डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
बोगस वोटिंग हो रही, वेटिंग इक सप्ताह ।
चौदह जन तैयार मन, आह वाह हो स्वाह ।
आह वाह हो स्वाह, हवा बहती बासंती ।
आज बढ़ी उम्मीद, छाप दी एक तुरंती ।
लेकिन रविकर खिन्न, करे तन मन से फोकस ।
पाए ना फल भिन्न, होय बैलट ही बोगस ।
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madhu singh
समाकलन गम का किया, हो काया अवकलित ।
वृत्त-वृहत्तर दिख रहीं, कई कलाएं ललित ।
कई कलाएं ललित, फलित ज्योतिष विचराया ।
विगड़ गया भूगोल, फैक्टर फिर समझाया।
जोड़ जोड़ में दर्द, गुणक घातांक मारता ।
भाग भाग दुर्भाग्य, माइनस हुआ हारता ।।
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**~आओ...फिर वही पुराना गीत गुनगुनायें ...~**Anita (अनिता)
बूँद..बूँद...लम्हे....
कृष्णा चोरी में मगन, बूझे नहीं बसन्त | माखन के पीछे लगा, व्यापे नहिं रतिकन्त | व्यापे नहिं रतिकन्त, अंत तक वही छलावा | लुकना छिपना पंथ, शहर से मिला बुलावा | किन्तु भरोसा एक, मिटाए वो ही तृष्णा | छलिया भरे अनेक, किन्तु बढ़िया है कृष्णा || |
पिछड़ता भारत ..... डा श्याम गुप्त.....बेहतर है तकनीक पर, लगे कमीशन नीक । करते नित्य प्रपंच छल, दावे सकल अलीक । दावे सकल अलीक, गले ना दलिया दलहन । लगा रहे जो तेल, पूर ना पड़ता तिलहन । नीति नियम में दोष, तंत्र षड्यंत्री रविकर । खाली होता कोष, होय दिन कैसे बेहतर ।। |
कार्टून :- आज चिनार में आग लगी हैkaajal-कुमार
बैंड बजा देगी खबर, असर प्रभावी होय |
नई पीढ़ियाँ तोड़ के, देंगी धर्म बिलोय | देंगी धर्म बिलोय , अगर ऐसा ही होता | आजादी ले छीन, पुरानी पद्धति ढोता | करिए क्रमिक सुधार, राय अपनी दे जाओ | लेकिन हरगिज नहीं, जोर अपना अजमाओ | |
परसेंटेज का कर रहा, खुलकर खेल खबीस ।
ग्रोथ-रेट बस पाँच की, मिले कमीशन बीस ।
मिले कमीशन बीस, रीस मन ही मन करता ।
फिफ्टी फिफ्टी बंटे, अभी तो बहुत अखरता ।
खेत खान विकलांग, सभी का बढ़ा पेट है ।
चलो खरीदो वोट, बोल क्या ग्रोथ रेट है -
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भारतीय लोक-तंत्र
*सराजाम सारा जमा, रही सुरसुरा ^सारि |
सुधा-सुरा चौसर जमा, जाम सुरासुर डारि |
जाम सुरासुर डारि, खेलते दे दे गारी |
पौ-बारह चिल्लाय, जीत के बारी बारी |
जो सत्ता हथियाय, सुधा पी देखे मुजरा |
जन-गण जाये हार, दूसरा मद में पसरा ।।
*सामग्री ^चौपड़ की गोटी
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बहुत बढ़िया रचनात्मक कार्य!
ReplyDeleteआभार!
अबी दो बक्से खाली हैं इसमें!
ReplyDeleteshrijanatmkta ka sundar namuna
ReplyDeleteअच्छे लिंक्स सर!
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने का आभार !
~सादर!!!
बहुत अच्छे सूत्रों से सजी चर्चा बहुत सुन्दर व् भावात्मक प्रस्तुति ये क्या कर रहे हैं दामिनी के पिता जी ? आप भी जाने अफ़रोज़ ,कसाब-कॉंग्रेस के गले की फांस
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया है आज की प्रस्तुती।
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