Asha Saxena
ना ही नीचे धरा पर, ना ऊपर भगवान् |
इनको मिलनी है जगह, ना ही निकले जान | ना ही निकले जान, जिंदगी भर तडपेंगे | निश्चय ही हैवान, धरा पर पड़े सड़ेंगे | पीते रहते खून, मारकर सज्जन राही | कौन करेगा माफ़, हुई हर जगह मनाही || |
खत,जो कभी पहुँच नहीं पाए !(१)
संतोष त्रिवेदी
बैसवारी baiswari
गोला झोला में रखे , रहे याद ले घूम |
जब तब हौले से अधर, लेते गोले चूम |
लेते गोले चूम, तभी पड़ जाये डंडा|
साथी भाड़े खेल, पडूं ना लेकिन ठंडा |
रुसवाई का खौफ, किन्तु मेरा दिल भोला |
करे नहीं संतोष, गुलाबी होता गोला ||
गोला झोला में रखे , रहे याद ले घूम |
जब तब हौले से अधर, लेते गोले चूम |
लेते गोले चूम, तभी पड़ जाये डंडा|
साथी भाड़े खेल, पडूं ना लेकिन ठंडा |
रुसवाई का खौफ, किन्तु मेरा दिल भोला |
करे नहीं संतोष, गुलाबी होता गोला ||
Surendra shukla" Bhramar"5
भारत माता पालती, सच्चे धर्म सपूत |
दुष्टों की खातिर रखे, फंदे भी मजबूत | फंदे भी मजबूत, मगर वह चच्चा चाची | चांय-चांय छुछुवाय, घूमती नाची नाची | प्रावधान का लाभ, यहाँ आतंकी पाता | सत्ता यह कमजोर, करे क्या भारत माता || |
Swasti Medha को Rupal Srivastava की फ़ोटो में अंकित किया गया. — Kanpur, Uttar Pradesh में
जुडवा बहने दिख गईं, जुड़े जुड़े से गाल |
घूमें दोनों साथ ही, करती फ़िरे बवाल |
करती फ़िरे बवाल, सदा ही गाल बजाती |
रही बिगड़ती चाल, नहीं पर कभी लजाती |
करिए सर्जन अलग, ढूँढ़ता तब तक बुढवा |
हो जाए शुभ व्याह, जाँय घर दोनों जुडवा ||
घूमें दोनों साथ ही, करती फ़िरे बवाल |
करती फ़िरे बवाल, सदा ही गाल बजाती |
रही बिगड़ती चाल, नहीं पर कभी लजाती |
करिए सर्जन अलग, ढूँढ़ता तब तक बुढवा |
हो जाए शुभ व्याह, जाँय घर दोनों जुडवा ||
अरुण यह मधुमय देश बेचारा !
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
जड़ें हुईं कमजोर अति, कमल फूल यह लाल ।
भंग मिले जल में सड़े, बंजर होता ताल ।
बंजर होता ताल, ताल ठोके है हाथी ।
कमलनाल दे तोड़, भिड़ाते पंजा साथी ।
जब आपस में द्वंद्व, ताल उजड़े ही उजड़े।
गैरों का मुहताज, हुवे जब अपने हिजड़े ॥
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मेरी मोहतरमा !
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
मो को होता मोह है, मोहित अंतर मोम ।
हत री मेरी रमा हत, करे खड़े कुल रोम ।
करे खड़े कुल रोम, भयानक होती छोरी ।
हरे माल असबाब, कराके नंगा झोरी ।
लेकिन फिर भी प्यार, सदा आशीशूँ तो को ।
अंधड़ से इंसान, बनाती जो है मो को ॥
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दर्द ने हिचकियां लीं जब !!!
सदा
दीवारी सरगोशियाँ, सिसक उठी दहलीज ।
बदले रूह लिबास तो, रहे लोग क्यूँ खीज ।
रहे लोग क्यूँ खीज, छीजती जाय जिंदगी ।
हिचकी लेता दर्द, हुई जाए बेअदबी ।
रिश्तों को पहचान, नहीं हों रिश्ते भारी ।
मिलें आत्म परमात्म, मनाते चल दीवारी ॥
ज्वलंत समस्यायों को प्रस्तुत करती है आज के लिंक्स,सादर आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर टिप्पणिया है सभी!
ReplyDeleteआभार,रविकर जी !
ReplyDeleteआदरणीय गुरुदेव श्री आप धन्य हैं बहुत ही सुन्दर प्रतिउत्तर है आभार
ReplyDelete...आभार गुरुवर !
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