Tuesday, 2 October 2012

अपना अपना ठूठ, अहम् है दिल दिमाग में-




अन्ना की टोपी उछाल रहे अरविंद !

महेन्द्र श्रीवास्तव 

दिल-दिमाग में लोक-हित, राष्ट्रधर्म उत्थान ।
ईमानदार बढ़ते गए, घटते अब बेईमान ।
घटते अब बेईमान, बुराई दूर करेंगे ।
सर्वोपरि है देश, गरीबी कष्ट हरेंगे ।
लेकिन सज्जन ढेर, जमा सब एक बाग़ में ।
अपना अपना ठूठ, अहम्  है दिल दिमाग में ।।

सच्चे में विश्वास की, दिखती कमी अपार ।
जलें तभी तो चार में, पूरे चूल्हे चार ।
पूरे चूल्हे चार, पार्टी बना मना लें ।
मिल झूठे हरबार,  नई सरकार बना लें ।
अन्ना बाबा संत,  इकट्ठा होंय अगरचे ।
होय देश खुशहाल, बोलबाला रे सच्चे । 

ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .

Virendra Kumar Sharma  

राजनीति में आ गए, पद मद में जब चूर |
निश्चय कटु-आलोचना, पद प्रहार भरपूर |
पद प्रहार भरपूर, बहू भी सास बनेगी |
देवर का कुल दूर, अकेली आस बनेगी |
पूजे कोई रोज, मगर शिक्षा न देवे |
सत्ता में सामर्थ्य, देश की नैया खेवे ||

तर्पण श्रद्धा का ...

सदा 
 SADA  


बेटी की शादी हुई, बेटा भी परदेश |
जब तक रहते पास में, माने हर आदेश |
माने हर आदेश, परोसे भोजन पानी |
बढती जाए आयु, चिंत-रेखा पेशानी |
शिथिल बदन हो जाय, खाट पर काया लेटी |
पानी रही पिलाय, हमारी प्यारी बेटी ||

कन्या के प्रति पाप में, जो जो भागीदार -

कन्या के प्रति पाप में, जो जो भागीदार ।
रखे अकेली ख्याल जब, कैसे दे आभार ।  
कैसे दे आभार, किचेन में हाथ बटाई ।
ढो गोदी सम-आयु, बाद में रुखा खाई ।
हो रविकर असमर्थ,  दबा दें बेटे मन्या *। 
  सही उपेक्षा रोज, दवा दे वो ही कन्या । 
मन्या =गर्दन के पीछे की शिरा 

सात्विक-जिद से आसमाँ, झुक जाते भगवान् ।
पीर पराई बाँट के, धन्य होय इंसान ।
धन्य होय इंसान, मिलें दुर्गम पथ अक्सर ।
 हों पूरे अरमान, कोशिशें कर ले बेहतर ।
बाँट एक मुस्कान, मिले तब शान्ति आत्मिक ।
दीदी धन्य विचार, यही तो शुद्ध सात्विक ।।  

भगवान् राम की सहोदरा (बहन) : भगवती शांता परम

Om

सोरठा  
  वन्दऊँ श्री गणेश, गणनायक हे एकदंत |
जय-जय जय विघ्नेश, पूर्ण कथा कर पावनी ||1||
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1n9yDdPd4dRduzyHke7ALtuXRnaUBYxhnEvdZGVJ20jk1GSK5XBQNd2l9SA3zK31FQ7Nsjsxu_oC6YmrDA-vS1nHnXdQXYmreDZjom6tRXKVgqM7bHrpouCXdkhHJlPX8pyuoJSXYPx0/s1600/shree-ganesh.jpg

दिन प्रतिदिन कमजोर, जुदाई कैसे सहिये -

परदेशी पुत्र से-
दो वर्षों में एक ही, मुलाकात जब होय ।
बीस बरस में जोड़िये, दिल कितना ले रोय ।
 दिल कितना ले रोय, उमर बावन की मेरी ।
जाने को तैयार, अधिकतम इतनी देरी ।
नियमित करिए फोन, बात कुछ करते रहिये ।
दिन प्रतिदिन कमजोर, जुदाई कैसे सहिये ??

7 comments:

  1. वाह ... बेहतरीन

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  2. वाह: बहुत खूब..

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  3. मुझे शामिल करने के लिए आभार आप का..

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  4. वाह क्या कहने...
    बहुत बढ़िया टिपियाया है आपने सबको!

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  5. अच्छे लिंक्स
    मुझे स्थान देने के लिए आभार

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  6. राजनीति में आ गए, पद मद में जब चूर |
    निश्चय कटु-आलोचना, पद प्रहार भरपूर |
    पद प्रहार भरपूर, बहू भी सास बनेगी |
    देवर का कुल दूर, अकेली आस बनेगी |
    पूजे कोई रोज, मगर शिक्षा न देवे |
    सत्ता में सामर्थ्य, देश की नैया खेवे ||

    शुक्रिया भाई साहब !

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