दुर्गा यह नवजात है, सबला सिंह सवार |
हर विपदा का कर सके, निश्चय ही प्रतिकार | निश्चय ही प्रतिकार, सजा दरबार देखिये | करे शत्रु संहार, भक्त हित प्यार देखिये | रक्षो कन्या भ्रूण, कहीं ना बोले मुर्गा | मानवता की रात, करे लम्बी यह दुर्गा || |
जीवमातृका पञ्च कन्या तो बचा -
जीवमातृका वन्दना, माता के सम पाल |
जीवमंदिरों को सुगढ़, करती सदा संभाल ||
शिव और जीवमातृका
धनदा नन्दा मंगला, मातु कुमारी रूप |
बिमला पद्मा वला सी, महिमा अमिट-अनूप ||
भ्रूण-हत्या
माता करिए तो कृपा, सातों में से एक |
भ्रूणध्नी माता-पिता, देते असमय फेंक ||
भ्रूण-हत्या
कुन्ती तारा द्रौपदी, लेशमात्र न रंच |
आहिल्या-मन्दोदरी , मिटती कन्या-पञ्च |
पन्च-कन्या
सातों माता भी नहीं, बचा सकी गर पाँच |
सबकी महिमा पर पड़े, मातु दुर्धर्ष आँच |
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जैसे आलू-चने में, नमक मसाला मिर्च |
नमक-मिर्च लगती बहुत, मकु काटे ज्यूँ *किर्च | *नुकीली छोटी तलवार मकु काटे ज्यूँ *किर्च, सिरजता भूखा बन्दा | भरे हुवे जो पेट , उन्हें तो लगना गन्दा | बेचारा कविराज, विरादर जैसे तैसे | कर लेते बर्दाश्त, पढो रविकर को जैसे || |
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
चुप रहने का शपथ ले, करूं खत्म सन्ताप |
पत्नी जितना भी बके, रहूँ पड़ा चुपचाप | रहूँ पड़ा चुपचाप, मानता रविकर आज्ञा | करूँ ना कोई पाप, तोड़ कर बड़ी प्रतिज्ञा | रही ख़ुशी से बिता, पार्टी शॉपिंग गहने | लेती पूरा बोल, हमें कहती चुप रहने || |
जती जात्रा पर चला, छोड़-छाड़ कर मोह |
उलझे या सुलझे सिरा, क्या लेना अब टोह | क्या लेना अब टोह, हुआ रविकर आरोही | करे भोग से द्रोह, आज अपना है वो ही | |
ये जीवित पुतले नुमा आदमी कौन है ?प्रधानमंत्री है?
पुतले बावन कार्ड के, इक जोकर पा जाय ।
सत्ता-तिर्यल पायके, ठगे कार्य-विधि-न्याय ।
ठगे कार्य-विधि-न्याय, किंग बेगम के गुल्लू ।
दिग्गी छक्के फोर, बनाते घूमे उल्लू ।
काला सा ला देख, करा ले शो तो पगले ।
जीतें इक्के तीन, हार जाएँ सब पुतले ।।
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मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता-6
भाग-6
रावण का गुप्तचर दोहे असफल खर की चेष्टा, हो बेहद गमगीन | लंका जाकर के खड़ा, मुखड़ा दुखी मलीन || रावण बरबस पूछता, क्यूँ हो बन्धु उदास | कौशल्या के गर्भ का, करके सत्यानाश || |
सशक्त रूपकात्मक अभिव्यक्ति सर जी .जबरजस्त .
ReplyDeleteसशक्त रूपकात्मक अभिव्यक्ति सर जी .जबरजस्त .
ReplyDeleteमाता करिए तो कृपा, सातों में से एक |
भ्रूणध्नी माता-पिता, देते असमय फेंक ||
भ्रूण-हत्या
कुन्ती तारा द्रौपदी, लेशमात्र न रंच |
आहिल्या-मन्दोदरी , मिटती कन्या-पञ्च |
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगलवार 12/213 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है
ReplyDeleteबुत खूब रविकर जी
ReplyDelete#links
हमेशा की तरह लाजवाब !
ReplyDeleteअनुपम लिंक्स संयोजन ....
ReplyDeleteआभार
बहुत बहुत आभार।
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रविष्टि रविकर जी
ReplyDeletegreat links..thanks.
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