Saturday, 16 February 2013

इटली की सरकार का, बार बार आभार-


समसामयिक कुण्डलियाँ

Lokesh Singh 
इटली की सरकार का, बार बार आभार |
लाली लोलुप-लाल से,
भ्रमित लोक-व्यवहार |

भ्रमित लोक-व्यवहार, *लोलिनी मौन बैठती |
घोटाले-घंटाल, चाबियाँ वही ऐंठती |

कठपुतले मक्कार, बना **मक्के दी इडली |
डोसा सरसों साग, भेजते रहते इटली ||
* चंचल स्त्री
**------

G.N.SHAW  

 

सरकारी अधिकारियों, नेताओं रंगदार |
ठेकेदारों एक्टरों, उद्यमियों पर खार |
उद्यमियों पर खार, मगर सरकार करे क्यूँ |
कितने अरब हजार, घरों में भरे धरे यूँ |
हो जाएँ बेकार, नहीं होगी हुशियारी |
काला धन का जोर, मिले फिर पद सरकारी ||


चॉपर अब तो तोपें कल, पश्चिम से होती हलचल 

पश्चिम से होती हलचल ।
ताप गिरे दिन-रात का, ठंडी बहे बयार ।
ओले पत्थर गिर रहे, बारिस देती मार ।।
सागर के मस्तक पर बल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।

शीत-युद्ध सीमांतरी, हो जाता है गर्म ।
चलते गोले गोलियां, शत्रु छेदता मर्म ।।
 काटे सर करके वह छल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।


उड़न खटोला चाहिए, सत्ता मद में चूर ।
बटे दलाली खौफ बिन, खरीदार मगरूर ।
चॉपर अब तो तोपें कल ।
पश्चिम से होती हलचल ।।


अरुण कुमार निगम  


  कीली ढीली हो गई, गोली गोल गुलेल |


बाज बाज आता नहीं, करे इसी से खेल |


करे इसी से खेल, चूर मद हो जाएगा |


है सिद्धांत अपेल, बड़ा कोई आयेगा |


बढ़ जाता जब जुल्म, मौत तब निश्चय लीली |


फिर आये ना काम , बाज की चोंच नुकीली ||



डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 

देख किनारों को लगे, मिलना है बेकार |

जल जाएगा उड़ सकल, जो जाए उस पार |

जो जाए उस पार, रूप का सतत आचमन  |

यह मुक्तक नवनीत,  बाँचते दुर्जन सज्जन |

ऐसे ही है ठीक, दूर ही रहना प्यारों |

बना रहे अस्तित्त्व, करो उपकार किनारों ||

 ताऊ की कर बन्दगी, चाची चरणस्पर्श |
गुरुओं की पूजा करा, कई वर्ष दर वर्ष |


कई वर्ष दर वर्ष, हर्ष के दिन आयेंगे  |
फोलोवर सैकड़ों, टिप्पणी दे जायेंगे |


घूम-घाम कर देख, रविकर बड़ा  पकाऊ |
राम राम श्रीमान, ढूँढ़ लो  चाची ताऊ ||

 जो फ़ोल्लोवेर मिल जाएँ
Tushar Raj Rastogi 
 तमाशा-ए-जिंदगी 

खेमेबाजी चरम पर, तगड़ा तम्बू खोज ।
 रविकर से दूरी बना, आ जाता है रोज ।

आ जाता है रोज, नहीं दस टिप्पण पाता ।
कर नौ सौ अनुसरण, समर्थक सौ पहुँचाता ।

या तो चिंता छोड़, रचे रविकर ज्यों रचना ।

स्वान्त: रचो सुखाय, लालसा से तू बचना ।।



यादों की डिबिया में ...


Dr (Miss) Sharad Singh 


डिबिया में  सिंदूर सम, रखते  पावन भाव |
बड़े चाव से मन करे, अपना नित्य अघाव |


अपना नित्य अघाव, प्रेम ही मूल-मन्त्र है |
सब बंधन से परे, हमेशा ही स्वतंत्र है |


शब्द लिखे उन्नीस, भाव पर बीस दिखा है |
जीने का अंदाज, पुन: तू गई सिखा है ||

2 comments: