Friday 23 November 2012

रविकर यूँ मत मुंह लगा, ज्वलनशील तेज़ाब-



फ़लस्तीन बच्चों के प्रति .......

यशवन्त माथुर (Yashwant Mathur) 
 दोनों पक्षों को ख्याल करना पड़ेगा-
*धर्मान्धता *पाखण्ड से बचाना जरुरी है यह बचपन -
माँ बाप और दुश्मन में कौन हितैषी हो सकता है इनका  ??

कटती मानव नाक है, दर्दनाक यह दृश्य |
घटे धर्म की साख है, धर्म लगे अस्पृश्य |
धर्म लगे अस्पृश्य, सुनों रे *धर्मालीकी |
*धर्मध्वजी जा चेत, कर्म नहिं करो अलीकी |
बचपन मन अनजान, बमों से जान सटकती |
करो उपाय सटीक, नाक मानव की कटती ||

इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद और उसका मूल कारण ( भाग-1)

आशुतोष की कलम 

मसला युद्धों से भरा, लंबा यह संघर्ष ।
लड़ते भिड़ते हो गए, इन्हें हजारों वर्ष ।

इन्हें हजारों वर्ष, पीढियां खपती जाती ।

खप्पर भरते जाँय, कालिका भी मुस्काती।

लगे लाश अम्बार, धर्म में नफरत जीती ।

नहीं भूलते पक्ष, पुरानी बातें बीती ।  

ये दुनिया जल रही होगी

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 

कामिल काबिल हैं भरे, नीति नियम से लैस ।
प्राप्त मार्ग-दर्शन करो, नहीं दिलाओ तैस ।
नहीं दिलाओ तैस , भस्म कर देंगे क्रोधित ।
 मोर देख मत पैर, स्वयं पर हैं सम्मोहित ।
भेज रखे जब दूत,  नहीं क्यूँ सोवे गाफिल । 
 जले-बुझे जग मिटे, ढेर भेजे हैं कामिल ।।


 फांसी का भय भी नहीं, लगता अब पर्याप्त ।
त्रस्त आम-जन हो रहे, खून-खराबा व्याप्त ।
खूनखराबा व्याप्त, मरें निर्दोष करोड़ों ।
धरा चाहती शान्ति, दण्ड को नहीं मरोड़ो ।
मानवता की हार, बचे नहिं काबा काशी ।
धारदार कानून, ख़त्म क्यूँ करना फांसी ।।

अनिद्रा रोग और जेट लेग के समाधान के लिए अब ख़ास चश्मे

Virendra Kumar Sharma 

जैव घड़ी चश्मा जुड़ा, करे नियामन काज |
नहीं जेट-लेग अनिद्रा, संभव होता आज ||

हारकर भी ... !!!

सदा 

हारे नहिं जो हार कर, विजय करे वह सत्य ।
वाह वाह क्या बात है, बने सदा अधिपत्य ।।

कैक्टस के फूल

Kailash Sharma 

काँटा ने हरदम दिया, उस गुलाब का साथ । 
रविकर चाह गुलाब की, जरा बढाया हाथ ।
जरा बढाया हाथ, चुभन की पीड़ा सहता
पोछूं आंसू खून, नहीं दिल कुछ भी कहता ।
धरा धरे मरू रूप, कैक्टस से क्या घाटा ।
उगे फूल, पर कर्म, नहीं भूले वह काँटा ।।

मनमोहनजी का तो टीवी ख़राब है !!

Bamulahija dot Com 

टी वी  इनका ठीक है, लगा नहीं सेट टॉप ।
एनालाग डिजिटल हुआ, टॉप करे फ्लिप-फ्लॉप ।
टॉप करे फ्लिप-फ्लॉप, खबर मिलना ना मिलना ।
 कहे बरोबर शिंद, नया गुल है ना खिलना ।
मंहगाई से त्रस्त, करे दिक् इन्हें गरीबी ।
ऍफ़ डी आई मस्त, नया ह़ी पाए  टी वी ।।

कार्टून कुछ बोलता है- मर्ज की दवा !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 

मच्छर खच्चर हैं बड़े, अक्षर दिखते  भैस ।
बैठ गुरू करता रहा, कक्षा अन्दर ऐश ।
कक्षा अन्दर ऐश,  पढाया कितने पट्ठे ।
हथियारों से लैश, धमकते जाय  इकट्ठे ।
फिर भी उनको चैन, परेशाँ जनता रविकर ।
 करे हिफाजत शिष्य, मारते हिट से मच्छर ।।

तीखी मिर्ची असम की, खाय रहा पंजाब-रविकर


 तीखी मिर्ची असम की, खाय रहा पंजाब ।
रविकर यूँ मत मुंह लगा, ज्वलनशील तेज़ाब ।

ज्वलनशील तेज़ाब, तनिक भी गर चख लेगा ।
सी सी सू सू आह, गुलगुला गुड़ अखरेगा ।

जले सवेरे तलक, देहरी रग रग चीखी । 
बवासीर हो जाय, फिरा मुँह मिर्ची तीखी ।।

7 comments:

  1. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति

    आभार आपका

    सादर

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (25-11-2012) के चर्चा मंच-1060 (क्या ब्लॉगिंग को सीरियसली लेना चाहिए) पर भी होगी!
    सूचनार्थ...!

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  3. लाजवाब रविकर सर वाह क्या बात है बधाई स्वीकारें

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  4. बहुत सुंदर उत्कृष्ट प्रस्तुति,,,,

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  5. लाजवाब टिप्पणियाँ....आभार

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