पुत्र-वधु परिवार की कुलवधु या केवल पुत्र की पत्नी?
smt. Ajit Gupta
शादी की सारी ख़ुशी, हो जाती काफूर ।
मिलन मात्र दो देह का, रिश्ते नाते दूर ।
रिश्ते नाते दूर, क्रूर यह दुनिया वाले ।
भीड़ नहीं मंजूर, हुवे प्रिय साली साले ।
इक दूजे से काम, बैठिये अम्मा दादी ।
अलग-थलग परिवार, हुई देहों की शादी ।।
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''कुछ मीठा हो जाए.............''
सरिता भाटिया
चाक समय का चल रहा, किन्तु आलसी लेट |
लसा-लसी का वक्त है, मिस कर जाता डेट |
मिस कर जाता डेट, भेंट मिस से नहिं होती |
कंधे से आखेट, रखे सिर रोती - धोती |
बाकी हैं दिन पाँच, घूमती बेगम मयका |
मन मयूर ले नाच, घूमता चाक समय का ||
समय बिताने के लिये पढिये कुछ उपयोगी लिंक्स
vandana gupta
फुरसत ऐसे ना मिले, हरदिन कोना एक |
करते मिलकर फिक्स हम, करें काम यह नेक | करें काम यह नेक, चुने हर दिन दो रचना | करें मंच पर पोस्ट, नहीं गुरुवर को बचना | सुबह सुबह दें जोड़, यही रविकर की हसरत | चर्चा को दें मोड़, नहीं मिलनी है फ़ुरसत || |
सिर्फ़ एक चटक रंग (कहानी)
Rajesh Kumari
HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR
दादी दीदा में नमी, जमी गमी की बूँद |
दादी दीदा में नमी, जमी गमी की बूँद |
देख कहानी मार्मिक, लेती आँखें मूँद |
लेती आँखें मूँद, व्यस्त दुनिया यह सारी |
कभी रही थी धूम, आज दिखती लाचारी |
लेकिन जलती ज्योति, ग़मों की हुई मुनादी |
लेता चेयर थाम, प्यार से बोले दादी ||
"ग़ज़ल-खो चुके सब कुछ" (डॉ,रूपचन्द्र सास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
इस धरा में क्या धरा, कुछ सोच ऊंची कीजिये-
आसमाँ में आज उड़िए, स्वागता है स्वागता है ।
पाप धोने की जरुरत, आज रविकर क्या पड़ी ।
पाप का यह घड़ा आखिर, सार्थक है योग्यता है ।
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Kehna Padta Hai/कहना पड़ता है
सीधा साधा अर्थ है, दोनों पर है दाब ।
दोनों को देना पड़े, अंत: बाह्य जवाब ।
अंत: बाह्य जवाब, एक को समय बांधता ।
नियम होय ना भंग, समय से *साँध सांधता ।
*लक्ष्य
अस्त-व्यस्त दूसरा, दूसरों में ही बीधा ।
डांट-डपट ले खाय, हमेशा सीधा सीधा ।।
सीधा साधा अर्थ है, दोनों पर है दाब ।
दोनों को देना पड़े, अंत: बाह्य जवाब ।
अंत: बाह्य जवाब, एक को समय बांधता ।
नियम होय ना भंग, समय से *साँध सांधता ।
*लक्ष्य
अस्त-व्यस्त दूसरा, दूसरों में ही बीधा ।
डांट-डपट ले खाय, हमेशा सीधा सीधा ।।
क्या नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री होंगे ?
रणधीर सिंह सुमन
हिन्दु बोट पर चढ़ चले, सागर-सत्ता पार |
शिल्पी नहिं नल-नील से, बटी लटी सी धार | बटी लटी सी धार, कौन पूरे मन्सूबे | हिन्दु शब्दश: भार, बीच सागर में डूबे |
अपनी ढपली राग, नजर है बड़ी खोट पर |
है धिक्कार हजार, हिन्दु पर हिन्दु बोट पर || |
सॉफ्ट स्टेट हम नहीं सुप्रीम कोर्ट है ?
Virendra Kumar Sharma
जिन्दे की लागत बढ़ी, हिन्दू से घबराय |
खान पान के खर्च को, अब ये रहे घटाय |
अब ये रहे घटाय, सिद्ध अपराधी था जब |
लगा साल क्यूँ सात, हुआ क्यूँ अब तक अब-तब |
वाह वाह कर रहे, तिवारी दिग्गी शिंदे |
लेकिन यह तो कहे, रखे क्यूँ अब तक जिन्दे ||
खान पान के खर्च को, अब ये रहे घटाय |
अब ये रहे घटाय, सिद्ध अपराधी था जब |
लगा साल क्यूँ सात, हुआ क्यूँ अब तक अब-तब |
वाह वाह कर रहे, तिवारी दिग्गी शिंदे |
लेकिन यह तो कहे, रखे क्यूँ अब तक जिन्दे ||
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आभार रविकर जी!
ReplyDeleteआपकी टिप्पणियाँ और सुढाव अच्छे हैं!
आभार रविकर जी!
Deleteआपकी टिप्पणियाँ और सुझाव अच्छे हैं!
अजित गुप्ता का कोना
ReplyDeleteशादी की सारी ख़ुशी, हो जाती काफूर ।
मिलन मात्र दो देह का, रिश्ते नाते दूर ।
रिश्ते नाते दूर, क्रूर यह दुनिया वाले ।
भीड़ नहीं मंजूर, हुवे प्रिय साली साले ।
इक दूजे से काम, बैठिये अम्मा दादी ।
अलग-थलग परिवार, हुई देहों की शादी ।।
नित्य कर्म सा ज़रूरी हो गया है रविकर जी के यहाँ आना .फ्रेश होक जाना .
अच्छे लिंक्स सर!
ReplyDelete~सादर!!!
एक से बढ़कर एक लिनक्स --बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर
sabhi links sarahniy hai
ReplyDeleteअच्छा कलेक्शन है जी आजका
ReplyDeleteरविकर साहब , इतनी सुन्दर पंक्तियों से नवाज़ने के लिए बहुत बहुत आभार ।
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