दूध मांसाहार है, अंडा शाकाहार ।
भ्रष्ट-बुद्धि की बतकही, ममता का सहकार ।
ममता का सहकार, रुदन शिशु का अपराधिक ।
माता हटकु पसीज, छद्म गौ-बछड़े माफिक ।
पिला रही निज रक्त, मदर-विदुषी यह बोली ।
युगों युगों की खोज, बड़ी शिद्दत से खोली ।।
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कामी क्रोधी लालची, पाये बाह्य उपाय ।
उद्दीपक के तेज से, इधर उधर बह जाय ।
इधर उधर बह जाय, कुकर्मों में फंस जाता ।
अहंकार का दोष, मगर अंतर से आता।
हैं फॉलोवर ढेर, चेत हे ब्लॉगर नामी ।
पद मद में हो चूर, बने नहिं क्रोधी कामी ।।
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काव्य मंजूषा
मांसाहारी सकल जग, खाता पशु प्रोडक्ट । कुछ देशों में व्यर्थ ही, लागू उल्टा एक्ट । लागू उल्टा एक्ट, *कपूतों खून पिया है । हाड़-मांस खा गए, कहाँ फिर भेज दिया है । फिर से माँ को ढूँढ, दूध की चुका उधारी । **मथुरा में जा देख, नोचते मांसाहारी ।।
*माँ की ओर संकेत करने की कोशिश
**विधवा आश्रमों के लिए भी जानी जाती है मथुरा नगरी
जहाँ एक रोटी के लिए दिन भर कीर्तन करती हैं माताएं-
क्रियाकर्म टुकड़ों में काट कर किया जाता है-
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छले नहीं यह रूप, धूप चहुँ ओर बिखेरे
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बहुत खूब,रविकर भाई आभार ,,,,,
ReplyDeleteआप बहुत श्रम करते हो रविकर जी!
ReplyDeleteसभी कुण्डलियाँ सार्थक हैं।
बहुत ही अच्छे लिंक्स व प्रस्तुति।
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