Wednesday, 3 October 2012

कांग्रेस की महिला कर्मी, अगर अधर्मी मिल जाये तो-





 ZEAL
जब बयान इतना बेहूदा, बेशर्मी से खी खी की |
क्रियान्वयन होगा कैसा तब, क्या बोलूं बस छी छी छी |
कांग्रेस की महिला कर्मी, अगर अधर्मी मिल जाये तो-
बोलो बोलो क्या बोलोगी, कर देना बस ही ही ही ||



"गद्यगीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 

है सटीक यह व्याख्या, फैले जीवन रंग |
रंग- ढंग कुछ नए किन्तु, करते रविकर दंग |
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काँव काँव करते कटुक, किन्तु मिले इक रोज ।
खीर-पूरियों से सजा, पकवानों का भोज ।
 पकवानों का भोज, खोज नहिं पाते पित्तर ।
काँव काँव अनवरत,  बुढापे में यह रविकर ।
करे रात दिन शोर, गया कविता करके मर ।
दिखे गया में आज, वही तो काँव काँव कर ।।

अन्ना की टोपी उछाल रहे अरविंद !

महेन्द्र श्रीवास्तव 

सच्चे में विश्वास की, दिखती कमी अपार ।
जलें तभी तो चार में, पूरे चूल्हे चार ।

पूरे चूल्हे चार, पार्टी बना मना लें ।

मिल झूठे हरबार,  नई सरकार बना लें ।

अन्ना बाबा संत,  इकट्ठा होंय अगरचे ।

होय देश खुशहाल, बोलबाला रे सच्चे ।

हम देख न सके,,,

Dheerendra singh Bhadauriya 

हुस्न-इश्क को भूल जा, रविकर पकड़ सलाह |
सूक्ष्म-दृष्टि अतिशय विकट, अभी गजब उत्साह |
अभी गजब उत्साह, कहीं ना आह निकाले |
यह कंटकमय राह, पड़ो ना इनके पाले |
पड़ जाए गर धीर, ध्यान में रखो रिश्क को |
शुभकामना असीम, भूल जा हुश्न-इश्क को ||

सात्विक-जिद से आसमाँ, झुक जाते भगवान् ।
पीर पराई बाँट के, धन्य होय इंसान ।
धन्य होय इंसान, मिलें दुर्गम पथ अक्सर ।
 हों पूरे अरमान, कोशिशें कर ले बेहतर ।
बाँट एक मुस्कान, मिले तब शान्ति आत्मिक ।
दीदी धन्य विचार, यही तो शुद्ध सात्विक ।।  

 

11 comments:

  1. इस लिक्खाड़ को पकड़़ कर अच्छे लिंक्स तक पहुंचे।

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  2. इतना बेहूदा और अश्लील बयान ?
    ZEAL
    ZEAL
    जब बयान इतना बेहूदा, बेशर्मी से खी खी की |
    क्रियान्वयन होगा कैसा तब, क्या बोलूं बस छी छी छी |
    कांग्रेस की महिला कर्मी, अगर अधर्मी मिल जाये तो-
    बोलो बोलो क्या बोलोगी, कर देना बस ही ही ही ||
    ठिठोली या पुरुष की वास्तविक सोच !

    तू मैं ,(शादी से पहले )

    तूमैं ,(हो गई शादी ,तू मैं मिलके हम हो गए )

    तू तू .में में .... (हो गई कलह शुरु शादी के बाद )

    मंत्री जी इसी बात को व्यंजना में भी कह सकते थे .


    अब भुगतो !

    क्या बात है दोस्त .छा गए ,मन भा गए .

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  3. स्न-इश्क को भूल जा, रविकर पकड़ सलाह |
    सूक्ष्म-दृष्टि अतिशय विकट, अभी गजब उत्साह |
    अभी गजब उत्साह, कहीं ना आह निकाले |
    यह कंटकमय राह, पड़ो ना इनके पाले |
    पड़ जाए गर धीर, ध्यान में रखो रिश्क को |
    शुभकामना असीम, भूल जा हुश्न-इश्क को ||


    हम देख न सके,,,
    Dheerendra singh Bhadauriya
    काव्यान्जलि ...

    कमाल है अभी तक देख ही नहीं सके .अब कब देखोगे ?उम्र निकला जाएगी तब देखोगे ?

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  4. Virendra Kumar SharmaOctober 4, 2012 7:36 AM

    अन्ना और अरविन्द
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    Virendra Kumar SharmaOctober 4, 2012 7:36 AM
    लो फिर आगये आधा सच वाले .और साथ में इनके कई क्लोन .
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    माननीय महेंद्र श्रीवास्तव जी !किसी पार्टी को मान्यता देना न देना चुनाव आयोग का दायरा है .और उससे भी ऊपर जनता की अदालत है .जिस पार्टी को कुल मतों का एक न्यूनतम

    निर्धारित अंश प्राप्त नहीं होता है उसे चुनाव आयोग मान्यता नहीं देता है .लाल बत्ती की गाड़ियां हिन्दुस्तान के आम आदमी का रास्ता रोकके खड़ी हो

    जातीं हैं .

    यहाँ कैंटन छोटा सा उपनगर है देत्रोइत शहर का .दोनों वेन स्टेट काउंटी के तहत आते हैं .ओबामा साहब कब आये कब गए कहीं कोई हंगामा नहीं होता

    ,हिन्दुस्तान में तमाम

    रास्ते रोक दिए जाते हैं जैसे कोई सुनामी आने वाली है .लाल बत्ती क्या पद प्रतिष्ठा का आपके लिए भी प्रतीक है ?केजरीवाल साहब अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के लिए लाल

    बत्ती का प्रावधान नहीं रखना चाहते तो आपको क्या आपत्ति है ?

    प्रति रक्षा मंत्री रहते भी जार्ज साहब ने सिक्योरिटी नहीं रखी थी कोठी के बाहर .



    केजरीवाल साहब के इस कदम से आपको क्या आपत्ति है .और वह मंद मति तो हमेशा ही सिक्योरिटी को बिना बताए कलावती के घर पहुंचता है .जिसे

    आम आदमी से

    खतरा है उसे सियासत का क्या हक़ है प्रजातंत्र में ?इस देश का आदर्श महात्मा गांधी रहे हैं .जो पैसिंजर ट्रेन से चलते थे .लाल बत्ती वाली गाड़ी नहीं थी

    उनके पास .आप


    केजरीवाल साहब से इतना क्यों आतंकित हैं .?

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  5. सच्चे में विश्वास की, दिखती कमी अपार ।
    जलें तभी तो चार में, पूरे चूल्हे चार ।
    पूरे चूल्हे चार, पार्टी बना मना लें ।
    मिल झूठे हरबार, नई सरकार बना लें ।
    अन्ना बाबा संत, इकट्ठा होंय अगरचे ।
    होय देश खुशहाल, बोलबाला रे सच्चे ।

    बहुत खूब भाईजान !

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  6. महेन्द्र श्रीवास्तव3 October 2012 20:57
    जी बिल्कुल
    मैं आपकी बातों से सहमत हूं

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    कमल कुमार सिंह (नारद )3 October 2012 22:29
    महेंद्र जी बहुत सुन्दर आलेख , लेकिन आश्चर्य आपको गालियाँ नहीं पड़ी :) .... वास्तव मै मै इस आन्दोलन में शुरू से ही साथ था ... यहाँ तक आर्थिक रूप से इस कदर योगदान दिया की मेरे जैसे आम युवक के लिए ये संभव नहीं था (इसके लिए मैंने व्यक्तिगत रूप से दर्जनों समझौते किये )

    लेकिन इन सब की मंशा जब सामने आई , तो अरविन्द के मुह पर थूकने का मन करता है .. और मुझे कम से कम इतनी ख़ुशी जरुर है की मै अंध भक्त नहीं ...

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    Replies

    महेन्द्र श्रीवास्तव3 October 2012 22:38
    ओह.. आपकी प्रतिक्रिया से ये लेख और सार्थक हो गया।
    क्योंकि आप पहले इस आंदोलन से जुड़े थे और अब जो बात आप कह रहे हैं वो आपकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया है।

    मैं शुरू से एक बात कहता आ रहा हूं आज फिर दोहरा रहा हूं कि बेईमानी की बुनियाद पर ईमानदारी की इमारत नहीं खड़ी हो सकती।

    यही वजह है कि यहां से एक एक कर सब लोग निकल गए।

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    सुन ले लिंक लिखाड़ ,

    ऐसे मितवा चाहिए इनको कई हजार .

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  7. खूबसूरत टिप्पणियाँ लगा के
    पोस्ट को जब लगाता है
    रविकर सूरज की तरह
    सबके लेखों को एक
    अलग ही रोशनी से
    चमका सा ले जाता है !

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  8. Great comments Ravikar ji.

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  9. वाणी पर संयम रखना चाहिए राजनेताओं को!

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