रश्मि शर्मा
चाक समय का चल रहा, किन्तु आलसी लेट |
लसा-लसी का वक्त है, मिस कर जाता डेट |
मिस कर जाता डेट, भेंट मिस से नहिं होती |
कंधे से आखेट, रखे सिर रोती - धोती |
बाकी हैं दिन पाँच, घूमती बेगम मयका |
मन मयूर ले नाच, घूमता चाक समय का ||
लसा-लसी का वक्त है, मिस कर जाता डेट |
मिस कर जाता डेट, भेंट मिस से नहिं होती |
कंधे से आखेट, रखे सिर रोती - धोती |
बाकी हैं दिन पाँच, घूमती बेगम मयका |
मन मयूर ले नाच, घूमता चाक समय का ||
सॉफ्ट स्टेट हम नहीं सुप्रीम कोर्ट है ?
Virendra Kumar Sharma
अफसर-गुरु जब भी बने, गाजी बाबा शिष्य | फांसी पर लटके सही, निश्चित तभी भविष्य | निश्चित तभी भविष्य, सताए बीबी बच्चे | नहीं सिखाते कभी, धर्म दुनिया के सच्चे | ब्रेन-वाश हो जाय, आय जब कभी कुअवसर | देश-धर्म को भूल, घात कर जाते अफसर || जिन्दे की लागत बढ़ी, हिन्दू से घबराय | खान पान के खर्च को, अब ये रहे घटाय | अब ये रहे घटाय, सिद्ध अपराधी था जब | लगा साल क्यूँ सात, हुआ क्यूँ अब तक अब-तब | वाह वाह कर रहे, तिवारी दिग्गी शिंदे | लेकिन यह तो कहे, रखे क्यूँ अब तक जिन्दे || |
" ढपोरशंख ......"
Amit Srivastava
पोर पोर अवगुण भरा, बड़ी-कड़ी है खाल |
ढप ढप ढंग ढपोर सा, बोली मधुर निकाल |
बोली मधुर निकाल, मांग दुगुनी करवाते |
चलते रहते चाल, कभी भी दे नहिं पाते |
रविकर शंख ढपोर, फेंक जल में बस यूं ही |
अमित आत्मिक चाह, पाय उद्यम से तू ही ||
आगे देखिए "मयंक का कोना"
हुआ खुदा के फजल से, अफजल काम तमाम |
सुर बदले हैं सुबह के, जैसे कर्कश शाम | जैसे कर्कश शाम, हुआ बदला क्या पूरा | बाकी कितने नाम, काम है अभी अधूरा | व्यापारी मीडिया, आज कर बढ़िया सौदा | इन्तजार में लीन, जले कब और घरौंदा || |
भारत स्वाभिमान दिवस
बड़ी बड़ी बाड़ी खड़ी, छोटे छोटे लोग |
संसाधन सौ फीसदी, कर लेते उपभोग |
कर लेते उपभोग, बचाते कूड़ा-करकट |
लेते उन्हें बटोर, कबाड़ी कितने हलकट |
नई व्यवस्था देख, घूमते लेकर गाड़ी |
रहे जीविका छीन, पढ़े ये बड़े कबाड़ी ||
बड़ी बड़ी बाड़ी खड़ी, छोटे छोटे लोग |
संसाधन सौ फीसदी, कर लेते उपभोग |
कर लेते उपभोग, बचाते कूड़ा-करकट |
लेते उन्हें बटोर, कबाड़ी कितने हलकट |
नई व्यवस्था देख, घूमते लेकर गाड़ी |
रहे जीविका छीन, पढ़े ये बड़े कबाड़ी ||
क्या नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री होंगे ?
रणधीर सिंह सुमन
हिन्दु बोट पर चढ़ चले, सागर-सत्ता पार |
शिल्पी नहिं नल-नील से, बटी लटी सी धार | बटी लटी सी धार, कौन पूरे मन्सूबे | हिन्दु शब्दश: भार, बीच सागर में डूबे |
अपनी ढपली राग, नजर है बड़ी खोट पर |
है धिक्कार हजार, हिन्दु पर हिन्दु बोट पर || |
"आलिंगन उपहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
आलिंगन आँगन लगन, मन लिंगार्चन जाग |
आलिंगी आली जले, आग लगाता फाग ||
आलिंगी = आलिंगन करने वाला
आली = सखी
अरुन शर्मा "अनंत"
पहली पहली मर्तबा, मर्तबान मकरंद |
छाये चर्चा मंच पर, ले बासंतिक छंद | ले बासंतिक छंद, बड़ी श्रृंगारिक आकृति | मदनोत्सव रति रूप, करे जड़-चेतन जागृति | स्वागत स्वागत अरुण, छटा रविकरी रुपहली | छाया रजत-प्रकाश, मुबारक चर्चा पहली ||
शिव सा चर्चामंच यह, करता है विषपान ।
इसीलिए इस जगत में, अव्वल है श्रीमान ।
अव्वल है श्रीमान, कंठ नीला पड़ जाता ।
हास्य-व्यंग्य-श्रृंगार, जहर मद से गुस्साता ।
मस्तक शीतल रहे, शूल से हो ना हिंसा ।
सिर पर सजे मयंक, तभी तो लगता शिव सा ।।
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कुल्हड़ की चाय!
मनोज कुमार
विचार -
कूट कूट कर है भरे, आत्मीय श्रीमान |
प्यार धर्म विश्वास कुल, लेकिन कर्म प्रधान |
लेकिन कर्म प्रधान, खेल फ़ुटबाल सरीखे |
ब्रिज, बीड़ी, कप, चाय, मस्त पूजा में दीखे |
बढ़िया आबो-हवा, बही अन्दर जो बाहर |
छोटा कुल्हड़ भरे, जोश खुब कूट कूट कर ||
रानी(Q)नहला(9)जैक(J), देख छक्का(6) मन बहला-
सत्तावन जो कर रहे, जोड़ा बावन ताश ।
चौका (4) दे जन-पथ महल, *अट्ठा(8) पट्ठा पास । सत्तावन=ग्रुप ऑफ़ मिनिस-- अट्ठा= कूट-नैतिक सलाह---
पट्ठा = जवान-लड़का सिंह इज किंग
अट्ठा(8) पट्ठा पास, किंग(K) पंजा(5) से दहला(10)। रानी(Q)नहला(9)जैक(J), देख छक्का(6) मन बहला । नहला=ताजपोशी के लिए नहलाना दुक्की(2) तिग्गी(3)ट्रम्प, हिला ना *पाया-पत्ता ।
खड़ा ताश का महल, चढ़े इक्के(A) पे सत्ता (7)।।
*खम्भा
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तीन कुण्डलिया छंद –
अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)
पोस्ट-मार्टम शब्द का, लब मतलब मत तलब |
बलम मलब तल तक खलब, दृष्टि निगम की अजब ||
बलम मलब तल तक खलब, दृष्टि निगम की अजब ||
बढ़िया प्रस्तुति!
ReplyDeleteअरे वाह...!
ReplyDeleteहमारी पोस्ट को भी टिपिया दिया...!
आभार!
बढिया लिंक्स
ReplyDeleteमुझे स्थान देने के लिए आभार
लिंक-लिक्खाड़ पर जब भी मेरी रचना शामिल होती है....आनंद आ जाता है...शुक्रिया...
ReplyDeleteसभी लिक अच्छे लगे..
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती खासकर आपके टिप्पड़ी देने का अंदाज निराला है,सादर आभार।
ReplyDeleteवाह, अच्छे लिंक्स
ReplyDeleteबहुत खूब कुण्डलियाँ रची हैं कुंडली गर ने .शुक्रिया राम राम भाई के लिए .ई मेल चेक करें अपनी .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-02-2013) के चर्चा मंच-११५२ (बदहाल लोकतन्त्रः जिम्मेदार कौन) पर भी होगी!
सूचनार्थ.. सादर!