Sunday, 21 October 2012

हुई देहरी क्लांत, संकुचन बड़ा अनैच्छिक -



Those nagging jerks बोले तो पेशीय फड़क

Virendra Kumar Sharma 

खता तंतु पेशीय की, कुछ अद्भुत दृष्टांत |
हुई पिटाई इस कदर, हुई देहरी क्लांत | 
हुई देहरी क्लांत, संकुचन बड़ा अनैच्छिक |
करता चित्त अशांत, कहीं पर यह अत्याधिक |
रविकर करे सचेत, दवा करवाओ देशी |
हो जाओ ना खेत, होय ना कोरट पेशी || 



अधूरे सपनों की कसक (14) !

रेखा श्रीवास्तव 

जो कुछ अपने पास है, करिए उसपर गर्व |
किस काया की कल्पना, पूर्ण हुई क्या सर्व ?
पूर्ण हुई क्या सर्व , घटा उपलब्धि दीजिये |
सपनो के संग तौल, इन्हें इक बार लीजिये |
खुद के सपने सत्य, हुआ घाटा है थोडा |
उनके क्या हालात, जिन्हें इस खातिर छोड़ा ??

 

स्टिंग में फंस गए बेचारे संपादक ...

महेन्द्र श्रीवास्तव 
खबर खभरना बन्द कर, ना कर खरभर मित्र ।
खरी खरी ख़बरें खुलें, मत कर चित्र-विचित्र ।
मत कर चित्र-विचित्र, समझ ले जिम्मेदारी ।
खम्भें दरकें तीन, बोझ चौथे पर भारी ।
सकारात्मक असर, पड़े दुनिया पर वरना ।
तुझपर सारा दोष,  करे जो खबर खभरना ।।
खबर खभरना  = मिलावटी खबर  

"ब्लॉगिंग एक नशा नहीं आदत है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 

जुआँ खेलना छूटता, नहिं दारु के घूँट ।
धूम्रपान की लत गई, क्लब ही जाये छूट ।
क्लब ही जाये छूट , मित्र कुछ अच्छे पाए ।
पथ जाऊं गर भटक, मार्ग सच्चा दिखलायें ।
घर में किच-किच ख़त्म, किन्तु कुछ उठे धुआँ है ।
सूर्पनखा से बचो, जिन्दगी एक जुआँ है ।

भ्रमित कहीं न होय, हमारी प्रिय मृग-नैनी -

  http://www.openbooksonline.com/

'चित्र से काव्य तक' प्रतियोगिता अंक -१९

कुंडलियाँ 
 चश्में चौदह चक्षु चढ़, चटचेतक चमकार ।
रेगिस्तानी रेणुका, मरीचिका व्यवहार ।
मरीचिका व्यवहार, मरुत चढ़ चौदह तल्ले ।
 मृग छल-छल जल देख, पड़े पर छल ही पल्ले ।
मरुद्वेग खा जाय, स्वत: हों अन्तिम रस्में ।
फँस जाए इन्सान,  ढूँढ़ नहिं पाए चश्में  ।।

" खप गयी - - खाप "....???

 नौ सौ चूहे खाय के, बिल्ली हज को जाय ।
 मांसाहारी मना क्या, जब हलाल की खाय ।
जब हलाल की खाय, गडकरी बिगड़ा बच्चा ।
जिद जमीन कर जाय, दिला सब देते चच्चा ।
 सत्ता मैया हाथ, जांच क्यूँ नहीं कराया ?
 मंत्री पुत्र दमाद, नहीं क्यूँ नंबर आया ??

हौंसले की लग्गियों ने अनवरत अम्बर छुआ ।
हाथ पर गर हाथ धरते, काम कब आये दुआ ।।
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क्या गधे को आदमी बनता हुआ देखा कभी-
इक छमाही में बदलकर आज यह रविकर हुआ ।।

सत्ताइस सत्ता *इषुधि, छोड़े **विशिख सवाल ।
दिग्गी चच्चा खुश दिखे, तंग केजरीवाल।
*तरकस **तीर 
 
 तंग केजरीवाल, विदेशी दान मिला है ।
डालर गया डकार, यही तो बड़ी गिला है ।

करिए स्विस में जमा, माल सब साढ़े बाइस ।
सत्तइसा का पूत, प्रश्न दागे सत्ताइस ।।



4 comments:

  1. कुण्डलियों के रूप में यह प्रसाद बहुत स्वादिष्ट लगा!
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    दुर्गाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  2. सबसे पहले तो आप सब से क्षमा चाहती हूँ के समय से यहाँ पर आप सबको धन्यवाद नही कर पाई
    यह सच हैं के सपनो के टूटने की कसक दिल mai रहती हैं पर अफ़सोस नही रहना चाहिए उनका . क्युकी अफ़सोस निराशा मैं बदल जाता हैं और मुझे अफ़सोस बिलकुल नही हैं .
    आप सबका तहे दिल से शुक्रिया

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