रश्मि शर्मा
रोज रोज के चोचले, रोज दिया उस रोज |
रोमांचित विनिमय हुआ, होती पूरी खोज | होती पूरी खोज, छुई उंगलियां परस्पर | चाकलेट का स्वाद, तृप्त कर जाता अन्तर | वायदा कारोबार, आज तो हद हो जाती | हो आलिंगन बद्ध, बसन्ती ऋतु मदमाती || |
खड़ी शादी बनाम पट शादी! :-)
(Arvind Mishra)
पट से तोबा बोलते, चट-पट पटु-महराज ।
पेटू-पंडित हों खफा, भूखे रहते आज ।
भूखे रहते आज, खड़ी शादी की महिमा ।
हो केवल जलपान, नहीं कुछ गहमी-गहमा ।
दिन में सरे काम, विदाई होती झट से ।
बदन रहे चैतन्य, बोलिए तोबा पट से ।।
|
स्वप्न मेरे...........
पाया सबने प्रेम नित, सच्चा आशिर्वाद |
कई पडोसी कष्ट में, करते थे फ़रियाद |
करते थे फ़रियाद, होय माँ दुख में शामिल |
सेवा औषधि प्यार, बना दे उनको काबिल |
ऊँगली उनकी पकड़, राह सच्ची दिखलाया |
मानव मन की छोड़, हँसे पक्षी चौपाया ||
पाया सबने प्रेम नित, सच्चा आशिर्वाद |
कई पडोसी कष्ट में, करते थे फ़रियाद |
करते थे फ़रियाद, होय माँ दुख में शामिल |
सेवा औषधि प्यार, बना दे उनको काबिल |
ऊँगली उनकी पकड़, राह सच्ची दिखलाया |
मानव मन की छोड़, हँसे पक्षी चौपाया ||
बड़ा सवाल : क्या मूर्ख हैं रेलमंत्री ?
सरकारी खिलवाड़ से, प्लेटफॉर्म हो सुर्ख ।
इस झिड़की फटकार से, चेते मंत्री मूर्ख ।
चेते मंत्री मूर्ख, असंभव रविकर भैया ।
हाय हाय चहुँ-ओर, मचा दैया रे दैया ।
सी एम् खाएं भोज, मौत जन जन पर भारी ।
भटकें रिश्तेदार, चिकित्सालय सरकारी ।।
|
.कितना भोले हो तुम यासीन....यह इस सदी का ऐतिहासिक बयान है :-)
अय्यासी यासीन की, श्री हाफिज के साथ |
गिफ्ट मिनिस्टर भेजते, वीजा हाथों हाथ |
वीजा हाथों हाथ, गलत-फहमी मत पालो |
संघी भाजप दुष्ट, यहाँ से शीघ्र हंकालो ।
बढ़िया वो आतंक, नहीं देंगे अब फांसी ।
करने दो कुछ रोज, मियां उसको अय्यासी ।।
जीवमातृका पञ्च कन्या तो बचा -
जीवमातृका वन्दना, माता के सम पाल |
जीवमंदिरों को सुगढ़, करती सदा संभाल ||
शिव और जीवमातृका
धनदा नन्दा मंगला, मातु कुमारी रूप |
बिमला पद्मा वला सी, महिमा अमिट-अनूप ||
भ्रूण-हत्या
माता करिए तो कृपा, सातों में से एक |
भ्रूणध्नी माता-पिता, देते असमय फेंक ||
भ्रूण-हत्या
कुन्ती तारा द्रौपदी, लेशमात्र न रंच |
आहिल्या-मन्दोदरी , मिटती कन्या-पञ्च |
पन्च-कन्या
सातों माता भी नहीं, बचा सकी गर पाँच |
सबकी महिमा पर पड़े, मातु दुर्धर्ष आँच |
|
जल्दी शादी और रेप..... डा श्याम गुप्त
shyam gupta
कहती डाक्टर इंदिरा, कारण बड़े सटीक । जल्दी शादी है सही, है उपाय यह नीक । है उपाय यह नीक, भूख ले जाय रेस्तराँ । सोवे टूटी खाट, नींद से होय-अधमरा । पॉकेट में है माल, भूख काया ना सहती । खाए जूठा भात, बुद्धि भी कुछ ना कहती ।। |
मकरी अकड़ी माँगती, बन्दर का दिल मीठ |
घात कर रहा दोस्त से, मगरमच्छ वह ढीठ | मगरमच्छ वह ढीठ, पीठ पर है बैठाता | कपि खतरा पहचान, उसे फिर से बहकाता | किन्तु विदेशी नस्ल, अक्ल मकरी बंटवाये | मगर मिनिस्टर नित्य, कलेजा लेकर आये || |
सुन्दर लिंकों के साथ लिंक लिखाड़ !!
ReplyDeleteवाह जी वाह ... आपका निराला अंदाज़ छा गया आज फिर ...
ReplyDeleteबढिया लिंक्स
ReplyDeleteआभार
पॉकेट में है माल, भूख काया ना सहती ।
ReplyDeleteखाए जूठा भात, बुद्धि भी कुछ ना कहती ।।
बहुत बेहतरीन ,,,,
RECENT POST... नवगीत,
रविकर चर्चा कर रहे, अच्छे लिंक बताय ।
ReplyDeleteजिसको जो अच्छा लगे, ओ वही पढ़ जाय ।
ओ वही पढ़ जाय ,जिसे भाए कुछ अच्छा ।
वृद्ध पढ़े की प्रौढ़ ,पढ़े या छोटा बच्चा ।
कहते है लोकेश, लिंक पे जब भी आओ।
कैसे लगे लिंक, प्रतिक्रिया से बतलाओ ।
रविकर चर्चा कर रहे, अच्छे लिंक बताय ।
ReplyDeleteजिसको जो अच्छा लगे, ओ वही पढ़ जाय ।
ओ वही पढ़ जाय ,जिसे भाए कुछ अच्छा ।
वृद्ध पढ़े की प्रौढ़ ,पढ़े या छोटा बच्चा ।
कहते है लोकेश, लिंक पे जब भी आओ।
कैसे लगे लिंक, प्रतिक्रिया से बतलाओ ।
बहुत अच्छे सूत्रों से सजी प्रस्तुति अफज़ल गुरु आतंकवादी था कश्मीरी या कोई और नहीं ..... आप भी जाने संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग
ReplyDeleteबहुत ही निराली प्रस्तुती,हर दिन नया मंथन।
ReplyDeleteरविकर भाई मेहता जी वागीश को आपकी यह कुंडली सुनाई थी .बेहद सटीक पकड़ा है आपने सन्दर्भ को सुन्दर कुंडली .आभार मेरी तरफ से आशीष उनकी तरफ से हम दोनों से बड़े हैं उम्र है ७२ साल .
ReplyDelete"आधुनिक विमर्श की कोई चौहद्दी नहीं है .आप परम्परा पर अंगद की लात नहीं मार सकते .छोटे शहर जो कमोबेश परम्परा से बंधे हैं आज भी वहां जीवन अपेक्षया सुरक्षित है .दिल्ली जैसे महा नगरों
ReplyDeleteकी कोई खसूसियत कोई चेहरा नहीं बचा है ,परम्परा गत समाज के लोग नियम बनाके उनका पालन करते हैं .वहां नियम टूटने का मतलब हाईकोर्ट जाना नहीं है .परात्परा है परम्परा .जो परे से भी परे
है ,दूर तक जाती है पीढ़ियों के पार वह परम्परा है .जो अपने इस्तेमाल में व्यापक है सर्वव्यापी है वह परमपरा है .परम्परा गत छोटे शहर न केवल सुरक्षित हैं उनका एक चेहरा भी है .
मनोविज्ञान के पूर्व राष्ट्रीय प्रोफ़ेसर रहे डॉ इन्द्रजीत सिंह मुहार ने कहा -इंदिरा जी कौन से ज़माने की बात कर रहीं हैं .माँ बाप के कौन से नियंत्रण की बात कर रहीं हैं .अच्छी ही रहता है माँ बाप के
चंगुल से निकलना बेटे बहुओं का वरना शादी एक कलह में बदल जाती है .विस्फोटक सामग्री को पास पास रखना ही क्यों है .
जल्दी शादी और रेप..... डा श्याम गुप्त
shyam gupta
श्याम स्मृति..The world of my thoughts... श्याम गुप्त का चिट्ठा..
सच है शहर का वजूद लोगों से होता है .परिवेश लोग खडा करते हैं और जब वह नहीं रहते शहर अक्सर नाकारा हो जाता है .पर ऐसा होते होते वक्त लग जाता है और मामला माँ को हो तो नियम
ReplyDeleteअपवाद बन जाता है .मार्मिक प्रसंग .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .
कहाँ हो तुम ...
(दिगम्बर नासवा)
स्वप्न मेरे...........
पाया सबने प्रेम नित, सच्चा आशिर्वाद |
कई पडोसी कष्ट में, करते थे फ़रियाद |
करते थे फ़रियाद, होय माँ दुख में शामिल |
सेवा औषधि प्यार, बना दे उनको काबिल |
ऊँगली उनकी पकड़, राह सच्ची दिखलाया |
मानव मन की छोड़, हँसे पक्षी चौपाया ||
बेशक अफज़ल को नौ साल तक कानूनी प्रक्रिया पूरी होने तक बनाए रहने के बाद फांसी देना क़ानून सम्मत ही था .इस प्रक्रिया को और भी द्रुत किया जा सकता था .चलो देर आयद दुरुस्त आयद .
ReplyDeleteयहाँ मुद्दा अब उमर अब्दुल्ला साहब हैं जो कहते थे अफज़ल को फांसी दी तो अमन चैन को घाटी में आग लग जायेगी .कहीं से कोई चिड़िया का अंडा भी न गिरा .अब वह खुद भावनायें भडका रहे हैं
.हाथों के तोते उड़े हुए हैं उनके .ये भी राहुल ब्रिगेड के ही वफादार बताये जाते हैं .
यहाँ मुद्दा है यासीन मालिक को गिफ्ट वीजा किसने दिया ,यह है ?.वह जाके पाकिस्तान की सरज़मीं पे जाके कहें -काश्मीर मुद्दा सुलगाये रखना है .सरकार खामोश रहे .
और ये महबूबा मुफ़्ती और इनके आका ये तो खेलते ही आतंकियों की गोद में हैं .उमर अब्दुल्ला भी शेख अब्दुल्ला के पोते ही साबित हुए .
कौन सी तरफदारी चाहतीं रहतीं हैं आप अपनी काबिल सरकार की ?आप हैं तो तरफदार .हम राष्ट्र के तरफ दार हैं किसी सरकार के नहीं .मकरी निजाम के नहीं .
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
सोमवार, 11 फरवरी 2013
अफज़ल गुरु आतंकवादी था कश्मीरी या कोई और नहीं .....
http://shalinikaushik2.blogspot.in/
टिपियाए हुए ब्लॉगरों की ओर से आभार!
ReplyDeleteखाए जूठा भात, बुद्धि भी कुछ ना कहती
ReplyDeleteदिन मनाओ कोई खास..ये भारतीय रीति नहीं कहती..
बढ़िया चर्चा..
रविकर जी बहुत ही सुन्दर चयन | मेरी कविता शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद | और सभी ब्लॉग मित्रगण को मेरा आभार और बधाई |
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बढ़िया लिनक्स
ReplyDeleteऔर उससे भी बढ़िया छंद
रविकर जी
साभार