Monday, 22 October 2012

एक पहर तो छोड़, कहे अपना जो नारी -





नारी जीवन के करे, जब विद्वान विभाग |
एक एक पल बाँट ले, नेह समर्पण राग |
नेह समर्पण राग, सुहाग परमेश्वर होता |
लेकिन हे चाणक्य, सूत्र जो जीव पिरोता |
रहटा सदा अलोप, पुरुष की है मक्कारी |
एक पहर तो छोड़, कहे अपना जो नारी ||

जांचे कन्या भ्रूण खलु, मारे नि:संकोच-



पहचाने नौ कन्यका, करे समस्या-पूर्ति ।

दुर्गा चंडी रोहिणी, कल्याणी त्रिमूर्ति

कल्याणी त्रिमूर्ति, सुभद्रा सजग कुमारी

शाम्भवी संभाव्य, कालिका की अब बारी ।

लम्बी झाड़ू हाथ, लगाए अकल ठिकाने ।

असुर ससुर हत्यार, दुष्ट मानव घबराने ।।

टॉइलेट नहीं तो दुल्हन नहीं

डॉ शिखा कौशिक ''नूतन '' 
 भारतीय नारी 

जाती जब बाहर सखी, मन की लूँ बतलाय |
गाँव राँव की चटपटी, न्यूज भी जाती पाय |
न्यूज भी जाती पाय, मर्दवा उसका पागल |
दारु पीकर रोज, बके है उसको अलबल |
छोटी करे ना व्याह, उसे मैया समझाती |
देती सही जवाब,  माँ गुस्सा हो जाती ||

'चित्र से काव्य तक' प्रतियोगिता अंक -१९

रविकर की रचनाएं  



लूट रहे ज़र-ज़ोरु-ज़मीन भिड़ें खलु दुष्ट करें मुँह काला ।
भीषण रेगिसतान-मसान समान लगे मम देश विशाला ।
मारिष मानुष मोद मिले, मगदा मकु मोंहिं मिले मणि-माला ।
दुष्टन के दशद्वारन को दशबाहु दहाय मिटा दनु-हाला ।।

मारिष = सूत्रधार    मगदा = मार्ग दिखने वाला   मकु=कदाचित / चाहे 
मणि-माला = रुद्राक्ष    दशद्वारन = दश द्वार / देह द्वार    दशबाहु = शिवशंकर


दोहे  
सज्जन सी छवि पा गया, कर शत सत-संवाद ।
दुर्जन छवि हित किन्तु है, काफी एक विवाद ।।

आदिकाल की नग्नता, गई आज शरमाय ।
 परिधानों में पापधी , नंगा-लुच्चा पाय ।।  

लम्बी लम्बी बतकही, लम्बी लम्बी छोड़ ।
हँस हँस कर लम्बा हुआ, होवे पेट मरोड़ ।।

My Happy Birth Day - मेरा जन्मदिन


 
ऐना मैना सी मगन, ऊँची गगन उड़ान | 
शाहनवाज की डॉल को, है प्रभु का वरदान | 
है प्रभु का वरदान,  बुद्धि बल सेहत पाओ | 
ईश्वर की अरदास, पढ़ाई नहीं भुलाओ |
कर मम्मी को तंग, किन्तु पापा की नैना | 
कंप्यूटर पर व्यस्त, छोड़ दे उनको ऐना ||

कैंची कैसी कतरनी, करती किच-किच काम।
लूट सम्पदा देश की,   भर लेता  गोदाम ।
भर  लेता  गोदाम, शानशौकत से राजा ।
ले गरीब की जान, घुटाले घटते ताजा ।
सुन लो नेता लाट, झेल रविकर खुरपैंची ।
चारो खाने चित्त,  मार के लंगड़ी-कैंची ।।

4 comments:


  1. कैंची कैसी कतरनी, करती किच-किच काम।
    लूट सम्पदा देश की, भर लेता गोदाम ।
    भर लेता गोदाम, शानशौकत से राजा ।
    ले गरीब की जान, घुटाले घटते ताजा ।
    सुन लो नेता लाट, झेल रविकर खुरपैंची ।
    चारो खाने चित्त, मार के लंगड़ी-कैंची ।।

    कैंची कैसी कतरनी, करती किच-किच काम।
    लूट सम्पदा देश की, भर लेता गोदाम ।
    भर लेता गोदाम, शानशौकत से राजा ।
    ले गरीब की जान, घुटाले घटते ताजा ।
    सुन लो नेता लाट, झेल रविकर खुरपैंची ।
    चारो खाने चित्त, मार के लंगड़ी-कैंची ।।

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  2. कैंची कैसी कतरनी, करती किच-किच काम।
    लूट सम्पदा देश की, भर लेता गोदाम ।
    भर लेता गोदाम, शानशौकत से राजा ।
    ले गरीब की जान, घुटाले घटते ताजा ।
    सुन लो नेता लाट, झेल रविकर खुरपैंची ।
    चारो खाने चित्त, मार के लंगड़ी-कैंची ।।

    चारो शब्द पर ब्लॉग जगत में विवाद है -चारो चारो मत करो घिर जाओगे चारों तरफ से .बढ़िया प्रस्तुति है भाई साहब .

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  3. सजग और संगत उक्तियाँ ,
    महाष्टमी मंगलमय हो !

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