Thursday, 25 October 2012

एकल रहती नार, नहीं प्रतिबन्ध यहाँ है-

Thursday, 23 August 2012

Neha  
सत्यवान था राज-सुत, हुआ किन्तु कंगाल |
एक वर्ष की जिन्दगी, होती मृत्यु अकाल |
होती मृत्यु अकाल, कौन गुण भाया बेटी |
पति ऐसा सुविचार, कहाँ से आया बेटी |
जोश बड़ी है चीज, मगर जब व्यर्थ रोष हो |
करे भला न खीज, चाहती क्यूँ सदोष हो ||

सती स्वत: स्वाहा हुई, बड़ी जिंदगी टेढ़ |
सावित्री कितनी यहाँ, चरा रही हैं भेड़ |
चरा रही हैं भेड़, रहो आजाद हमेशा |
लम्पट ढोंगी दुष्ट, चाहते  हरदम ऐसा |
एकल रहती नार, नहीं प्रतिबन्ध यहाँ है |
अच्छे भले विचार, पालिए रोक कहाँ है ||

कवितायेँ आजकल " वाद" की ड्योढ़ी पर ठिठकी हैं

वाणी गीत 
गीत मेरे ........

 बिन कांटे की मत्स्य यह, जीवन-रस से खींच |
मछुवारे वारे चतुर, बुद्धि विलासी भींच |
बुद्धि विलासी भींच, सींचता संस्कार से |
हल्दी नमक लगाय, रोचता है विचार से |
उलट पुलट दे भूंज, किन्तु बदबू फैलाये |
जय हो कविता मत्स्य, रखो फ्रिज में सड़ जाए ||


असीम कृपा उसकी

Asha Saxena
Akanksha  
छप्पन भोगों से नहीं, खुश होते भगवान् |
तर्क तरीके व्यर्थ हों, अटक भटक इंसान |
अटक भटक इंसान, लोटता नापे धरती |
व्यर्थ जाप हठ योग,  तपस्या कुछ ना करती |
सत्तावना प्रकार, पका के रख मन बरतन |
भावों का पकवान, परोसो छोडो छप्पन ||

मैंने हार अभी न मानी

Kailash Sharma
Kashish - My Poetry  

घड़ा पाप का भर चुका, ईंधन संचित ढेर ।
देर नहीं अंधेर है, इक चिंगारी हेर ।
इक चिंगारी हेर, ढेर कर घट मंसूबे ।
होवे तभी सवेर, अभी तक क्यूँ न ऊबे ।
 बची गर्भ में किन्तु, इरादा गलत बाप का ।
डुबा दूध में मार, रहा भर घड़ा पाप का ।।

बहू लायेंगे इंग्लैंड से

neel pardeep
All India Bloggers' Associationऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसियेशन

बहू कहाँ से आयगी, बेमानी हैं बात |
मूल प्रश्न है बेटियां, दर्द भरे हालात |
दर्द भरे हालात, मर्द यूँ ही जी लेगा |
भूला रिश्ते नात, भला विज्ञान करेगा |
है उन्नत विज्ञान, जात मानव ना नाशे |
पुत्र पाल निज गर्भ, जरुरी बहू कहाँ से ?? 

रंग बिरंगी एकता

मौत

अहम् आंकड़े हैं भरत,  दंगा सूखा बाढ़ |
तड़ित गिरे बादल फटे, दे धरती को फाड़ |
दे धरती को फाड़, रोड पर झन्झट भारी |
रेल बम्ब विस्फोट, भुखमरी सी बीमारी |
कह रविकर कविराय, विवाहित छड़े हड़-बड़े |
लिविन रिलेशन ढेर,  देखिये अहम् आंकड़े || 

रुको मुझे बहस करना है !


तेरे कंधे पर रखी, है जब से बन्दूक |
डुबकी यमुना में लगे, मोहन मन मुख मूक |
मोहन मन मुख मूक , चूक पर चूक करे है |
बैठ कालिया नाग, ग्वाल जन धेनु डरे है |
करे बहस की बात, बिहस घनघोर अँधेरे |
सह रावण की लात, बुरे दिन बाकी तेरे || 

मिल जाए कुछ ...

Amrita Tanmay
Amrita Tanmay
 


चट्टानें भी दरकती, सर्द गर्म एहसास |
ढोंग दिखावा किन्तु है, रखें मुखौटा पास |
रखें मुखौटा पास, शब्द में ताकत भारी |
महायुद्ध कुछ ख़ास, मची है मारामारी |
भाव शून्य संसार, सत्य रविकर क्यूँ माने |
शब्द करे तन गील, सील जाएँ चट्टानें ||

अमल अमर-पद अमन मन, "अमर" *अबन बन अक्ष-; चर्चा मंच 981

टिप्पण-कर्ता का करूँ, अभिनन्दन आभार |
चर्चा का होता नहीं, बिन टिप्पण उद्धार |
बिन टिप्पण उद्धार, रार भी हो जाती है |
लेकिन यह तकरार, सदा मुंह की खाती है |
मिले पाठकों प्यार,  आप ही कर्ता धर्ता |
यह चर्चा संसार, बुलाता टिप्पण कर्ता || 

3 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति,,,,

    विजयादशमी की हादिक शुभकामनाये,,,
    RECENT POST...: विजयादशमी,,,

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  2. BAHUT BADHIYA JI !! SHARE KAR RAHAA HOON !!

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  3. सेतु गत काव्यात्मक टिप्पणियाँ एक से बढ़के एक -

    तेरे कंधे पे रखी है जबसे बन्दूक ,

    डुबकी यमुना में लगे ,मोहन मन मुख मूक

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