नारी जीवन के करे, जब विद्वान विभाग |
एक एक पल बाँट ले, नेह समर्पण राग | नेह समर्पण राग, सुहाग परमेश्वर होता | लेकिन हे चाणक्य, सूत्र जो जीव पिरोता | रहटा सदा अलोप, पुरुष की है मक्कारी | एक पहर तो छोड़, कहे अपना जो नारी || |
जांचे कन्या भ्रूण खलु, मारे नि:संकोच-
पहचाने नौ कन्यका, करे समस्या-पूर्ति ।
दुर्गा चंडी रोहिणी, कल्याणी त्रिमूर्ति ।
कल्याणी त्रिमूर्ति, सुभद्रा सजग कुमारी ।
शाम्भवी संभाव्य, कालिका की अब बारी ।
लम्बी झाड़ू हाथ, लगाए अकल ठिकाने ।
असुर ससुर हत्यार, दुष्ट मानव घबराने ।।
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टॉइलेट नहीं तो दुल्हन नहींडॉ शिखा कौशिक ''नूतन ''
भारतीय नारी
जाती जब बाहर सखी, मन की लूँ बतलाय | गाँव राँव की चटपटी, न्यूज भी जाती पाय | न्यूज भी जाती पाय, मर्दवा उसका पागल | दारु पीकर रोज, बके है उसको अलबल | छोटी करे ना व्याह, उसे मैया समझाती | देती सही जवाब, माँ गुस्सा हो जाती || |
'चित्र से काव्य तक' प्रतियोगिता अंक -१९रविकर की रचनाएंलूट रहे ज़र-ज़ोरु-ज़मीन भिड़ें खलु दुष्ट करें मुँह काला ।
भीषण रेगिसतान-मसान समान लगे मम देश विशाला ।
मारिष मानुष मोद मिले, मगदा मकु मोंहिं मिले मणि-माला ।
दुष्टन के दशद्वारन को दशबाहु दहाय मिटा दनु-हाला ।।
मारिष = सूत्रधार मगदा = मार्ग दिखने वाला मकु=कदाचित / चाहे
मणि-माला = रुद्राक्ष दशद्वारन = दश द्वार / देह द्वार दशबाहु = शिवशंकर
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कैंची कैसी कतरनी, करती किच-किच काम।
लूट सम्पदा देश की, भर लेता गोदाम ।
भर लेता गोदाम, शानशौकत से राजा ।
ले गरीब की जान, घुटाले घटते ताजा ।
सुन लो नेता लाट, झेल रविकर खुरपैंची ।
चारो खाने चित्त, मार के लंगड़ी-कैंची ।।
ReplyDeleteकैंची कैसी कतरनी, करती किच-किच काम।
लूट सम्पदा देश की, भर लेता गोदाम ।
भर लेता गोदाम, शानशौकत से राजा ।
ले गरीब की जान, घुटाले घटते ताजा ।
सुन लो नेता लाट, झेल रविकर खुरपैंची ।
चारो खाने चित्त, मार के लंगड़ी-कैंची ।।
कैंची कैसी कतरनी, करती किच-किच काम।
लूट सम्पदा देश की, भर लेता गोदाम ।
भर लेता गोदाम, शानशौकत से राजा ।
ले गरीब की जान, घुटाले घटते ताजा ।
सुन लो नेता लाट, झेल रविकर खुरपैंची ।
चारो खाने चित्त, मार के लंगड़ी-कैंची ।।
ReplyDeleteकैंची कैसी कतरनी, करती किच-किच काम।
लूट सम्पदा देश की, भर लेता गोदाम ।
भर लेता गोदाम, शानशौकत से राजा ।
ले गरीब की जान, घुटाले घटते ताजा ।
सुन लो नेता लाट, झेल रविकर खुरपैंची ।
चारो खाने चित्त, मार के लंगड़ी-कैंची ।।
चारो शब्द पर ब्लॉग जगत में विवाद है -चारो चारो मत करो घिर जाओगे चारों तरफ से .बढ़िया प्रस्तुति है भाई साहब .
.सार्थक प्रस्तुति हेतु साधुवाद
ReplyDeleteदुर्गा अष्टमी की सभी को हार्दिक शुभकामनायें
सजग और संगत उक्तियाँ ,
ReplyDeleteमहाष्टमी मंगलमय हो !