माननीय नियमित पाठक गण
आज -
विशेष प्रस्तुतीकरण के कारण
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हाय हाय यह दिवस, बनाया क्यूँ रे सन्डे -
तू जग की जननी बनके, ममता
दुइ हाथ लुटावत नारी
नेहमयी भगिनी बनके, यमुना - यम नेह सिखावत नारी
शैलसुता बन शंकर का, तप-जाप करे सुख पावत नारी
हीर बनी जब राँझन की, नित प्रेम -सुधा बरसावत नारी ||
तू लछमी सबके घर की , घर - द्वार सजात बनावत नारी
तू जग में बिटिया बनके
, घर आंगन
को महकावत नारी
कौन कहे तुझको अबला,अब जाग जरा मुसकावत नारी
वंश चले तुझसे दुनियाँ, तुझ सम्मुख शीश नवावत नारी ||
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मन माफिक वर वरताव नहीं, फिर से ससुरार न जावत नारी ।
पति मिल जाय अदालत मा, तब डीजल डाल जलावत नारी । घर में अनबन होय जाय तनिक, लरिकन का जहर पिलावत नारी । सबला कब की बन आय जमी, अब लौं अबलाय कहावत नारी ।। चूल्हा घर में फूँकती , करने जाती काम जरा सोच कर देखिये , कब पाती आराम कब पाती आराम ,नित्य ही जाती दफ्तर बन कर एक मशीन, बढ़ाती जीवन स्तर ठाठ भोगते आज तलक तुम बनकर दूल्हा नारी करती काम , फूँकती फिर भी चूल्हा ||
वाह आदरणीय अरुण जी आपने तो हमारे दिल से आह निकाल दिया
गजब की प्रतिक्रिया वो भी कुंडली के रूप में आज तो अनोखा अंदाज दिख रहा है न्यूटन का तीसरा नियम काम कर रहा है क्रिया पर प्रतिक्रिया वो भी बराबर किन्तु विपरीत जय हो आदरणीय |
आग मिली उजियार करो, बिन आग नहीं जग जीवन भाई
आप जलाय दिये घर को,अब दोष दिये पर डाल न भाई नीर मिला बुझ प्यास गई , यदि डूब गये तब कौन बचाई वायु मिली तब साँस चली, अब अंधड़ को मत कोस गुसाई || |
वाह आदरणीय अरुण जी वाह
इतने सुन्दर और सरल एवं सहज सवैय्ये के द्वारा आपने आ.रविकर जी के सवैय्ये पर बेहेतरिन प्रति टिपण्णी की है आपने बिलकुल सही कहा है आग पानी वायु पृथ्वी आकाश ये पञ्च तत्व हमें जीवन देते है कोई जल मरे या डूब मरे तो इसमें इनका क्या दोष आपकी ये सकारात्मक प्रस्तुति ने दिल जीत लिया है सटीक प्रतिक्रिया |
पाहन मान दिखै पथरा , भगवान कहै दिखते रघुराई
भाव कुभाव यथा मन में,प्रभु मूरत देखि तथा सुन भाई पूजत देव जिसे सगरै, दिन रात जपैं जिसको मन माही जोत जलावत राह दिखै अरु जीवन की मिट जाय सियाही || |
नजर के बदलने से नज़ारे बदल जाते है
आदरणीय कूबत हममें है नहीं, धारे गर्भित अंग पाँच किलो के भार को,नौ महिना ले संग
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बहुत ही सुंदर वाह !
ReplyDeleteचूल्हा जलाने की भी सैलरी दिलवायेगी सरकार चिंता ना करें ।
ReplyDeleteअच्छी रचनाऐं
अति उत्तम वाद विवाद |
ReplyDeleteनई पोस्ट:- वो औरत
वाह: बहुत ही सुंदर..आभार
ReplyDeleteजी दीदी
Deleteनिगेटिव लेखन करना कठिन है-
यह जिम्मेदारी निभाई है -
ताकि सकारात्मक पक्ष मजबूती से आ सकें |
आभार ||
क्या बात है, पहली बार ऐसा देखा
ReplyDeleteबहुत बढिया
आभार भाई जी |
Deleteनिगेटिव लिखने के खतरे बहुत हैं-
देखिये क्या होता है मेरा-
सादर ||
किसी भी पोस्ट की रचना का आनंद जब वाद,प्रतिवाद और संवाद हो तब रचना में चार चाँद लग जाते है आज कुछ ऐसा ही देखने को मिला,,,,,एक अच्छी शुरुआत,,,,बधाई अरुणजी,
ReplyDeleteरविकरजी,उमा शंकर जी,,,,,
RECENT POST: तेरी फितरत के लोग,
parspar poorak hai ,hamare desh mai smooche parivar ki baat ab nahi hoti hai kabhi bachcho kai adhikar ke liye kanoon hai kahi mahilaon kae liye sammaan ki baat hai sab sahi hai par pita kai liye bhi to kuch jagah hona chahiye .
ReplyDeleteनारी – मत्तगयंद छंद सवैया
ReplyDeleteतू जग की जननी बनके, ममता दुइ हाथ लुटावत नारी
नेहमयी भगिनी बनके, यमुना - यम नेह सिखावत नारी
शैलसुता बन शंकर का, तप-जाप करे सुख पावत नारी
हीर बनी जब राँझन की, नित प्रेम -सुधा बरसावत नारी ||
तू लछमी सबके घर की , घर - द्वार सजात बनावत नारी
तू जग में बिटिया बनके , घर आंगन को महकावत नारी
कौन कहे तुझको अबला,अब जाग जरा मुसकावत नारी
वंश चले तुझसे दुनियाँ, तुझ सम्मुख शीश नवावत नारी ||
नारी ब्रह्मा से बड़ी है वह तो सिर्फ सृष्टि का जनक है जेनरेटर है नारी पालक रूप विष्णु भी है कल्याणकारी शिव भी है .अपने अनजाने और अज्ञान वश कन्या भ्रूण ह्त्या करने वाले रुकें और सोचे .
Lovely !!
ReplyDeleteआभार आदरेया-
Deleteबड़ा निगेटिव लिखना पड़ा -
अरुण जी की रचनाएँ उच्च कोटि की हैं -
wakai........padhne me aanand ke karan ise gun-ne laga.....
ReplyDeleteaap sabhi ko pranam.
नारी अब बलवान है ,पुरुष कांध टकराय
ReplyDeleteपुरषों की मरदानगी, पल में धूल चटाय
क्षेत्र समय औ काल में,नारी वर्जित नाय
घर में चूल्हा फूंकती, रण कौशल दिखलाय
काल बदलता जब गया नारी मान गवाँय
शासक दुर्जन जब बने, नारी भोग बनाय
पढना लिखना छिन गया छीना सब अधिकार
रूप पदमिनी धार के, दुर्गावती अवतार
रानी झांसी ने किया,जुल्मों का प्रतिकार
बंदूकें भी झुक गई, रानी की तलवार