तीन कुण्डलिया छंद –
अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)
पोस्ट-मार्टम शब्द का, लब मतलब मत तलब | बलम मलब तल तक खलब, दृष्टि निगम की अजब
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पुतले बावन कार्ड के, इक जोकर पा जाय ।
सत्ता-तिर्यल पायके, ठगे कार्य-विधि-न्याय ।
ठगे कार्य-विधि-न्याय, किंग बेगम के गुल्लू ।
दिग्गी छक्के फोर, बनाते घूमे उल्लू ।
काला सा ला देख, करा ले शो तो पगले ।
जीतें इक्के तीन, हार जाएँ सब पुतले ।।
भारत स्वाभिमान दिवस
बड़ी बड़ी बाड़ी खड़ी, छोटे छोटे लोग | संसाधन सौ फीसदी, कर लेते उपभोग | कर लेते उपभोग, बचाते कूड़ा-करकट | लेते उन्हें बटोर, कबाड़ी कितने हलकट | नई व्यवस्था देख, घूमते लेकर गाड़ी | रहे जीविका छीन, पढ़े ये बड़े कबाड़ी || |
" ढपोरशंख ......"
Amit Srivastava
पोर पोर अवगुण भरा, बड़ी-कड़ी है खाल | ढप ढप ढंग ढपोर सा, बोली मधुर निकाल | बोली मधुर निकाल, मांग दुगुनी करवाते | चलते रहते चाल, कभी भी दे नहिं पाते | रविकर शंख ढपोर, फेंक जल में बस यूं ही | अमित आत्मिक चाह, पाय उद्यम से तू ही || |
Virendra Kumar Sharma
अफसर-गुरु जब भी बने, गाजी बाबा शिष्य | फांसी पर लटके सही, निश्चित तभी भविष्य | निश्चित तभी भविष्य, सताए बीबी बच्चे | नहीं सिखाते कभी, धर्म दुनिया के सच्चे | ब्रेन-वाश हो जाय, आय जब कभी कुअवसर | देश-धर्म को भूल, घात कर जाते अफसर || जिन्दे की लागत बढ़ी, हिन्दू से घबराय | खान पान के खर्च को, अब ये रहे घटाय | अब ये रहे घटाय, सिद्ध अपराधी था जब | लगा साल क्यूँ सात, हुआ क्यूँ अब तक अब-तब | वाह वाह कर रहे, तिवारी दिग्गी शिंदे | लेकिन यह तो कहे, रखे क्यूँ अब तक जिन्दे || |
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
आलिंगन आँगन लगन, मन लिंगार्चन जाग | आलिंगी आली जले, आग लगाता फाग || आलिंगी = आलिंगन करने वाला आली = सखी |
कुल्हड़ की चाय!
मनोज कुमार
विचार -
कूट कूट कर है भरे, आत्मीय श्रीमान | प्यार धर्म विश्वास कुल, लेकिन कर्म प्रधान | लेकिन कर्म प्रधान, खेल फ़ुटबाल सरीखे | ब्रिज, बीड़ी, कप, चाय, मस्त पूजा में दीखे | बढ़िया आबो-हवा, बही अन्दर जो बाहर | छोटा कुल्हड़ भरे, जोश खुब कूट कूट कर || |
आलिंगन आँगन लगन, मन लिंगार्चन जाग |
ReplyDeleteआलिंगी आली जले, आग लगाता फाग ||
बहुत खूब,,,,,रविकर जी ,,,क्या बात है
RECENT POST... नवगीत,
शुक्रिया रविकर भाई !आपने पोस्ट का वजन बढाया .उसे नै परवाज़ दी है .
ReplyDeleteकृपया पोस्ट का संशोधित रूप ज़रूर पढ़ें .आपकी कुंडली के अलावा उसमें और भी बहुत कुछ जोड़ा गया है .आपकी कुंडली पोस्ट की जान बन गई है .
ReplyDeleteपोर पोर अवगुण भरा, बड़ी-कड़ी है खाल |
ReplyDeleteढप ढप ढंग ढपोर सा, बोली मधुर निकाल |
बोली मधुर निकाल, मांग दुगुनी करवाते |
चलते रहते चाल, कभी भी दे नहिं पाते |
रविकर शंख ढपोर, फेंक जल में बस यूं ही |
अमित आत्मिक चाह, पाय उद्यम से तू ही ||
बहुत सुन्दर रविकर भाई .रस घोल देते हो फिजां में .
रविकर भाई आपकी कुंडलीकृत काव्यात्मक रूपकात्मक टिप्पणियाँ ब्लॉग जगत की शान और मान दोनों हैं .आभार आपका .
ReplyDeleteरविकर भाई आपकी कुंडलीकृत काव्यात्मक रूपकात्मक टिप्पणियाँ ब्लॉग जगत की शान और मान दोनों हैं .आभार आपका .
ReplyDeleteरविकर भाई आपकी कुंडलीकृत काव्यात्मक रूपकात्मक टिप्पणियाँ ब्लॉग जगत की शान और मान दोनों हैं .आभार आपका .
ReplyDeleteरविकर भाई आपकी कुंडलीकृत काव्यात्मक रूपकात्मक टिप्पणियाँ ब्लॉग जगत की शान और मान दोनों हैं .आभार आपका .स्पेम में से निकालें टिप्पणियाँ .
ReplyDeleteरविकर जी आपकी रचनाएं पढ़ कर बहुत अच्छा लगता है |
ReplyDeleteआशा