भगवन की भेंगी नजर, डेंगी का उपहार |
मानव की नित हार है, दिल्ली की सरकार |
दिल्ली की सरकार, हाथ पर हाथ धरे है |
बढती भीषण व्याधि, व्यर्थ ही लोग मरे हैं |
करो सफाई खूब, नहीं जमने दो पानी |
नहीं तो जाओ डूब, मरे ना उनकी नानी ||
मानव की नित हार है, दिल्ली की सरकार |
दिल्ली की सरकार, हाथ पर हाथ धरे है |
बढती भीषण व्याधि, व्यर्थ ही लोग मरे हैं |
करो सफाई खूब, नहीं जमने दो पानी |
नहीं तो जाओ डूब, मरे ना उनकी नानी ||
झील सी होती हैं स्त्रियाँ
संगीता स्वरुप ( गीत )
झेले लाखों ज्वार पर, सम्मुख मुखड़ा शांत |
भांटा मद्धिम गति लिए, अंतर करता क्लांत | अंतर करता क्लांत, यही पहचान झील की | पाले पोसे जीव, भिन्नता हलकी फुलकी | लगते मेले रोज, किनारे कृष्णा खेले | स्वार्थ सिद्ध कर जाए, मलिन-मन राधा झेले || |
चींटी और हाथी !संतोष त्रिवेदी
अपनी काया से डबल, दौड़ उठा कर बोझ ।
हाथी हारेगा बड़ा, चींटी जीते सोझ । चींटी जीते सोझ, खोज लेती झट दुश्मन । अंकुश करे गुलाम, बंधे हाथी झट बंधन । रहना सदा सचेत, चीटियाँ होती कटनी । चटनी जैसा चाट, दिखाएँ ताकत अपनी ।। |
सड़क पर जिंदगीदेवेन्द्र पाण्डेय
जयकारा यह सड़क का, तड़क भड़क शुभ शान ।
मस्त मस्त सब शेर हैं, सड़कें जान जहान । सड़कें जान जहान, गली पगडण्डी पाले । पा ले जीवन लक्ष्य, उतरता जो नहिं *खाले । खा ले सड़क प्रसाद, धूल फांके सौ बारा । देता रविकर दाद, करूँ शायर जयकारा ।। *नीचे |
"गीत गाना जानते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
फूलों को गर चाहते, करो शूल से प्रीत |
विरह गीत जो गा सके, सके स्वयं को जीत || |
ये वक्त भी बदल जाएगा
Maheshwari kaneri
तारतम्य सुन्दर बना, सुन्दर सरस प्रवाह |
रविकर अब खामोश हो, कहे वाह ही वाह ||
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वाह..
ReplyDeleteबढ़िया लिंक्स...और सटीक टिप्पणियाँ....
सादर
अनु
वाह ! उम्दा एक से बढ़कर एक !
ReplyDeleteआदरणीय रविकर जी अच्छे लिंक्स ...डेंगू ने यश चोपडा को तो शिकार ही बना डाला सुन्दर सन्देश
ReplyDeleteजय श्री राधे
भ्रमर
अपनी काया से डबल, दौड़ उठा कर बोझ ।
ReplyDeleteहाथी हारेगा बड़ा, चींटी जीते सोझ ।
चींटी जीते सोझ, खोज लेती झट दुश्मन ।
अंकुश करे गुलाम, बंधे हाथी झट बंधन ।
रहना सदा सचेत, चीटियाँ होती कटनी ।
चटनी जैसा चाट, दिखाएँ ताकत अपनी ।।
बहुत सुन्दर रचना है भाई साहब (बड़ा ,चींटियां ,दौड़ )
बोध कथा को साकार करती .
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012
गेस्ट पोस्ट ,गज़ल :आईने की मार भी क्या मार है
http://veerubhai1947.blogspot.com/
बहुत सुन्दर ..आभार
ReplyDelete@ रविकर अब खामोश हो, कहे वाह ही वाह ||
ReplyDeleteवाह जी वाह
हर उजाले से अन्धेरा है बंधा,
ReplyDeleteखाक दर-दर की नहीं हम छानते हैं।
हम विरह में गीत गाना जानते हैं।।
शूल के ही साथ रहते फूल हैं,
बैर काँटों से नहीं हम ठानते हैं
हम विरह में गीत गाना जानते हैं।।
जीवन में "नकार "को बुहारती "सकार "को दुलराती ,सकारात्मक ऊर्जा से संसिक्त पोस्ट .बेहतरीन भाव अभिव्यंजना .
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
बुधवार, 24 अक्तूबर 2012
हैलोवीन बोले तो (दूसरीऔर तीसरी क़िस्त )
http://veerubhai1947.blogspot.com/
न जाने किस तरह तो रात भर छप्पर बनाते हैं ,
सवेरे ही सवेरे आंधियां फिर लौट आतीं हैं .
सुबह टिपण्णी करो ,रात को गायब .वाह क्या कहने हैं स्पैम बोक्स के .
हाईप्रोफाइल मच्छर: डेंगू का 'डंक'
ReplyDeleteभगवन की भेंगी नजर, डेंगी का उपहार |
मानव की नित हार है, दिल्ली की सरकार |
दिल्ली की सरकार, हाथ पर हाथ धरे है |
बढती भीषण व्याधि, व्यर्थ ही लोग मरे हैं |
करो सफाई खूब, नहीं जमने दो पानी |
नहीं तो जाओ डूब, मरे ना उनकी नानी ||
इन दिनों तो भारत सरकार ही डेंगू की सरकार हो गई है प्राजातंत्र ही डेंगू ग्रस्त है .
भाई,आभार !
ReplyDeleteरविकर सर उम्दा लिंक्स एक से बढ़कर एक टिप्पणियां, विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं
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