Thursday, 25 October 2012

करते हटकु हलाक, मूर्ख संतान बचाले -




अब लेनिन के बुत भी बर्दाश्त नहीं

lokendra singh  

लेनिन की प्रतिमा गई, बाम-पंथ कर गौर ।
क़त्ल हजारों थे हुवे, नया देख ले दौर ।
 नया देख ले दौर, क्रूर सिद्धांत अंतत: ।
देते लोग नकार, सुधार लो अत: स्वत: ।
पूंजीवाद खराब, करें वे शोषण लेकिन ।
श्रमिक लीडरी ढीठ, बदल कर रखता लेनिन ।।

पर भूली संस्कार

Asha Saxena 
 Akanksha  

 सर्वोपरि है प्यार पर, इसके कई प्रकार ।
दो जीवों के बीच में, महत्त्वपूर्ण दरकार ।
महत्त्वपूर्ण दरकार, हुवे अब दो दो बच्चे ।
बही समय की धार, बदलते आशिक सच्चे ।
सम्मुख दिखे तलाक, परस्पर नफरत पाले ।
  करते हटकु हलाक, मूर्ख संतान बचाले ।।

बाबा दादी में नहीं, रहा कभी भी प्यार |
आपस में सम्मान था, सम्मुख था परिवार |
सम्मुख था परिवार, प्यार के सुनो पुजारी |
नफ़रत गर हो जाय, परस्पर देते गारी |
झटपट होय तलाक, पकड़ते  ढर्रा दूजा |
किन्तु पूर्वज सोच, करें रिश्तों की पूजा ||


डेंगू का वायरस पद-प्रतिष्ठा-पैसा नहीं देखता

Kumar Radharaman 

भगवन की भेंगी नजर, डेंगी का उपहार |
मानव की नित हार है, दिल्ली की सरकार |
दिल्ली की सरकार, हाथ पर हाथ धरे है |
बढती भीषण व्याधि, व्यर्थ ही लोग मरे हैं |
करो सफाई खूब, नहीं जमने दो पानी |
नहीं तो जाओ डूब, मरे ना उनकी नानी ||

 संसाधन सा जानिये, संयुत कुल परिवार |
गाढ़े में ठाढ़े मिलें, बिना लिए आभार |
बिना लिए आभार, कृपा की करते वृष्टी |
दादा दादी देव, दुआ दे दुर्लभ दृष्टी |
सच्चे रिश्ते मुफ्त, हमेशा भला इरादा |
रखे सकल परिवार, सदा अक्षुण मर्यादा |


काश यह खबर भी 'उल्टा पुल्टा' हो 

atul shrivastava

बांटा जीवन भर हँसी, जय भट्टी जसपाल |
हंसगुल्ले गढ़ता रहा, नानसेंस सी चाल |
नानसेंस सी चाल, सुबह ले लेता बदला |
जीवन भर की हँसी, बनाता आंसू पगला |
उल्टा -पुल्टा काम, हमेशा तू करता है |
सुबह सुबह इस तरह, कहीं कोई मरता है ||

सादर नमन 

जसपाल भट्टी


 जैराम कक्कू........

निर्दोष दीक्षित 
जय जय जय जयराम जी, जय जय राम रमेश ।
शौचालय से जोड़ते, बबलू शादी केस ।

बबलू शादी केस, ठेस लगती है भारी ।

शौचालय गर नहीं, रखेंगे सुता कुँवारी ।

मोबाइल दो बाँट, जमीने रक्खो लय लय ।

टॉयलेट गर नहीं, कुंवारा बबलू जय जय ।।

कार्टून कुछ बोलता है- एक नया योग !

पी.सी.गोदियाल "परचेत"  

पूर्ती का इक अर्थ है, गुणन गुणा का काम ।
फुर्ती से कर पूर्ती, दे मंत्री पैगाम।

 दे मंत्री पैगाम, रास्ता बड़ा बना लो ।
छोटा सा इक पाथ, हमारे घर में ढालो ।

पतली चलनी आज, मोटा सूप बिसूरती ।

बाड्रा ना सलमान, हुआ बदनाम पूर्ती ।।

दादा को क्यूँ ले गया, लाल किला मैदान ।
दिव्य-ज्योति घर टाँगता, ऐ बालक नादान ।
ऐ बालक नादान, उन्हें सब सही दीखता ।
रावण लें पहचान,  कलेजा जोर चीखता ।
देते किसे जलाय, जलाने का रख मादा ।
बड़ी खोपड़ी जाय, जलाया किसको दादा ??

7 comments:

  1. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  2. रविकर सर बहुत ही बढ़िया वाह क्या बात है

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  3. सुंदर रचनायें

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  4. सादर अभिवादन!
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    बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (27-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  5. बढिया प्रस्तुति । लिंक्स भी अच्छे ।

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