पढ़ने को मिलीं |
    आशा

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