विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी गांव से (दो कुंडलिया) गोरु गोरस गोरसी, गौरैया गोराटि । गो गोबर *गोसा गणित, गोशाला परिपाटि । *गोइंठा / उपला गोशाला परिपाटि, पञ्च पनघट पगडंडी । पीपल पलथी पाग, कहाँ सप्ताहिक मंडी । गाँव गाँव में जंग, जमीं जर जल्पक जोरू । भिन्न भिन्न दल हाँक, चराते रहते गोरु ॥ |
ओछी पूँजी, बड़ी दुकान, इसीलिए यह राधा नहीं नाचेगी - 3
(विष्णु बैरागी)
एकोऽहम्
*सौदायिक बिन व्याहता, करने चली सिंगार |
लेकर आई मांग कर, गहने कई उधार |
गहने कई उधार, इधर पटना पटनायक |
खानम खाए खार, समझ ना पावे लायक |
बिन हाथी के ख़्वाब, सजाया हाथी हौदा |
^नइखे खुद में ताब, बड़ा मँहगा यह सौदा ||
*स्त्री-धन
^ नहीं
*सौदायिक बिन व्याहता, करने चली सिंगार |
लेकर आई मांग कर, गहने कई उधार |
गहने कई उधार, इधर पटना पटनायक |
खानम खाए खार, समझ ना पावे लायक |
बिन हाथी के ख़्वाब, सजाया हाथी हौदा |
^नइखे खुद में ताब, बड़ा मँहगा यह सौदा ||
*स्त्री-धन
^ नहीं
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जे बात गुरुवार | आभार
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार26/2/13 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है
ReplyDeleteगोरु गोरस गोरसी, गौरैया गोराटि ।
ReplyDeleteगो गोबर *गोसा गणित, गोशाला परिपाटि ।
गोशाला परिपाटि, पञ्च पनघट पगडंडी ।
पीपल पलथी पाग, कहाँ सप्ताहिक मंडी ।
गाँव गाँव में जंग, जमीं जर जल्पक जोरू ।
भिन्न भिन्न दल हाँक, चराते रहते गोरु ॥ लाजबाब,,,,
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ReplyDeleteबहुत गजब बहुत अच्छी रचना आन्नद मय करती रचना
आज की मेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू