आइये देखते हैं स्वयं को -------J Sharma
कौन सुनता है ?
खोता रविकर ढोयगा, कब तक अपना बोझ । अब उतार कर रख चला, पीठ कर रहा सोझ । पीठ कर रहा सोझ, खोज अब कोई दूजा । होती चिक चिक रोज, करूँ नहिं तेरी पूजा । काटेगा इंसान, जिन्दगी में जो बोता । कहते हैं विद्वान, मजे में जीता खोता ।। |
"रूप छलता रहा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
सुबह सवेरे ओस भी, बनती गंगा धार ।
बहा रहे गुरुवर यहाँ, पावन छंद बयार ।
पावन छंद बयार, बड़ी आकर्षक दीखे ।
नव-कवि कुल आ जाव , यहाँ कविताई सीखे ।
छले नहीं यह रूप, धूप चहुँ ओर बिखेरे ।
रविकर गुरुकुल जाय, आज तो सुबह सवेरे ।।
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खता,,,
खता बता कर क्या करें, ख़त खतियाना ख़त्म ।
खेल ख़तम पैसा हजम, यही पुरानी रश्म ।
यही पुरानी रश्म, कुबूला जैसी हो तुम ।
शायद भूला रूल, सीध होती नहिं यह दुम ।
तेरे द्वारे आय, भौंकता रविकर प्यारी ।
गरज गरज ठुकराय, रही क्यूँ गरज हमारी ।
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तांडव शंकर दे मचा , नचा विश्व परिदृश्य |
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करवाचौथ की फुलझड़ियाँ ("माहिया" में पति पत्नी की चुहल बाजी
Rajesh Kumari
पूछा अपने दोस्त से, ओ पाजी सतवंत ।
सन बारह का हो रहा, दो महीनों में अंत ।
दो महीनों में अंत, बुरा दिन एक बताना ।
और कौन सा भला, दिवस वह भी समझाना ।
कहता है सतवंत, बुरा दिन साल गिरह का ।
बढ़िया करवा चौथ, बोल कर पाजी चहका ।।
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इश्क
expression
झूठा चंदा खा रहा, जहाँ व्यर्थ सी कौल ।
वहीँ चांदनी दे जमा, वहीँ पीठ पर धौल ।
वहीँ पीठ पर धौल, छला था नारि गौतमी ।
कभी नहीं बन सका, शकल से सही आदमी ।
छुपते छुपे छुपाय, छकाये छली अनूठा ।
धीरे शकल दिखाय, बनाए बातें झूठा ।।
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अधूरे सपनों की कसक (22) !
रेखा श्रीवास्तव
दीदी संगीता पुरी जी
विदुषी ज्योतिष से जुड़ी, गत्यात्मक सन्दर्भ ।
एक एक जोड़ें कड़ी, पढ़ें समय का गर्भ ।
पढ़ें समय का गर्भ , समर्पित कर दी जीवन ।
वैज्ञानिक सी दृष्टि, देखता श्रेष्ठ समर्पण ।
पूज्य पिता का क्षेत्र, जोड़ संगीता हरषी ।
शुभकामना अपार, जरा स्वीकारो विदुषी ।।
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अरे...!
ReplyDeleteआपने तो बहुत लोगों को टिपिया दिया।
उनमें से एक खुशनसीब हम भी हैं।
आभार!
आभार
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