दादा को क्यूँ ले गया, लाल किला मैदान ।
दिव्य-ज्योति घर टाँगता, ऐ बालक नादान ।
ऐ बालक नादान, उन्हें सब सही दीखता ।
रावण लें पहचान, कलेजा जोर चीखता ।
देते किसे जलाय, जलाने का रख मादा ।
बड़ी खोपड़ी जाय, जलाया किसको दादा ??
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दुर्जन होवे दिग्भ्रमित, समझ दीनता *अर्श-
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रविकर था चैतन्य, गीत में हुआ व्यस्त है -जगत मस्त है कोकिला, बही सरस स्वर-धार |साधुवाद हे सुहृद-जन, बार-बार आभार | बार-बार आभार, चाँद धरती पर आया | टूटे बंधन-रीत, प्यार से मीत मिलाया | रविकर था चैतन्य, गीत में हुआ व्यस्त है | कोटि कोटि परनाम, आज यह जगत मस्त है | |
भगवन की भेंगी नजर, डेंगी का उपहार |
मानव की नित हार है, दिल्ली की सरकार | दिल्ली की सरकार, हाथ पर हाथ धरे है | बढती भीषण व्याधि, व्यर्थ ही लोग मरे हैं | करो सफाई खूब, नहीं जमने दो पानी | नहीं तो जाओ डूब, मरे ना उनकी नानी || |
पिघलती चाहें- रौ में बहे जा ||
करेर कलेजा ।
सन्देश भेजा ।।
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"रविकर" अँधेरा -
दीपक गहे जा ।।
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बहुत बढ़िया.. विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteअच्छे लिंक्स
ReplyDeleteविजयदशमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
♥(¯*•๑۩۞۩~*~विजयदशमी (दशहरा) की हार्दिक शुभकामनाएँ!~*~۩۞۩๑•*¯)♥
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