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SADA
अवसरवादी धूर्तता, पनप रही चहुँओर । सत्ता-गलियारे अलग, झेलें इन्हें करोर । झेलें इन्हें करोर, झेल इनको हम लेते । किन्तु छलें जब लोग, भरोसा जिनको देते । वो मारक हो जाय, करे जीवन बर्बादी । अगल बगल पहचान, भरे हैं अवसरवादी ।। |
भारत बनाना रिपब्लिक नहीं, कुप्रंबंधन का शिकार है. (India-banana-bad-mgmt)
अवधेश पाण्डेय
नहीं बनाना वाडरा, नाना मम्मा दोष । मूरख जनता बन रही, लुटा लुटा के कोष । लुटा लुटा के कोष , होश सत्ता ने खोया । वैमनस्य के बीज, सभी गाँवों में बोया । लोकतंत्र की फसल, बिना पानी उगवाना । केला केलि करोड़ , अकेला देश बनाना ।। |
आज और कल में फरक, नहीं सफेदी बात |
कम काली है शर्ट जो, पहनो वो बारात | पहनो वो बारात, सिनेमा बड़ा पुराना | चोरों की बारात, देखने अब क्या जाना | घर आया दामाद, उतारो मियां आरती | दस करोड़ का गिफ्ट, भेंटती सास भारती || |
अथ वागीश उवाच :ये कांग्रेसी हरकारेVirendra Kumar Sharma
हरकारे *हरहा हदस, *हहर *हई हकलाय ।
"खुर-सीध" जान सल मान को, जाय जान दे जाय । जाय जान दे जाय, यह पहला नंबर पाए । चमचे तो अधिसंख्य, जल्द पहचान बनाए । सबकी गजब दलील, लील जाते हैं टुकड़े । गिरगिट अजगर गधे, लोमड़ी बरदे कुकड़े ।। *जानवर *डर *अचरज |
भगवान् राम की सहोदरा (बहन) : भगवती शांता परम-22सर्ग-5 : इति
भाग-1
चंपा-सोम
कई दिनों का सफ़र था, आये चंपा द्वार |
नाविक के विश्राम का, बटुक उठाये भार ||
राज महल शांता गई, माता ली लिपटाय |
मस्तक चूमी प्यार से, लेती रही बलाय ||
गई पिता के पास फिर, पिता रहे हरसाय |
स्वस्थ पिता को देखकर,फूली नहीं समाय ||
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जालजगत में कुण्डली, लिख कर किया कमाल।
ReplyDeleteबन करके सरताज जी, करते खूब धमाल!!
करते खूब धमाल,जाते सभी पोस्ट पर
Deleteअपना जलवा दिखा,लौट आते रविकर
छोटे हो या बड़े,सबसे व्योहार मित्रवत
तभी रवि को माने,गुरू सारा जालजगत,,,,,
बहुत बढ़िया काव्य टिप्पणियाँ .नूरा कुश्ती तो बहुत देखी यहाँ नूरा कुंडली कुंडली खेल रहें हैं आप और अरुण कुमार निगम साहब .बढ़िया तंज़ और व्यंजना ला रहे हो नित्य प्रति रविकर भैया .
ReplyDeleteकरते खूब धमाल,जाते सभी पोस्ट पर
ReplyDeleteअपना जलवा दिखा,लौट आते रविकर
छोटे हो या बड़े,सबसे व्योहार मित्रवत
तभी रवि को माने,गुरू सारा जालजगत,,,,,
बहुत बढ़िया काव्य टिप्पणियाँ .नूरा कुश्ती तो बहुत देखी यहाँ नूरा कुंडली कुंडली खेल रहें हैं आप और अरुण कुमार निगम साहब .बढ़िया तंज़ और व्यंजना ला रहे हो नित्य प्रति रविकर भैया .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया काव्य टिप्पणियाँ .नूरा कुश्ती तो बहुत देखी यहाँ नूरा कुंडली कुंडली खेल रहें हैं आप और अरुण कुमार निगम साहब .बढ़िया तंज़ और व्यंजना ला रहे हो नित्य प्रति रविकर भैया .
ReplyDeleteबहुत सटीक..
ReplyDeleteन सिर्फ़ आप रचना के मर्म को पकड़ते हैं
ReplyDeleteबल्कि उस पर एक अच्छी रचना रचते हैं
अद्वितीय प्रतिभा के धनी हैं आप
बहुत बढ़िया काव्य टिप्पणियाँ .नूरा कुश्ती तो बहुत देखी यहाँ नूरा कुंडली कुंडली खेल रहें हैं आप और अरुण कुमार निगम साहब .बढ़िया तंज़ और व्यंजना ला रहे हो नित्य प्रति रविकर भैया .
ReplyDeleteबहुत सुंदर, मुझे शामिल करने के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteइस निर्मम संसार को,देख अरुण है रोय
ReplyDeleteमर्म जलेबी का यहाँ,जान सका ना कोय |
छनी खौलते तेल में , रही चाशनी डूब
बनी जलेबी रसभरी,मनभाती अतिखूब |
मधुर-मधुर अरु कुरकुरी, खूब सहे संताप
कठिन साधना से मिले,नाम जलेबी छाप |
रविकर जी की कुण्डली,अजगर सी मजबूत
सत साहित संसार के , अद्भुत हैं अवधूत |
सुंदर प्रस्तुति
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