Saturday, 27 October 2012

गहन व्याख्या मूर्त, कवियत्री महिमा बाँचे -



Virendra Kumar Sharma  
पत्नी भोजन दे पका, स्वाद लिया भरपूर |
बेटा रूपये भेजता, बसा हुआ जो दूर |
बसा हुआ जो दूर, हमारी तो आदत है |
नहीं कहें आभार, पुरानी सी हरकत है |
गरज तुम्हारी आय, ठोकते रहिये टिप्पण |
  क्या बिगड़ेगा मोर, ढीठ रविकर है कृ-पण ||


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mridula pradhan  
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हरसिंगार अठखेलियाँ , विदुषी सी चमकार ।
 बढे धरा का सौन्दर्य, जनमन पर  उपकार ।
जनमन पर उपकार, प्रफुल्लित काया नाचे ।
गहन व्याख्या मूर्त, कवियत्री महिमा बाँचे ।
सीधे साँचे भाव, बधाई  शुभ स्वीकारो ।
बढ़िया यह सृंगार, धरा पर स्वर्ग उतारो ।।
 

पति-पत्नी तो व्यस्त, बाल मन बनता लावा-

नैतिक शिक्षा पुस्तकें, सदाचार आधार  |
 महत्त्वपूर्ण इनसे अधिक, मात-पिता व्यवहार |
मात-पिता व्यवहार, पुत्र को मिले बढ़ावा |
पति-पत्नी तो व्यस्त, बाल मन बनता लावा |

खेल वीडिओ गेम, जीत की हरदम इच्छा |
मारो काटो घेर, करे क्या नैतिक शिक्षा  ||

आशा

रचना दीक्षित 

पीड़ा से पीड़ा हरे, वह प्राणान्तक पीर ।
वाह मीन तू धन्य है, परहित धरा शरीर ।
परहित धरा शरीर, चाहिए थोडा सा जल ।
रहे कर्मरत सदा, बने दूजे का सम्बल ।
 रचना आश-भरोस, खाय इक जल का कीड़ा ।
करे दान सर्वांग, सहे परहित यह पीड़ा ।।

शब्द

Mamta Bajpai 
शत्रु-शस्त्र से सौ गुना, संहारक परिमाण ।
शब्द-वाण विष से बुझे, मित्र हरे झट प्राण ।
मित्र हरे झट प्राण, शब्द जब स्नेहसिक्त हों ।
जी उठता इंसान, भाव से रहा रिक्त हो ।
हे विदुषी आभार, चित्र यह बढ़िया खींचा ।
शब्दों का जल-कोष, मरुस्थल को भी सींचा ।।

 याद

बांटा जीवन भर हँसी, जय भट्टी जसपाल |
हंसगुल्ले गढ़ता रहा, नानसेंस सी चाल |
नानसेंस सी चाल, सुबह ले लेता बदला |
जीवन भर की हँसी, बनाता आंसू पगला |
उल्टा -पुल्टा काम, हमेशा तू करता है |
सुबह सुबह इस तरह, कहीं कोई मरता है ||



यशवन्त माथुर (Yashwant Mathur) 

 चौवालिस सौ हिट मिली, एक माह में मित्र ।
गाल फुला के बैठते, हालत बड़ी विचित्र ।
हालत बड़ी विचित्र, मित्र यशवंत बताएं ।
शुभकामना सँदेश, जन्म दिन में भिजवायें ।
वर्षगाँठ हर विविध, पलक पाँवड़े विछा के ।
नहीं कहें आभार, कभी भी बड़के आके ।।

ईद मुबारक

Surendra shukla" Bhramar"5 
एक नियंता विश्व का, वो ही पालनहार ।
मानव पर करता रहे, अदल बदल व्यवहार । 
अदल बदल व्यवहार, हार को जीत समझता । 
मेरा तेरा ईश, करे बकवाद उलझता ।
समझ धर्म का मूल,  नहीं कर तू नादानी ।
झगडे झंझट छोड़, बोल ले मीठी वाणी ।।

रविकर-पुंज

यूँ तो मुहब्बत किया जान देकर-
मगर ख़ुदकुशी ने रुलाया बहुत है |

अगर गम गलत कर न पाए हसीना-
खिला गम को, पानी पिलाया बहुत है ||

तड़पते तड़पते हुआ लाश रविकर-
जबर ठोकरों ने हिलाया बहुत है ||

गाया गजल गुनगुनाया गुनाकर -
 सुना मर्सिया तूने गाया बहुत है ||

दिखी तेरे होंठो पे अमृत की बूँदें -
जिद्दी को तूने जिलाया बहुत है ||

9 comments:

  1. बहुत सुन्दर कुंडलियाँ रची हैं आपने रविकर जी!

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  2. हारसिंगार का ये वृक्ष शायद पक्का नही कह सकता पर पारिजात भी कहा जाता है जो कि स्वर्ग में होता था

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  3. बहुत ख़ूब क्या बात है सर!

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  4. इनमें से कई लिंक्स पर हो अया हूं। आपने इन पर बहुत अच्छी कविता की है।

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  5. रविवार, 28 अक्तूबर 2012
    तर्क की मीनार

    http://veerubhai1947.blogspot.com/

    डेंगू पर चौतरफा जानकारी देता बेहतरीन प्रासंगिक आलेख .शुक्रिया डॉ .साहब का .

    कबीरा तेरी झौंपडी गलकटियन के पास ,

    करेगें सो भरेंगे ,तू क्यों भयो उदास .

    दिन में माला जपत हैं ,रात हनत हैं गाय .

    पति-पत्नी तो व्यस्त, बाल मन बनता लावा-
    नैतिक शिक्षा पुस्तकें, सदाचार आधार |


    महत्त्वपूर्ण इनसे अधिक, मात-पिता व्यवहार |


    मात-पिता व्यवहार, पुत्र को मिले बढ़ावा |


    पति-पत्नी तो व्यस्त, बाल मन बनता लावा |


    खेल वीडिओ गेम, जीत की हरदम इच्छा |


    मारो काटो घेर, करे क्या नैतिक शिक्षा ||



    महत्वपूर्ण ,मौजू मुद्दा उठाया है .

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  6. एक बार फिर सुंदर लिंक्स का संकलन.

    धन्यबाद रविकर जी मेरी पोस्ट को अपने ब्लॉग में स्थान देने के लिये.

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  7. वाह!
    आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को आज दिनांक 29-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1047 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

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  8. गहन व्याख्या मूर्त, कवियत्री महिमा बाँचे -


    तर्क की मीनार
    Virendra Kumar Sharma
    ram ram bhai
    पत्नी भोजन दे पका, स्वाद लिया भरपूर |
    बेटा रूपये भेजता, बसा हुआ जो दूर |
    बसा हुआ जो दूर, हमारी तो आदत है |
    नहीं कहें आभार, पुरानी सी हरकत है |
    गरज तुम्हारी आय, ठोकते रहिये टिप्पण |
    क्या बिगड़ेगा मोर, ढीठ रविकर है कृ-पण ||

    बहुत सुन्दर रविकर जी मर्म पकड़ा है आपने मूल आलेख का .

    पति-पत्नी तो व्यस्त, बाल मन बनता लावा-
    नैतिक शिक्षा पुस्तकें, सदाचार आधार |
    महत्त्वपूर्ण इनसे अधिक, मात-पिता व्यवहार |
    मात-पिता व्यवहार, पुत्र को मिले बढ़ावा |
    पति-पत्नी तो व्यस्त, बाल मन बनता लावा |
    खेल वीडिओ गेम, जीत की हरदम इच्छा |
    मारो काटो घेर, करे क्या नैतिक शिक्षा ||


    महत्वपूर्ण ,मौजू मुद्दा उठाया है .

    डिजिटलीकरण हो रहा है बच्चों का .

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