Tuesday 16 October 2012

कौड़ी बनती अशर्फी, देता रविकर दाद



पेशे से अभियंता और दिल से कवि हूँ (बुधवार की चर्चा-1035)

ई. प्रदीप कुमार साहनी 

स्वागत है परदीप कुमार, विचार भले मन मानस छाये ।
चर्चक मंच मिले सहयोग, बड़े खुश हो हम भेंटन आये ।
मंच बड़ा यह रूप लिए बुधवार बड़ा खुबसूरत लाये ।
पाठक को नव स्वाद मिला, अति सुन्दर ब्लॉग बनाय सजाये ।। 

कार्टून कुछ बोलता है- आँखों का फर्क !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 

धक्का लगता मर्म पर, उतरे नयना शर्म ।
असरदार ये वाकिये, हैं वाकई अधर्म ।
हैं वाकई अधर्म, कुकर्मों से घबराया ।
लेकिन ऐ सरदार, फर्क तुझ पर नहिं आया ।
 कहता यह सरदार, फर्क आया है पक्का ।
घुटनों में अति दर्द, सोच को बेहद धक्का ।।

Dheerendra singh Bhadauriya 

ममतामय पावन रूप धरे, दुरगा जननी जब नेह दिखाई ।
कवि धन्य हुआ मन मंदिर में, सज के मन है करता पहुनाई ।
धरती पर शान्ति बनाय रखो, कलियान करो हे जग-माई ।
 करता रवि वंदन माँ दिल से, नवरात विशेष कृपा शुभ पाई ।।

खर्चे कम बाला नशीं, कितना चतुर दमाद ।
कौड़ी बनती अशर्फी, देता रविकर दाद ।
देता रविकर दाद, मास केवल दो बीते ।
लेकिन दुश्मन ढेर, लगा प्रज्वलित पलीते ।
कुछ भी नहीं उखाड़, सकोगे कर के चर्चे ।
करवा लूँ सब ठीक, चवन्नी भी बिन खर्चे ।
खर्चे कम बाला नशीं = वीरु भाई व्याख्या कर दें कृपया ।।

प्यार बूढ़ दिल मोंगरा, अमलताश की आग ।
 लड़की को कर के विदा, चला बुझाय चराग ।।

मत्तगयन्द सवैया  
नारि सँवार रही घर बार, विभिन्न प्रकार धरा अजमाई ।
कन्यक रूप बुआ भगिनी घरनी ममता बधु सास कहाई ।
सेवत नेह समर्पण से कुल, नित्य नयापन लेकर आई ।
जीवन में अधिकार मिले कम, कर्म सदा भरपूर निभाई ।।






अरुण निगम के ब्लॉग पर, होता वाद विवाद ।
विगत पोस्टों पर हुआ, पाठक मन क्या याद ?
पाठक मन क्या याद, सशक्तिकरण नारी का ।
बाल श्रमिक पर काव्य, करो अब दाहिज टीका
रचे सवैया खूब, लीजिये हिस्सा जम के ।
रहें तीन दिन डूब, पोस्ट पर अरुण निगम के ।।

भगवान् राम की सगी बहन की पूरी कथा - आप जानते हैं क्या ?? 
मत्तगयन्द सवैया
संभव संतति संभृत संप्रिय, शंभु-सती सकती सतसंगा ।
संभव वर्षण  कर्षण कर्षक, होय अकाल पढ़ो मन-चंगा ।

पूर्ण कथा कर कोंछन डार, कुटुम्बन फूल फले सत-रंगा ।
स्नेह समर्पित खीर करो, कुल कष्ट हरे बहिना हर अंगा ।।

जय जय भगवती शांता परम 

8 comments:

  1. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ...

    ReplyDelete
  2. बेहद सुन्दर प्रस्तुति सर बधाई

    ReplyDelete
  3. अच्‍छी प्रस्‍तुति ...

    ReplyDelete
  4. बहुत ही उम्दा प्रस्तुति | आभार आदरणीय रविकर जी |

    ReplyDelete
  5. वाह...क्या बात है रविकर जी!
    बढ़िया प्रस्तुति!

    ReplyDelete
  6. खर्चे कम बाला नशीं, कितना चतुर दमाद ।
    कौड़ी बनती अशर्फी, देता रविकर दाद ।
    देता रविकर दाद, मास केवल दो बीते ।
    लेकिन दुश्मन ढेर, लगा प्रज्वलित पलीते ।
    कुछ भी नहीं उखाड़, सकोगे कर के चर्चे ।
    करवा लूँ सब ठीक, चवन्नी भी बिन खर्चे ।
    खर्चे कम बाला नशीं = वीरु भाई व्याख्या कर दें कृपया ।।

    सत्ता का सिक्का चलता है ,
    सांसद संसद में बिकता है ,
    बे -इज्ज़त कुर्सी को पकडे है ,
    जीजे की सरकार ,
    भजमन हरी हरी .

    हाँ भाई साहब कम खर्च बाला नशीं का मतलब वाही है जो हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा का निकलता है ,.

    एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट -

    TUESDAY, 16 OCTOBER 2012
    खर्चे कम बाला नशीं, कितना चतुर दमाद-

    http://rhytooraz.blogspot.com/2012/10/blog-post_16.html#comment-form

    ReplyDelete
  7. किसके आगे हाथ पसारे , किसको सुनाये ये दुखड़ा,
    बिना दहेज के मीत न मिले, बेटी है दिल का टुकड़ा!

    हाय विधाता ये तूने कैसा, खेल अजीब दिखाया,
    दहेज में बिक रही बेटियाँ , और ये मानव काया!

    आज दहेज का रोग भयंकर , घर-घर कैसे दौड रहा,
    कितने पिता बेटी की खातिर, मरने मजबूर होरहा!

    ReplyDelete