ज्योतिष यानि मीठा जहर ...
महेन्द्र श्रीवास्तव
समय बिताने के लिए, करते लोग बेगार ।
गप्पे मारें चौक पर, करें व्यर्थ तकरार ।
करें व्यर्थ तकरार, समय का चक्कर चलता ।
बुझती बौद्धिक प्यास, हमें बिलकुल ना खलता ।
जिज्ञासा गर शांत, मारना फिर क्या ताने ।
बातें लच्छेदार, चलो कुछ समय बिताने । ।
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अपनी ही सुसराल
Virendra Kumar Sharma
लघु लघु दीर्घ (7-बार) 1 दीर्घ
दुर्मिल सवैया (अभ्यास)
कुतवाल बने सँइयाँ अब तो, भइया पहिले गुड़ गोबर बा ।
सलवा बन जाय वजीर जहाँ, मन मोहन से कुछ सोबर बा ।
सलमान जवान बके विकलांग, चले सब चाल बरोबर बा ।
इक बात बता वडरा बिटिया, शुरुवातय से तुम रोबर बा ।। |
" बलात्कार " दोषी कौन.. परिभाषा क्या..????????
पचपन वर्षों बाद क्यूँ, आये याद हठात ।
महिला शादी-शुदा जब, करती कार्य-बलात ।
करती कार्य-बलात, पीठ साबुन मलवाती ।
नहीं रहा कानून, नारि धज्जियाँ उड़ाती ।
अब ना अबला रूप, बिगाड़े चाहे बचपन ।
चल इच्छा-अनुरूप, नहीं तो झंझट पचपन ।।
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म्याऊं मौसी मस्त है, डेयरी की इन्चार्ज ।
मनमौजी चूहे हुवे, अन्न स्टोरेज लार्ज । अन्न स्टोरेज लार्ज, जमीने अस्पताल की । खा बाइक विकलांग, घूमते बैठ पालकी । खर्चे लाख करोड़, करे हज जाय मकाऊ । अमरीका में ठीक, हो रही मौसी म्याऊं ।। |
किन्तु समय अब काटते, नहीं रहा वो प्यार | नहीं रहा वो प्यार, सुबह श्वेतांगी आती | बदलो हर सप्ताह, शक्ल रंगीनी भाती | यह खट-खट यह मूस, नजर पर छाय तुम्हारे | मरुँ आज मैं कूद, पढों लेकर चटकारे || |
तू हाँ कर या ना कर?
(Arvind Mishra)
एकाकी जीवन जिए, काकी रही कहाय |
माँ के झंझट से परे, समय शीघ्र ही आय | समय शीघ्र ही आय, श्वान सब होंय इकट्ठा | केवल आश्विन मास, बने उल्लू का पट्ठा | आएँगी कुछ पिल्स, काटिए महिने बाकी | हो जाए ना जेल, रहो रविकर एकाकी || |
बहुत खूब..
ReplyDeleteबहुत अच्छे रास्तों के लिंक ...
ReplyDeleteबढिया लिंक्स
ReplyDeleteमुझे जगह देने के लिए आभार
धन्यबाद रविकर जी मेरी कविता को पसंद करने और अपने ब्लॉग पर भी स्थान देने के लिये. सुंदर लिंक्स खोज कर लाए हैं.
ReplyDeleteसुंदर लिंक्स बहुत बढ़िया..,
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