Sunday, 28 October 2012

झूठी शान दिखाय, रखे नित हाई टम्पो -



"रिश्वत में गुम हो गई प्राञ्जलता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 

रिश्वत अस्मत से रहे, किस्मत आज खरीद |
मंहगाई में रोज वे, मना रहे बकरीद |
मना रहे बकरीद, यहाँ पर होते फांके |
हवा रहे हम फांक, लगाते दुष्ट ठहाके |
तड़क-भड़क ये सड़क, करे उनका नित स्वागत |
किस्मत अपनी रोय, बचा के रखते अस्मत ||




अधूरे सपनों की कसक (21)

रेखा श्रीवास्तव 

पूरे होंगे अवश्य ही, गति हो सकती धीम ।
सपनों में है जिंदगी,  शुभकामना असीम ।
शुभकामना असीम, इंच दर इंच बढ़ेंगे ।
एक एक कर पूर, नए फिर क्षितिज गढ़ेंगे ।
रे मन रख विश्वास, स्वप्न ना रहें अधूरे ।
दृढ़ इच्छा हो साथ, तभी तो होंगे पूरे ।।

" मिलावटी - फेरबदल " जनता को चिढा रहा है..??

PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.) 

 बढ़ता बी पी सुगर सब, प्रेसर कोलेस्ट्रोल ।
 डेंगू होता देह में, नहीं रहा कंट्रोल ।
नहीं रहा कंट्रोल, पोल खुल गई बदन की ।
काका फांका करे, विदेशी आका सनकी ।
अंग अंग दो बदल, ताप तो जाए चढ़ता ।
अब न हो बर्दाश्त, दखल परदेशी बढ़ता ।


Anita  
 मन की गंगा को मिले, मंजिल कभी कभार ।
जटाजूट में भटकती, हो मुश्किल से पार ।
हो मुश्किल से पार, करे कोशिशें भगीरथ ।
परोपकार सद्कर्म, जिन्दगी रविकर स्वारथ ।
स्वांस मौन के बीच, मचाये किस्मत दंगा ।
इसीलिए खो जाय, अधिकतर मन की गंगा ।।

शरद के चाँद प्रभु से कहना - नव गोपी गीत

tarun_kt 

 खींचा कितना मार्मिक, कवि ने दारुण दृश्य ।
कालिंदी का तट हुआ, मोहन क्यूँ अस्पृश्य ।
मोहन क्यूँ अस्पृश्य, द्रौपदी जब चिल्लाए ।
कानों पर दे हाथ, विदेशी पीजा खाए ।
निश्छल गोपी गोप, आँख उनसे क्यूँ मींचा । 
मुक्त करो हे नाथ, देह यह भरसक खींचा ।। 

अथ - शांता : सर्ग-1

पुन: प्रकाशित 

श्री राम की सहोदरी : भगवती शांता

 

भाग-1

Om

सोरठा  
  वन्दऊँ श्री गणेश, गणनायक हे एकदंत |
जय-जय जय विघ्नेश, पूर्ण कथा कर पावनी ||1||
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1n9yDdPd4dRduzyHke7ALtuXRnaUBYxhnEvdZGVJ20jk1GSK5XBQNd2l9SA3zK31FQ7Nsjsxu_oC6YmrDA-vS1nHnXdQXYmreDZjom6tRXKVgqM7bHrpouCXdkhHJlPX8pyuoJSXYPx0/s1600/shree-ganesh.jpg

वन्दऊँ गुरुवर श्रेष्ठ, कृपा पाय के मूढ़ मति,
गुन-गँवार ठठ-ठेठ, काव्य-साधना में रमा ||2||

कुछ रिश्‍ते ... (6)

सदा 
 SADA -

देखे रिश्ते अनगिनत, खट्टे मीठे स्वाद ।
कुछ को भूले हो भला, रहें सदा कुछ याद ।
रहें सदा कुछ याद, नेह का मेह बरसता ।
 त्याग भाव नि:स्वार्थ, समर्पित खुद को करता ।
रविकर मूर्ति बनाय, पूज ले भले फ़रिश्ते ।
  रहो बांटते प्यार,  बनाओ ऐसे रिश्ते ।।

चांदनी का दरिया

आशा जोगळेकर 
चेहरा खुश्बू चांदनी, चली दिखाती राह ।
प्रेरित कर मौजूदगी, दे अदम्य उत्साह ।
दे अदम्य उत्साह, लगे उंगली है पकड़ी ।
जगी अनोखी चाह, प्रेम में जकड़ी जकड़ी  ।
डूब गया अब चाँद, अमावस में है पहरा ।
चलूँ अनवरत श्याम, देख के तेरा चेहरा ।।

(चेहरा=4 मात्रा सा उच्चारण है)

Your memory is like a game of telephone

Virendra Kumar Sharma 
 याद-दाश्त अच्छी रहे, सिखा रहे गुर गूढ़ ।
हुई आज कमजोर यह, क्या जवान क्या बूढ़ ।
क्या जवान क्या बूढ़, भुलक्कड़ लेकिन बनिए ।
लाभ दिखे प्रत्यक्ष, उधारी लेकर तनिये । 
भूल बुरी हर बात, साथ में हुई घटित जो ।
 कर ईश्वर को याद, हुआ है  हृदय व्यथित जो ।।

तस्वीर

मनोज कुमार

 नेह पिता का सर्वदा, हरदम आशिर्वाद ।
कूड़े कचरे में पड़े,  पर बाकी  उन्माद ।
पर बाकी उन्माद, अगर आश्रम में होते ।
गुरु नानक सा हाथ, किये चिर निद्रा सोते ।
अब रविकर आश्वस्त, नहीं डिस्टर्ब होयगा ।
'धूप' 'अगर' उजियार, शोर बिन यहाँ सोयगा ।।

 काव्य मंजूषा

 मांसाहारी सकल जग, खाता पशु प्रोडक्ट ।
कुछ देशों में व्यर्थ ही, लागू उल्टा एक्ट ।
लागू उल्टा एक्ट, कपूतों खून पिया है ।
हाड़-मांस खा गए, कहाँ फिर भेज दिया है ।
फिर से माँ को ढूँढ, दूध की चुका उधारी ।
मथुरा में जा देख, नोचते मांसाहारी ।।

दम्भी ज्ञानी हर सके, साधुवेश में नार |
नीति नकारे नियम से, झटक लात दे मार |
झटक लात दे मार, चाहता लल्लो-चप्पो |
झूठी शान दिखाय, रखे नित हाई टम्पो |
जाने ना पुरुषार्थ, करे पर बात सयानी |
नहीं शमन अभिमान, करे ये दम्भी-ज्ञानी ||

12 comments:

  1. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

    आभार

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  2. यह अंदाज़ तो सिर्फ आपका ही हो सकता है

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  3. वाह क्या कहने!
    छंदों में टिप्पणियाँ आप ही कर सकते हैं!

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  4. जब एनीमल प्रोडक्ट खाने से नहीं कोई गुरेज़
    फिर गुड खावें गुल्गुल्ले से कहते करो परहेज़
    कितनी दवाओं में होता है, नीरीह एनिमल पार्ट
    आदि काल से आयुर्वेद भी था इसमें एक्सपर्ट
    पाषण युग में खेत नहीं थे, तब का खाते थे पुरखे ?
    आज भी जो रहते बर्फ, मरु में, क्या रहेंगे भूखे ?
    जिसको जो रुचता है खाने देवो अपनी देखो लल्ला
    सामिष, निरामिष की काहे की बिन बात का हल्ला

    ReplyDelete
  5. जब एनीमल प्रोडक्ट खाने से नहीं कोई गुरेज़
    फिर गुड खावें गुल्गुल्ले से कहते करो परहेज़
    कितनी दवाओं में होता है, नीरीह एनिमल पार्ट
    आदि काल से आयुर्वेद भी था इसमें एक्सपर्ट
    पाषण युग में खेत नहीं थे, तब का खाते थे पुरखे ?
    आज भी जो रहते बर्फ, मरु में, क्या रहेंगे भूखे ?
    जिसको जो रुचता है खाने देवो अपनी देखो लल्ला
    सामिष, निरामिष की काहे की बिन बात का हल्ला
    कोई उल्टा एक्ट नहीं है सब सीधा है मेरी मईया
    वो दूध को सामिष कहते हैं और मांस को भी सामिष भईया

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    1. एक समाचार पढ़ा था -
      बिधवा माँ को बीटा मथुरा छोड़ आया था-
      और दूसरी खबर-
      बिध्वाओं का अंतिम संस्कार भी नहीं किया जाता -
      टुकड़े टुकड़े कर के चीलों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता है- मथुरा से ही यह खबर भी-
      उधर ही इशारा था -
      त्वरित कुंडली शायद भाव स्पष्ट नहीं कर पाई-
      क्षमा -
      अर्थ का अनर्थ हो गया ||
      सादर -
      इस ब्लॉग पर अबतक २५०० काव्यमयी टिप्पणियां हैं लिंक सहित कभी कभी आते रहिये-

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  6. आपकी कविताएं जादुई असर डालती हैं। मन करता है मैं भी ऐसा लिखूं, पर ...

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  7. बहुत खूब लाजबाब प्रस्तुति,,,

    RECENT POST LINK...: खता,,,

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  8. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ३० /१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है |

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  9. गुदगुदाता है,हंसाता है,भाता है,'लिंक-लिक्खाड़'|
    'नीरसता'पर लगाता है,प्यारे 'रसफुल्लों की बाड़'
    दूर हर सियासत से,बटोरे हुये 'प्यार का गुलदस्ता'-
    दोटूक कहता अहि,न कोई 'उखाड' न कोई 'पछाड़'||

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  10. बहुत सुन्दर ..पहली बार आना हुआ ... लिंक्स का अच्छा कलेक्सन

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