Friday, 5 October 2012

रूप निरूपा राय बदल, अब तक माँ रही कहावत नारी-


दृष्टिकोण
दृष्टि-दोष से त्रस्त है, मानव अभिनव-ज्ञान ।
चौदह चश्मे चक्षु पर, चतुर चोर बैमान । 
चतुर चोर बैमान, स्वार्थी क्रूर *द्विरेतस ।
बाल तरुण नर-नारि, सत्य भी देखे टस-मस ।
दृष्टिकोण हर बार, बदलना गर्व घोष है ।
करे स्वयं पर वार, बावला दृष्टि-दोष है ।।

*खच्चर

नारी – मत्तगयंद छंद सवैया

अरुण कुमार निगम 
 [DSC01703.JPG]
 सवैया का अभ्यास किया है अभी तुरंत -निश्चय ही मत्गयंद नहीं है -
 मन माफिक वर वरताव  नहीं, फिर से ससुरार  न जावत नारी ।
पति मिल जाय अदालत मा, तब डीजल डाल जलावत नारी ।
घर में अनबन होय जाय तनिक, लरिकन का जहर पिलावत नारी ।
सबला कब की बन आय जमी, अब लौं अबलाय कहावत नारी  ।।

नेह समर्पण भूल गई, अब तो जब स्वयं कमावत नारी ।
भोजन नित रही पकावत तब, अब हमका रोज पकावत नारी ।
रूप निरूपा राय बदल, अब तक माँ रही कहावत नारी ।
मलिका के रस्ते राखी जब, कैसे नर शीश नवावत नारी ।।

बच्चों की संस्कृति

  (प्रवीण पाण्डेय) 
 न दैन्यं न पलायनम्
करें गर्व ना खोल पर, बल्कि आत्मा शुद्ध |
सांस्कृतिक मन आत्मा, कहें प्रवीन प्रबुद्ध |
कहें प्रवीन प्रबुद्ध, खोल दें ज्ञान पिटारा |
बच्चों की संस्कृति, आधुनिक बंटा-धारा |
चिंता में हम साथ, हाथ पर हाथ धरें ना |
चिन्तक करें विचार, कार्य हम सभी करें ना !!


चील की गुजरात उड़ान

Virendra Kumar Sharma  

बी हूडा बेहूदा बोले, नर्मदा कहे नर-मादा ।
होती क्यूँ तकलीफ आपको, बोलो भीड़ू दादा ।
 सास-ससुर की प्रकृत-सम्पदा, हरियाना का हरिया -
बाड्रा है दामाद हमारा, ब्लॉग वर्ल्ड मत कान्दा ।।

गिद्ध दृष्टि कहिये ना भाई, चील चील क्यूँ रटते ।
बीमारी में भी क्या कोई, रहा आज तक खटते ।
भारत आओ बँटे  रेंवड़ी, रेवाड़ी में ले लो-
लूट रहे हैं अंधे सारे, पर अंधे न घटते ।।


 कालिख तो पुत ही गई सोनिया जी !

महेन्द्र श्रीवास्तव 
आज और कल में फरक, नहीं सफेदी बात |
कम काली है शर्ट जो, पहनो वो बारात |
पहनो वो बारात, सिनेमा बड़ा पुराना |
चोरों की बारात, देखने अब क्या जाना |
घर आया दामाद, उतारो मियां आरती |
दस करोड़ का गिफ्ट, भेंटती सास भारती ||

 Blog News
गजब गजल गंगा पढ़ी, गौतम जी आभार |
ऐसी ही उत्कृष्ट नित, मिले गजल हर बार ||

The मध्यवर्ग

  (सतीश पंचम) 
  कहे दोगला नामवर, पूरा मध्यम वर्ग ।
संस्कार की ओढ़नी, उच्च वर्ग का स्वर्ग ।
उच्च वर्ग का स्वर्ग, चतुर चम्गीदढ़ चालू ।
यहाँ हिलाए पंख, पेड़ ढूंढे यह *मालू ।
दांत दिखाता जाय, जहाँ पर वर्ग खोखला ।
ऊंचे स्वप्न दिखाय, झूठ गढ़ चले दोगला ।।
* पेड़ पर चढ़ने वाली एक लता 

अभियन्त्रक की गलतियाँ, बिल्डिंग गिरे धडाम |
पर वकील करता नहीं, कोई अनुचित काम |
कोई अनुचित काम, चिकित्सक करे गलतियाँ |
राम नाम हो सत्य, मरे बीमार शर्तिया |
शिक्षक गलती करे, देश का बिगड़े बच्चा  |
लेकिन नेता करे, वही जनसेवक सच्चा || 

प्रिंट मीडिया ने खोजा “ पेड न्यूज ” का तोड़ !

बनिया डंडी मार के, ग्वाला पानी बेंच ।
चतुर सयाने लें कमा, पैदा करके पेंच ।
पैदा करके पेंच, नाप पेट्रोल कमाता ।
बेचारा अखबार, चला के क्या कुछ  पाता ।
पेड न्यूज दे छाप, काँप लेकिन अब जाता ।
पीछे दिया लगाय, हाय क्यूँ जांच विधाता ।। 

"अपने को बरगद मत मानो" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


दुष्ट अपने को बरगद की श्रेणी में रखने लगे हैं  -

बरगद गदगद-गिरा सुन, लता लगाय लताड़ |
धरती सारी घेरता,  देता घर को फाड़ |
देता घर को फाड़, ख़तम सब छोटे पौधे |
करता सीमा पार, छेकता औंधे औंधे |
हो बेहद उद्दंड, हुई जाती हद बेहद |
शुद्ध वायु की बात, अन्यथा काटूँ बरगद ||

क्षणिका : सदिश प्रेम

धर्मेन्द्र कुमार सिंह 
ग्रेविटॉन
प्रेम सदिश कवि  कह रहा , सदिश रहे विश्वास ।
संरेखी हरदम रहें, जगी रहेगी आस ।
जगी रहेगी आस, मगर विक्षोभ अदिश सा ।
रहे सदा ही साथ, हकीकत का यह हिस्सा । 
बढ़ता जब परिमाण, बड़ा परिणाम भयानक ।
हंसी ख़ुशी की कथा, दुखान्ती होय कथानक ।।

11 comments:

  1. वाह ... बेहतरीन

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  2. बढिया लिंक्स
    मुझे भी जगह मिली, शुक्रिया

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  3. बहुत अच्छी कड़ियाँ, मुझे शामिल करने का शुक्रिया

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  4. बहुत बढिया लिंक्स...

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (07-10-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!

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  6. लाजबाब,,,,एक बढ़कर एक,,,,बधाई रविकर जी,,,,

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  7. एक से एक बढ़कर हैं सभी काव्यात्मक टिप्पणियाँ .किसी एक की तारीफ़ करना बाकी के साथ अन्याय हो जाएगा .

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  8. बहुत खूब भाई साहब .

    Virendra Sharma ‏@Veerubhai1947
    ram ram bhai http://veerubhai1947.blogspot.com/ रविवार, 7 अक्तूबर 2012 कांग्रेसी कुतर्क

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  9. लाजबाब प्रतिक्रियाएं एक से बढ़कर एक अद्दभुत बहुत बहुत बधाई

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  10. एक से बढकर एक काब्यागत सौंदर्य के अनमोल मोती....

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