Friday, 12 October 2012

होता हलुवा टेट, फेल कंपनी विदेशी -


तू हाँ कर या ना कर?

noreply@blogger.com (Arvind Mishra)   क्वचिदन्यतोSपि...

 एकाकी जीवन जिए, काकी रही कहाय |
माँ के झंझट से परे, समय शीघ्र ही आय |
समय शीघ्र ही आय, श्वान सब होंय इकट्ठा |
केवल आश्विन मास, बने उल्लू का पट्ठा |
आएँगी कुछ पिल्स, काटिए महिने बाकी |
हो जाए ना जेल, रहो रविकर एकाकी ||
 



Untitled

सुरेश शर्मा . कार्टूनिस्ट

.आखिर इतना मज़बूत सिलिंडर लीक हुआ कैसे ? ..

Virendra Kumar Sharma 

परदेशी सामान है, जैसे चीनी माल ।
चींटी चाटे जो कहीं, पावे नहीं सँभाल ।
पावे नहीं सँभाल, लड़ाए उनसे नैना ।
डाल चोंच में चोंच, चुगाये चुन चुन मैना ।
फूट जा रहा पेट, पाप बढ़ जाए वेशी ।
होता हलुवा टेट, फेल कंपनी विदेशी ।।


रात का सूनापन अपना था

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
 ग़ाफ़िल की अमानत
गलती करते हाथ हैं, गर्दन लेते नाप ।
दिल का होय कुसूर पर, नैनों में संताप ।।

 मेरे सुपुत्र का ब्लॉग 

12 Oct ki baat...

Kumar Shiva 
 WoRds UnSpoKeN !!
 म्याऊं मौसी मस्त है, डेयरी की इन्चार्ज ।
मनमौजी चूहे हुवे, अन्न स्टोरेज लार्ज ।
अन्न स्टोरेज लार्ज, जमीने अस्पताल की ।
खा बाइक विकलांग, घूमते बैठ पालकी ।
खर्चे लाख करोड़, करे हज जाय मकाऊ ।
अमरीका में ठीक, हो रही मौसी म्याऊं ।।

''बाल साहित्यकार- डॉ. श्रीप्रसाद नाना जी हमारे बीच नहीं रहे !!!!''

रुनझुन 

श्रद्धांजलि अर्पित करूँ, सादर करूँ प्रणाम ।
शान्ति आत्मा को मिले, राम राम जय राम ।
राम राम जय राम, शक्ति परिजन शुभ पायें ।
रविकर का पैगाम, उन्हीं की कृतियाँ गायें ।
शुभकामना अशेष, याद में सदा रहेंगे ।
पढ़िए उनके गीत, सही जो वही कहेंगे ।।

तालिबानी फरमान न मानने वाली छात्रा बिटिया मलाला को समर्पित -


उगती जब नागफनी दिल में, मरुभूमि बबूल समूल सँभाला ।

बरसों बरसात नहीं पहुँची, धरती जलती अति दाहक ज्वाला ।


उठती जब गर्म हवा तल से, दस मंजिल हो भरमात कराला ।


पढ़ती तलिबान प्रशासन में, डरती लड़की नहीं वीर मलाला ।।

4 comments:

  1. बहुत बढि़या....

    ReplyDelete
  2. अरे वाह ! यहाँ भी इतने खूबसूरत लिंक्स का जखीरा उपलब्ध है ! हमें तो पता ही नहीं था ! बधाई और शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  3. तू हाँ कर या ना कर?
    noreply@blogger.com (Arvind Mishra) क्वचिदन्यतोSपि...

    एकाकी जीवन जिए, काकी रही कहाय |
    माँ के झंझट से परे, समय शीघ्र ही आय |
    समय शीघ्र ही आय, श्वान सब होंय इकट्ठा |
    केवल आश्विन मास, बने उल्लू का पट्ठा |
    आएँगी कुछ पिल्स, काटिए महिने बाकी |
    हो जाए ना जेल, रहो रविकर एकाकी ||
    भाई साहब टिपण्णी गायब हो रहीं हैं .बढ़िया प्रस्तुति है मिश्र जी की मूल पोस्ट के अनुरूप .

    ReplyDelete
  4. मैं अपने विचार यहाँ रख रहा हूँ जो समाज जैविकी(Sociobilogy) के नजरिये से है ........(हैं ).........और कोई आवश्यक नहीं कि मेरा इससे निजी मतैक्य अनिवार्यतः हो भी?

    लो जी हम थक गए थे पढ़ते पढ़ते .,पूरा विमर्श .

    एक आँखिन देखि -हमारे एक सर !हैं ,हाँ हम सर ही कहतें हैं उन्हें .किशोरावस्था से वर्तमान अवस्था में आने तक हमने उन्हें बहुत नजदीक से देखा है .सागर विश्व विद्यालय से रोहतक विश्व विद्यालय तक .बाद सेवानिवृत्ति आज भी उनसे संवाद ज़ारी है .

    कोई आदर्श जोड़ा नहीं था यह पति -पत्नी का .अक्सर हमने इन्हें परस्पर लड़ते झगड़ते देखा .अपनी झंडी अकसर दूसरे से ऊपर रखते देखा .होते होते दोनों उम्र दराज़ भी हो गए .

    73 -74 वर्षीय हैं ये हमारे सर !अभी कल ही इनकी पत्नी दिवंगत हुईं हैं .बतला दें आपको -गत आठ वर्षों से अलजाईमार्स ग्रस्त थीं .और ये हमारे सर उनको हर मुमकिन इलाज़ मुहैया करवाते रहे .पूरी देखभाल हर तरीके से उनकी की गई .घर की सुईं इनके हिसाब से घुमाई जाती थी ताकि इन्हें किसी भी बिध कष्ट न हो .आप जानते हैं अलजाईमार्स की अंतिम प्रावस्था में आदमी अपनों की पहचान भी भूलने लगता है .उसे यह भी इल्म नहीं रहता वह ब्रेक फास्ट कर चुका है .
    चण्डीगढ़ में दो मंजिला कोठी और रहने वाली दो जान .कारिंदे इस घर में अपनी अपनी शिफ्ट में आते थे ,अपना काम करके चले जाते थे .सबके फोकस में इनकी पत्नी की देखभाल सर्वोपरि रखी गई थी .अब उनके जाने के बाद इस आदमी के पास करने को कुछ भी नहीं है एक बेहद का खालीपन हावी है .
    तो ये प्रति-बद्धता ,कमिटमेंट सबसे ज़रूरी तत्व है शादी का .कर्तव्य को निजी भावना से ऊपर रखना पड़ता है .अपनी ड्यूटी से हमारे सर कभी नहीं भागे .आपस में बनी न बनी ये और बात है .

    तू हाँ कर या ना कर?
    noreply@blogger.com (Arvind Mishra) क्वचिदन्यतोSपि...

    एकाकी जीवन जिए, काकी रही कहाय |
    माँ के झंझट से परे, समय शीघ्र ही आय |
    समय शीघ्र ही आय, श्वान सब होंय इकट्ठा |
    केवल आश्विन मास, बने उल्लू का पट्ठा |
    आएँगी कुछ पिल्स, काटिए महिने बाकी |
    हो जाए ना जेल, रहो रविकर एकाकी ||
    भाई साहब टिपण्णी गायब हो रहीं हैं .बढ़िया प्रस्तुति है मिश्र जी की मूल पोस्ट के अनुरूप .

    ReplyDelete