समसामयिक कुण्डलियाँ
Lokesh Singh
इटली की सरकार का, बार बार आभार |
लाली लोलुप-लाल से, भ्रमित लोक-व्यवहार | भ्रमित लोक-व्यवहार, *लोलिनी मौन बैठती | घोटाले-घंटाल, चाबियाँ वही ऐंठती | कठपुतले मक्कार, बना **मक्के दी इडली | डोसा सरसों साग, भेजते रहते इटली || * चंचल स्त्री **------ |
G.N.SHAW
सरकारी अधिकारियों, नेताओं रंगदार | ठेकेदारों एक्टरों, उद्यमियों पर खार | उद्यमियों पर खार, मगर सरकार करे क्यूँ | कितने अरब हजार, घरों में भरे धरे यूँ | हो जाएँ बेकार, नहीं होगी हुशियारी | काला धन का जोर, मिले फिर पद सरकारी || |
चॉपर अब तो तोपें कल, पश्चिम से होती हलचल
पश्चिम से होती हलचल ।
ताप गिरे दिन-रात का, ठंडी बहे बयार ।
ओले पत्थर गिर रहे, बारिस देती मार ।।
सागर के मस्तक पर बल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।
शीत-युद्ध सीमांतरी, हो जाता है गर्म ।
चलते गोले गोलियां, शत्रु छेदता मर्म ।।
काटे सर करके वह छल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।
उड़न खटोला चाहिए, सत्ता मद में चूर ।
बटे दलाली खौफ बिन, खरीदार मगरूर ।
चॉपर अब तो तोपें कल ।
पश्चिम से होती हलचल ।। |
अरुण कुमार निगम
कीली ढीली हो गई, गोली गोल गुलेल |
बाज बाज आता नहीं, करे इसी से खेल |
करे इसी से खेल, चूर मद हो जाएगा |
है सिद्धांत अपेल, बड़ा कोई आयेगा |
बढ़ जाता जब जुल्म, मौत तब निश्चय लीली |
फिर आये ना काम , बाज की चोंच नुकीली ||
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
देख किनारों को लगे, मिलना है बेकार |
जल जाएगा उड़ सकल, जो जाए उस पार |
जो जाए उस पार, रूप का सतत आचमन |
यह मुक्तक नवनीत, बाँचते दुर्जन सज्जन |
ऐसे ही है ठीक, दूर ही रहना प्यारों |
बना रहे अस्तित्त्व, करो उपकार किनारों ||
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ताऊ की कर बन्दगी, चाची चरणस्पर्श |
गुरुओं की पूजा करा, कई वर्ष दर वर्ष | कई वर्ष दर वर्ष, हर्ष के दिन आयेंगे | फोलोवर सैकड़ों, टिप्पणी दे जायेंगे | घूम-घाम कर देख, रविकर बड़ा पकाऊ | राम राम श्रीमान, ढूँढ़ लो चाची ताऊ || जो फ़ोल्लोवेर मिल जाएँ Tushar Raj Rastogi
तमाशा-ए-जिंदगी
खेमेबाजी चरम पर, तगड़ा तम्बू खोज । रविकर से दूरी बना, आ जाता है रोज । आ जाता है रोज, नहीं दस टिप्पण पाता । कर नौ सौ अनुसरण, समर्थक सौ पहुँचाता । या तो चिंता छोड़, रचे रविकर ज्यों रचना । स्वान्त: रचो सुखाय, लालसा से तू बचना ।। |
यादों की डिबिया में ...
Dr (Miss) Sharad Singh
डिबिया में सिंदूर सम, रखते पावन भाव | बड़े चाव से मन करे, अपना नित्य अघाव | अपना नित्य अघाव, प्रेम ही मूल-मन्त्र है | सब बंधन से परे, हमेशा ही स्वतंत्र है | शब्द लिखे उन्नीस, भाव पर बीस दिखा है | जीने का अंदाज, पुन: तू गई सिखा है || |
बहुत सुन्दर काव्यमयी टिप्पणियाँ।
ReplyDeleteआभार!
वाह!
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