अन्ना की टोपी उछाल रहे अरविंद !
महेन्द्र श्रीवास्तव
दिल-दिमाग में लोक-हित, राष्ट्रधर्म उत्थान ।
ईमानदार बढ़ते गए, घटते अब बेईमान ।
घटते अब बेईमान, बुराई दूर करेंगे ।
सर्वोपरि है देश, गरीबी कष्ट हरेंगे ।
लेकिन सज्जन ढेर, जमा सब एक बाग़ में ।
अपना अपना ठूठ, अहम् है दिल दिमाग में ।। सच्चे में विश्वास की, दिखती कमी अपार । जलें तभी तो चार में, पूरे चूल्हे चार । पूरे चूल्हे चार, पार्टी बना मना लें । मिल झूठे हरबार, नई सरकार बना लें । अन्ना बाबा संत, इकट्ठा होंय अगरचे । होय देश खुशहाल, बोलबाला रे सच्चे । |
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
Virendra Kumar Sharma
राजनीति में आ गए, पद मद में जब चूर | निश्चय कटु-आलोचना, पद प्रहार भरपूर | पद प्रहार भरपूर, बहू भी सास बनेगी | देवर का कुल दूर, अकेली आस बनेगी | पूजे कोई रोज, मगर शिक्षा न देवे | सत्ता में सामर्थ्य, देश की नैया खेवे || |
तर्पण श्रद्धा का ...
सदा
बेटी की शादी हुई, बेटा भी परदेश | जब तक रहते पास में, माने हर आदेश | माने हर आदेश, परोसे भोजन पानी | बढती जाए आयु, चिंत-रेखा पेशानी | शिथिल बदन हो जाय, खाट पर काया लेटी | पानी रही पिलाय, हमारी प्यारी बेटी || |
कन्या के प्रति पाप में, जो जो भागीदार -
कन्या के प्रति पाप में, जो जो भागीदार ।
रखे अकेली ख्याल जब, कैसे दे आभार ।
कैसे दे आभार, किचेन में हाथ बटाई ।
ढो गोदी सम-आयु, बाद में रुखा खाई ।
हो रविकर असमर्थ, दबा दें बेटे मन्या *।
सही उपेक्षा रोज, दवा दे वो ही कन्या ।
मन्या =गर्दन के पीछे की शिरा
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सात्विक-जिद से आसमाँ, झुक जाते भगवान् ।
पीर पराई बाँट के, धन्य होय इंसान ।
धन्य होय इंसान, मिलें दुर्गम पथ अक्सर ।
हों पूरे अरमान, कोशिशें कर ले बेहतर ।
बाँट एक मुस्कान, मिले तब शान्ति आत्मिक ।
दीदी धन्य विचार, यही तो शुद्ध सात्विक ।।
दिन प्रतिदिन कमजोर, जुदाई कैसे सहिये -
परदेशी पुत्र से-
दो वर्षों में एक ही, मुलाकात जब होय ।
बीस बरस में जोड़िये, दिल कितना ले रोय ।
दिल कितना ले रोय, उमर बावन की मेरी ।
जाने को तैयार, अधिकतम इतनी देरी ।
नियमित करिए फोन, बात कुछ करते रहिये ।
दिन प्रतिदिन कमजोर, जुदाई कैसे सहिये ?? |
वाह...
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteवाह: बहुत खूब..
ReplyDeleteमुझे शामिल करने के लिए आभार आप का..
ReplyDeleteवाह क्या कहने...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया टिपियाया है आपने सबको!
अच्छे लिंक्स
ReplyDeleteमुझे स्थान देने के लिए आभार
राजनीति में आ गए, पद मद में जब चूर |
ReplyDeleteनिश्चय कटु-आलोचना, पद प्रहार भरपूर |
पद प्रहार भरपूर, बहू भी सास बनेगी |
देवर का कुल दूर, अकेली आस बनेगी |
पूजे कोई रोज, मगर शिक्षा न देवे |
सत्ता में सामर्थ्य, देश की नैया खेवे ||
शुक्रिया भाई साहब !