Saturday, 9 February 2013

खड़ा ताश का महल, चले इक्के(A) पे सत्ता (7)




 सत्तावन "जो-कर" रहे,  जोड़ा बावन ताश ।
चौका (4)  दे जन-पथ महल, अट्ठा(8)-"पट्ठा" पास । 


*सिंह इज किंग  

अट्ठा(8)-"पट्ठा" पास, किंग(K) पंजा(5) से  दहला(10)
रानी(Q)नहला(9)जैक(J),  देख 
छक्का(6) मन बहला ।    

*ताजपोशी के लिए नहलाना 

-दुक्की(2) तिग्गी(3)ट्रम्प , हिला ना *पाया-पत्ता ।
खड़ा ताश का महल, चढ़े इक्के(A) पे सत्ता (7)।।
*खम्भा 

सॉफ्ट स्टेट हम नहीं सुप्रीम कोर्ट है ?



Virendra Kumar Sharma 



जिन्दे की लागत बढ़ी, हिन्दू से घबराय |
खान पान के खर्च को, अब ये रहे घटाय |
अब ये रहे घटाय, सिद्ध अपराधी था जब |
लगा साल क्यूँ सात, हुआ क्यूँ अब तक अब-तब |
वाह वाह कर रहे, तिवारी दिग्गी शिंदे |
लेकिन यह तो कहे, रखे क्यूँ अब तक जिन्दे ||



''कुछ मीठा हो जाए.............''


सरिता भाटिया 


चाक समय का चल रहा, किन्तु आलसी लेट |
लसा-लसी का वक्त है, मिस कर जाता डेट |
मिस कर जाता डेट, भेंट मिस से नहिं होती |
कंधे से आखेट, रखे सिर रोती - धोती |
बाकी हैं दिन पाँच, घूमती बेगम मयका |
मन मयूर ले नाच, घूमता चाक समय का ||

 क्या नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री होंगे ?

रणधीर सिंह सुमन 


हिन्दु बोट पर चढ़ चले, सागर-सत्ता पार |
शिल्पी नहिं नल-नील से, बटी लटी सी धार |

बटी लटी सी धार, कौन पूरे मन्सूबे |
हिन्दु शब्दश: भार,
बीच सागर में डूबे  |

अपनी ढपली राग, नजर है बड़ी खोट पर |
 है धिक्कार हजार, हिन्दु पर हिन्दु बोट पर ||



अनुशासित और अस्त-व्यस्त चर्या में कोई ज्यादा फर्क नहीं है


Prabodh Kumar Govil  
  Kehna Padta Hai/कहना पड़ता है
सीधा साधा अर्थ है, दोनों पर है दाब ।
दोनों को देना पड़े, अंत: बाह्य जवाब ।

 अंत: बाह्य जवाब, एक को समय बांधता ।
नियम होय ना भंग, समय से *साँध सांधता ।
*लक्ष्य 
अस्त-व्यस्त दूसरा, दूसरों में ही बीधा ।
डांट-डपट ले खाय, हमेशा सीधा सीधा ।।

पुत्र-वधु परिवार की कुलवधु या केवल पुत्र की पत्‍नी?


smt. Ajit Gupta 


 शादी की सारी ख़ुशी, हो जाती काफूर ।

मिलन मात्र दो देह का, रिश्ते नाते दूर ।



रिश्ते नाते दूर, क्रूर यह दुनिया वाले ।

भीड़ नहीं मंजूर, हुवे प्रिय साली साले ।



 इक दूजे से काम, बैठिये अम्मा दादी ।

अलग-थलग परिवार, हुई देहों की शादी ।।


Rajesh Kumari 

 HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR
दादी दीदा में नमी, जमी गमी की बूँद |
देख कहानी मार्मिक, लेती आँखें मूँद |
लेती आँखें मूँद, व्यस्त दुनिया यह सारी |
कभी रही थी धूम, आज दिखती लाचारी |
लेकिन जलती ज्योति, ग़मों की हुई मुनादी |
लेता चेयर थाम, प्यार से बोले दादी ||

4 comments:

  1. हिन्दु बोट पर चढ़ चले, सागर-सत्ता पार |
    शिल्पी नहिं नल-नील से, बटी लटी सी धार |

    बटी लटी सी धार, कौन पूरे मन्सूबे |
    हिन्दु शब्दश: भार, बीच सागर में डूबे |

    अपनी ढपली राग, नजर है बड़ी खोट पर |
    है धिक्कार हजार, हिन्दु पर हिन्दु बोट पर ||
    बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,

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  2. विचारणीय सूत्रों में पिरोया है आपने लिंक लिक्खाड़ को
    गौर कीजिएगा....
    गुज़ारिश : ''........तुम बदल गये हो..........''

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