Friday, 15 February 2013

जब धरा पे है बची बंजर जमीं, बीज सरसों का उगा ले हाथ पर



देख के इन कवियों की भाषा , आँख चुराएं मेरे गीत -सतीश सक्सेना


सतीश सक्सेना  



ठिठुर ठिठुर कर दे रहा, किश्तों में वो जान |
समय  सारणी बदलती, आरुणि आज्ञा मान |

आरुणि आज्ञा मान, जला के गुरुवर हीटर |
ताप रहे हैं आग, बैठ आश्रम के भीतर |

परम्परा का पक्ष, आज इक तरफा रविकर |
है गुरुवर की मौज, शिष्य हैं ठिठुर ठिठुर कर ||








बेलेन्टाइन पर हुआ, बेलन बेला छूछ |
डाक्टर साहब ऐंठते, अपनी छूछी मूँछ |
अपनी छूछी मूँछ, आज मैडम ना ऐंठी |
रोज रोज की बात, प्रतीक्षा करती बैठी |
लेकिन मित्र दराल, कृष्ण नहिं अस्त्र उठाये |
ऊँच नीच गर होय, वहीँ चिमटा ले धाये ||





My ImageAuthor रजनीश के झा (Rajneesh K Jha)



मेला कर है कुम्भ पर, कर लेती है रेल |
इंतजाम हो यान का, दे सब्सिडी धकेल |
दे सब्सिडी धकेल , नहीं पैदल जायेंगे |
वायु-यान का टिकट, आज ही कटवाएँगे |
कट जायेगी नाक, करे सरकार झमेला |
उधर मिले सब्सिडी, टैक्स ले लेता मेला ||


 दिलबाग विर्क 

 म्हारा हरियाणा
तड़पाती तकलीफ तो, तड़-पड़ पाती चैन |
दिल बाग़ बाग़ है पर इधर,  तड़प तड़प कुल रैन |
तड़प तड़प कुल रैन, मान लो मिल ही जाती |
लड़ा लड़ा दो नैन, रैन यह देह थकाती  |
हट जाता फिर ख्याल, याद भी आ ना पाती |
इसीलिए खुशहाल, रहूँ जब तू तडपाती ||


ताऊ और ताई का वेलेंटाईन डे....  

सेना भी पीछे हटे, डटे डेट पर जान |
ताऊ ताई जान इक, ताई बड़ी महान |


ताई बड़ी महान, पकड़ती हैं चिमटे से |
करती छटपट जान, देह दो भाग बटे से |


लेकिन ताऊ ठान, रहे दे उनको ठेना |
ठना-ठनी घनघोर, पिटे सीधे सक्सेना ||

कार्टून कुछ बोलता है- भैस की औकात !


पी.सी.गोदियाल "परचेत"  


कैसा भैंसा किस तरफ, दाएँ  बाएँ  बोल  |
दृष्टि-दोष जग को हुआ, लगता किसका मोल |
लगता किसका मोल, लगे दोनों ही तगड़े |
नीयत जाए डोल, कहीं होवे ना झगड़े |
राम राम हे मित्र, मिले गर ग्राहक ऐसा |
बिना मोल बिक जाय, स्वयं से रविकर भैंसा |


रणधीर सिंह सुमन 





निगरानी कोई नहीं,  सोई सी सरकार ।
कर्म छिनाला हो रहा, इक दलाल दरकार ।
इक दलाल दरकार, करोड़ों हैं गरीब पर ।
कर करोड़पति डील, रोज ही करें कलम सर ।
 रही हाथ में खेल, खिला जिंदल अम्बानी ।
लेते माल बटोर, घूर की हो निगरानी ।।

"दो मुक्तक" (डॉ.रूपचन्द्र सास्त्री 'मयंक')

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 
देख किनारों को लगे, मिलना है बेकार |
जल जाएगा उड़ सकल, जो जाए उस पार |
जो जाए उस पार, रूप का सतत आचमन  |
यह मुक्तक नवनीत,  बाँचते दुर्जन सज्जन |
ऐसे ही है ठीक, दूर ही रहना प्यारों |
बना रहे अस्तित्त्व, करो उपकार किनारों ||

पाप का भर के घडा ले हाथ पर,
पार्टी निश्चय टिकट दे हाथ पर।।

शौक से दुनिया दलाली खा रही- 
हाथ धर कर बैठ मत यूं हाथ पर । ।

जब धरा पे है बची बंजर जमीं--
बीज सरसों का उगा ले हाथ पर ।।

हाथ पत्थर के तले जो दब गया, 
हाथ जोड़ो पैर हाथों हाथ पर 


बदबू आ रही है मनमोहन सरकार से ...


महेन्द्र श्रीवास्तव  

लेकर बैठा मौनव्रत, हालत बड़ी विचित्र |
वीर आज तस्वीर के, असरदार इक चित्र |
असरदार इक चित्र , करे जनता नित थू थू |
करता है बर्दाश्त, घुटालों की क्यूँ बदबू |
बोलो तो सरदार, बता आखिर क्या चक्कर |
पड़े रोज ही मार, मौनव्रत बैठा लेकर ||

बिल्ली के गले में घंटी बांधे

G.N.SHAW  
 

सरकारी अधिकारियों, नेताओं रंगदार |
ठेकेदारों एक्टरों, उद्यमियों पर खार |
उद्यमियों पर खार, मगर सरकार करे क्यूँ |
कितने अरब हजार, घरों में भरे धरे यूँ |
हो जाएँ बेकार, नहीं होगी हुशियारी |
काला धन का जोर, मिले फिर पद सरकारी || 

 ram ram bhai
चुप्पा रहता मौन फिर,  जब की है दरकार |
मामा-क्वात्रोची नहीं, यह कनिष्क-सरकार |


यह कनिष्क-सरकार, बचा ले सी बी आई |
सौदे की शुरुवात, करे क्यूँकर बाजपाई |


आयेंगे ना बाज, फूल कर शासन कुप्पा |
भाजप पर कुलदोष, बनेगा पी एम् चुप्पा ||

कुण्डलिया छंद :

अरुण कुमार निगम  
 अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ) -

 कीली ढीली हो गई, गोली गोल गुलेल |
बाज बाज आता नहीं, करे इसी से खेल |
करे इसी से खेल, चूर मद हो जाएगा |
है सिद्धांत अपेल, बड़ा कोई आयेगा |
बढ़ जाता जब जुल्म, मौत तब निश्चय लीली |
फिर आये ना काम , बाज की चोंच नुकीली ||


9 comments:

  1. बढ़िया अंदाज में सजाये है, सर जी ! आभार !

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  2. रक्षा सौदों का रहा ,क्यों काला सा इतिहास ।
    सब भूले बोफोर्स को ,हेलीकाप्टर की है बात।
    हेलीकाप्टर की है बात,आग इटली से लगती ।
    जलता भारत देश ,आँच लाखों - करोड़ की ।
    कहते कवि लोकेश ,सत्य का सूर्य अस्त है ।
    घाल मेल का खेल ,दलाली जबरजस्त है ।

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  3. बेहतरीन लिंक ,
    आभार रविकर जी !

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  4. बहुत ही सुन्दर अंदाज में संजोये बेहतरीन लिंक्स.

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  5. बहुत खूब सूरत ,मुख्तलिफ अंदाज़ .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .

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  6. वाह ..; बेहतरीन
    आभार

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  7. वाह ! बहुत खूब।
    अद्भुत कला है।

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  8. कार्टून को भी शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद रविकर जी

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