Madan Mohan Saxena
उच्चस्तर पर सम्पदा, रहे भद्रजन लूट ।
संचित जस-तस धन करें, खुली मिली है छूट । खुली मिली है छूट, बटे डीरेक्ट कैश अब । मनरेगा से वोट, झपटता पंजा सरबस । लेकिन मध्यम वर्ग, गिरे गश खा कर रविकर । मंहगाई-कर जोड़, छुवें दोनों उच्चस्तर ॥ |
कहते अपने पक्ष की, पंडित मुल्ला शेख |
लोटपोट होते रहे, शगुन अपशगुन देख | शगुन अपशगुन देख, बुराई करते खंडित | अच्छाई इक पाय, करे हैं महिमा मंडित | अपना अपना धर्म, मर्म में लेकर रहते | करते किन्तु कुकर्म, पक्ष एकल ही कहते || |
भाग-4
जन्म-कथा सृंगी जन्मकथा
रिस्य विविन्डक कर रहे, शोध कार्य संपन्न ।
विषय परा-विज्ञान मन, औषधि प्रजनन अन्न । विकट तपस्या त्याग तप, इन्द्रासन हिल जाय । तभी उर्वशी अप्सरा, ऋषि सम्मुख मुस्काय । |
खोया खील खमीर खस, खंडसारी खटराग |
खंड्पूरी खंडरा ख़तम, खखरा खेले फाग | (चन्द्र-विन्दु हैं) खखरा खेले फाग, खाय खाँटी मंहगाई |
घर घर *रागविवाद, टैक्स-दानव मुस्काई |
*झगडा
खुद का सारोकार, पर्व त्यौहार विलोया ||
ठगे गए हैं आम, स्वाद जीवन का खोया || खोया = दूध से तैयार मावा खील = भुना हुआ धान / लावा खमीर = मिठाई बनाने में प्रयुक्त होता है-खट्टा पदार्थ खस= सुगंधिंत जड़ खंडसारी = देशी चीनी खटराग =व्यर्थ की वस्तुवें / सामग्री खंड्पूरी = मेवा और शक्कर भरी पूरी खंडरा = बेसन से बना तेल में छाना हुआ पकवान खखरा = चावल बनाने का बड़ा पात्र / छिद्रमय नोट: "खट राग" दो बार आया है- |
रविकर भाई ,कल दोपहर बाद तीन बजे से इंटरनेट से अलग रहे .इसलिए बाद दोपहर तीन बजे आज जब संपर्क जुड़ा कार्य भार की गफलत में आपकी नवीनतम टिपण्णी हमसे बहिष्कृत हो गई जिसमें आपने शुक्रवार के चर्चा मंच में इस पोस्ट
ReplyDeleteओलिव आइल का मायावी संसार और हकीकतको शामिल करने की इत्तला दी थी .हम शर्मिंदा हैं अपने किए पर .कृपया दोबारा निमंत्रण देवें ,खेद रहेगा हमें अपनी गफलत पर .
दर असल आज नेशनल साइंस डे है .इसका प्रतिपाद्य विषय है :GM CROPS AND FOOD SECURITY.
पहली क़िस्त हमने इसकी अभी अभी छापी है राम राम भाई पर दूसरी कल पढियेगा .
शुक्रिया .
आदर एवं नेहा से
वीरुभाई
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
बृहस्पतिवार, 28 फरवरी 2013
GM Crops and food security
नेशनल साइंस डे पर विशेष :इस बरस राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का प्रतिपाद्य रहा है
http://veerubhai1947.blogspot.in/
ReplyDeleteझुनझुना
Madan Mohan Saxena
काव्य संसार
उच्चस्तर पर सम्पदा, रहे भद्रजन लूट ।
संचित जस-तस धन करें, खुली मिली है छूट ।
खुली मिली है छूट, बटे डीरेक्ट कैश अब ।
मनरेगा से वोट, झपटता पंजा सरबस ।
लेकिन मध्यम वर्ग, गिरे गश खा कर रविकर ।
मंहगाई-कर जोड़, छुवें दोनों उच्चस्तर ॥
बढ़िया बजट प्रतिक्रिया.
कहते अपने पक्ष की, पंडित मुल्ला शेख |
ReplyDeleteलोटपोट होते रहे, शगुन अपशगुन देख |
शगुन अपशगुन देख, बुराई करते खंडित |
अच्छाई इक पाय, करे हैं महिमा मंडित |
अपना अपना धर्म, मर्म में लेकर रहते |
करते किन्तु कुकर्म, पक्ष एकल ही कहते ||
खूब सूरत .
स्पेम में गईं टिप्पणियाँ कई .सर जी .
ReplyDeleteबढ़िया!
ReplyDeleteबढ़िया !!!
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.शुक्रिया हलचल में हमारी पोस्ट शामिल करने का।
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