देख के इन कवियों की भाषा , आँख चुराएं मेरे गीत -सतीश सक्सेना
सतीश सक्सेना
ठिठुर ठिठुर कर दे रहा, किश्तों में वो जान |
समय सारणी बदलती, आरुणि आज्ञा मान |
आरुणि आज्ञा मान, जला के गुरुवर हीटर |
ताप रहे हैं आग, बैठ आश्रम के भीतर |
परम्परा का पक्ष, आज इक तरफा रविकर |
है गुरुवर की मौज, शिष्य हैं ठिठुर ठिठुर कर ||
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बेलेन्टाइन पर हुआ, बेलन बेला छूछ | डाक्टर साहब ऐंठते, अपनी छूछी मूँछ | अपनी छूछी मूँछ, आज मैडम ना ऐंठी | रोज रोज की बात, प्रतीक्षा करती बैठी | लेकिन मित्र दराल, कृष्ण नहिं अस्त्र उठाये | ऊँच नीच गर होय, वहीँ चिमटा ले धाये || | रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) मेला कर है कुम्भ पर, कर लेती है रेल | इंतजाम हो यान का, दे सब्सिडी धकेल | दे सब्सिडी धकेल , नहीं पैदल जायेंगे | वायु-यान का टिकट, आज ही कटवाएँगे | कट जायेगी नाक, करे सरकार झमेला | उधर मिले सब्सिडी, टैक्स ले लेता मेला || |
दिलबाग विर्क
म्हारा हरियाणा
तड़पाती तकलीफ तो, तड़-पड़ पाती चैन | दिल बाग़ बाग़ है पर इधर, तड़प तड़प कुल रैन | तड़प तड़प कुल रैन, मान लो मिल ही जाती | लड़ा लड़ा दो नैन, रैन यह देह थकाती | हट जाता फिर ख्याल, याद भी आ ना पाती | इसीलिए खुशहाल, रहूँ जब तू तडपाती || |
ताऊ और ताई का वेलेंटाईन डे....
सेना भी पीछे हटे, डटे डेट पर जान | ताऊ ताई जान इक, ताई बड़ी महान | ताई बड़ी महान, पकड़ती हैं चिमटे से | करती छटपट जान, देह दो भाग बटे से | लेकिन ताऊ ठान, रहे दे उनको ठेना | ठना-ठनी घनघोर, पिटे सीधे सक्सेना || |
कार्टून कुछ बोलता है- भैस की औकात !
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
कैसा भैंसा किस तरफ, दाएँ बाएँ बोल | दृष्टि-दोष जग को हुआ, लगता किसका मोल | लगता किसका मोल, लगे दोनों ही तगड़े | नीयत जाए डोल, कहीं होवे ना झगड़े | राम राम हे मित्र, मिले गर ग्राहक ऐसा | बिना मोल बिक जाय, स्वयं से रविकर भैंसा | |
रणधीर सिंह सुमन
निगरानी कोई नहीं, सोई सी सरकार । कर्म छिनाला हो रहा, इक दलाल दरकार । इक दलाल दरकार, करोड़ों हैं गरीब पर । कर करोड़पति डील, रोज ही करें कलम सर । रही हाथ में खेल, खिला जिंदल अम्बानी । लेते माल बटोर, घूर की हो निगरानी ।। |
"दो मुक्तक" (डॉ.रूपचन्द्र सास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
देख किनारों को लगे, मिलना है बेकार |
जल जाएगा उड़ सकल, जो जाए उस पार |
जो जाए उस पार, रूप का सतत आचमन |
यह मुक्तक नवनीत, बाँचते दुर्जन सज्जन |
ऐसे ही है ठीक, दूर ही रहना प्यारों |
बना रहे अस्तित्त्व, करो उपकार किनारों ||
पाप का भर के घडा ले हाथ पर,
पार्टी निश्चय टिकट दे हाथ पर।।
शौक से दुनिया दलाली खा रही-
हाथ धर कर बैठ मत यूं हाथ पर । ।
जब धरा पे है बची बंजर जमीं--
बीज सरसों का उगा ले हाथ पर ।।
हाथ पत्थर के तले जो दब गया,
हाथ जोड़ो पैर हाथों हाथ पर
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बदबू आ रही है मनमोहन सरकार से ...
महेन्द्र श्रीवास्तव
लेकर बैठा मौनव्रत, हालत बड़ी विचित्र |
वीर आज तस्वीर के, असरदार इक चित्र |
असरदार इक चित्र , करे जनता नित थू थू |
करता है बर्दाश्त, घुटालों की क्यूँ बदबू |
बोलो तो सरदार, बता आखिर क्या चक्कर |
पड़े रोज ही मार, मौनव्रत बैठा लेकर ||
बिल्ली के गले में घंटी बांधे
G.N.SHAW
सरकारी अधिकारियों, नेताओं रंगदार |
ठेकेदारों एक्टरों, उद्यमियों पर खार |
उद्यमियों पर खार, मगर सरकार करे क्यूँ |
कितने अरब हजार, घरों में भरे धरे यूँ |
हो जाएँ बेकार, नहीं होगी हुशियारी |
काला धन का जोर, मिले फिर पद सरकारी ||
हेलिकॉप्टर घोटाले में वाजपेयी का नाम
Virendra Kumar Sharma
ram ram bhai
चुप्पा रहता मौन फिर, जब की है दरकार |
मामा-क्वात्रोची नहीं, यह कनिष्क-सरकार |
यह कनिष्क-सरकार, बचा ले सी बी आई |
सौदे की शुरुवात, करे क्यूँकर बाजपाई |
आयेंगे ना बाज, फूल कर शासन कुप्पा |
भाजप पर कुलदोष, बनेगा पी एम् चुप्पा ||
कुण्डलिया छंद :
अरुण कुमार निगम
अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ) -
कीली ढीली हो गई, गोली गोल गुलेल |
बाज बाज आता नहीं, करे इसी से खेल |
करे इसी से खेल, चूर मद हो जाएगा |
है सिद्धांत अपेल, बड़ा कोई आयेगा |
बढ़ जाता जब जुल्म, मौत तब निश्चय लीली |
फिर आये ना काम , बाज की चोंच नुकीली ||
बदबू आ रही है मनमोहन सरकार से ...
महेन्द्र श्रीवास्तव
लेकर बैठा मौनव्रत, हालत बड़ी विचित्र |
वीर आज तस्वीर के, असरदार इक चित्र |
असरदार इक चित्र , करे जनता नित थू थू |
करता है बर्दाश्त, घुटालों की क्यूँ बदबू |
बोलो तो सरदार, बता आखिर क्या चक्कर |
पड़े रोज ही मार, मौनव्रत बैठा लेकर ||
वीर आज तस्वीर के, असरदार इक चित्र |
असरदार इक चित्र , करे जनता नित थू थू |
करता है बर्दाश्त, घुटालों की क्यूँ बदबू |
बोलो तो सरदार, बता आखिर क्या चक्कर |
पड़े रोज ही मार, मौनव्रत बैठा लेकर ||
G.N.SHAW
सरकारी अधिकारियों, नेताओं रंगदार |
ठेकेदारों एक्टरों, उद्यमियों पर खार |
उद्यमियों पर खार, मगर सरकार करे क्यूँ |
कितने अरब हजार, घरों में भरे धरे यूँ |
हो जाएँ बेकार, नहीं होगी हुशियारी |
काला धन का जोर, मिले फिर पद सरकारी ||
हेलिकॉप्टर घोटाले में वाजपेयी का नाम
Virendra Kumar Sharma
ram ram bhai
चुप्पा रहता मौन फिर, जब की है दरकार |
मामा-क्वात्रोची नहीं, यह कनिष्क-सरकार |
यह कनिष्क-सरकार, बचा ले सी बी आई |
सौदे की शुरुवात, करे क्यूँकर बाजपाई |
आयेंगे ना बाज, फूल कर शासन कुप्पा |
भाजप पर कुलदोष, बनेगा पी एम् चुप्पा ||
चुप्पा रहता मौन फिर, जब की है दरकार |
मामा-क्वात्रोची नहीं, यह कनिष्क-सरकार |
यह कनिष्क-सरकार, बचा ले सी बी आई |
सौदे की शुरुवात, करे क्यूँकर बाजपाई |
आयेंगे ना बाज, फूल कर शासन कुप्पा |
भाजप पर कुलदोष, बनेगा पी एम् चुप्पा ||
कुण्डलिया छंद :
अरुण कुमार निगम
अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ) -
कीली ढीली हो गई, गोली गोल गुलेल |
बाज बाज आता नहीं, करे इसी से खेल |
करे इसी से खेल, चूर मद हो जाएगा |
है सिद्धांत अपेल, बड़ा कोई आयेगा |
बढ़ जाता जब जुल्म, मौत तब निश्चय लीली |
फिर आये ना काम , बाज की चोंच नुकीली ||
कीली ढीली हो गई, गोली गोल गुलेल |
बाज बाज आता नहीं, करे इसी से खेल |
करे इसी से खेल, चूर मद हो जाएगा |
है सिद्धांत अपेल, बड़ा कोई आयेगा |
बढ़ जाता जब जुल्म, मौत तब निश्चय लीली |
फिर आये ना काम , बाज की चोंच नुकीली ||
बढ़िया अंदाज में सजाये है, सर जी ! आभार !
ReplyDeleteरक्षा सौदों का रहा ,क्यों काला सा इतिहास ।
ReplyDeleteसब भूले बोफोर्स को ,हेलीकाप्टर की है बात।
हेलीकाप्टर की है बात,आग इटली से लगती ।
जलता भारत देश ,आँच लाखों - करोड़ की ।
कहते कवि लोकेश ,सत्य का सूर्य अस्त है ।
घाल मेल का खेल ,दलाली जबरजस्त है ।
बेहतरीन लिंक ,
ReplyDeleteआभार रविकर जी !
बढिया लिंक्स
ReplyDeleteशुक्रिया
बहुत ही सुन्दर अंदाज में संजोये बेहतरीन लिंक्स.
ReplyDeleteबहुत खूब सूरत ,मुख्तलिफ अंदाज़ .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .
ReplyDeleteवाह ..; बेहतरीन
ReplyDeleteआभार
वाह ! बहुत खूब।
ReplyDeleteअद्भुत कला है।
कार्टून को भी शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद रविकर जी
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