Saturday, 13 October 2012

इक बात बता वडरा बिटिया, शुरुवातय से तुम रोबर बा-





ज्योतिष यानि मीठा जहर ...

महेन्द्र श्रीवास्तव 
समय बिताने के लिए, करते लोग बेगार ।
गप्पे मारें चौक पर, करें व्यर्थ तकरार ।
करें व्यर्थ तकरार, समय का चक्कर चलता ।
बुझती बौद्धिक प्यास, हमें बिलकुल ना खलता ।
जिज्ञासा गर शांत, मारना फिर क्या ताने । 
बातें लच्छेदार, चलो कुछ समय बिताने । । 



अपनी ही सुसराल

Virendra Kumar Sharma 


 लघु लघु दीर्घ (7-बार) 1 दीर्घ 
दुर्मिल सवैया (अभ्यास)

 कुतवाल बने सँइयाँ अब तो,  भइया पहिले गुड़ गोबर बा ।
सलवा बन जाय वजीर जहाँ,  मन मोहन से कुछ सोबर बा ।
सलमान जवान बके विकलांग, चले सब चाल बरोबर बा ।
इक बात बता
वडरा बिटिया, शुरुवातय  से तुम रोबर बा ।।


" बलात्कार " दोषी कौन.. परिभाषा क्या..????????

पचपन वर्षों बाद क्यूँ, आये याद हठात । 
 महिला शादी-शुदा जब, करती कार्य-बलात ।
करती कार्य-बलात, पीठ साबुन मलवाती ।
नहीं रहा कानून, नारि धज्जियाँ उड़ाती । 
 अब ना अबला रूप, बिगाड़े चाहे बचपन ।
चल इच्छा-अनुरूप, नहीं तो झंझट पचपन ।।


 मेरे सुपुत्र का ब्लॉग 

12 Oct ki baat...

Kumar Shiva 
 म्याऊं मौसी मस्त है, डेयरी की इन्चार्ज ।
मनमौजी चूहे हुवे, अन्न स्टोरेज लार्ज ।

अन्न स्टोरेज लार्ज, जमीने अस्पताल की ।

खा बाइक विकलांग, घूमते बैठ पालकी ।

खर्चे लाख करोड़, करे हज जाय मकाऊ ।

अमरीका में ठीक, हो रही मौसी म्याऊं ।।



आत्महत्या

रचना दीक्षित  
 चटकारे ले चाटते, चिट रख कर दस बार |
किन्तु समय अब काटते, नहीं रहा वो प्यार |
नहीं रहा वो प्यार, सुबह श्वेतांगी आती |
बदलो हर सप्ताह, शक्ल रंगीनी भाती |
यह खट-खट यह मूस, नजर पर छाय तुम्हारे |
मरुँ आज मैं कूद, पढों लेकर चटकारे ||



तू हाँ कर या ना कर?

  (Arvind Mishra)  
 एकाकी जीवन जिए, काकी रही कहाय |
माँ के झंझट से परे, समय शीघ्र ही आय |
समय शीघ्र ही आय, श्वान सब होंय इकट्ठा |
केवल आश्विन मास, बने उल्लू का पट्ठा |
आएँगी कुछ पिल्स, काटिए महिने बाकी |
हो जाए ना जेल, रहो रविकर एकाकी ||


 

5 comments:

  1. बहुत अच्छे रास्तों के लिंक ...

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  2. बढिया लिंक्स
    मुझे जगह देने के लिए आभार

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  3. धन्यबाद रविकर जी मेरी कविता को पसंद करने और अपने ब्लॉग पर भी स्थान देने के लिये. सुंदर लिंक्स खोज कर लाए हैं.

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  4. सुंदर लिंक्स बहुत बढ़िया..,

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